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Gujarat Assembly Election 2022: 2012 और 2017 से कम हुआ मतदान, क्या है इसका सियासी मतलब? भाजपा को हो सकता है फायदा
Gujarat Assembly Election 2022: पहले चरण की सीटों पर 788 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं और इन सभी प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद हो गया है।
Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात के विधानसभा चुनाव में पहले चरण की 89 सीटों पर मतदान समाप्त हो गया है। पहले चरण की सीटों पर 788 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे हैं और इन सभी प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद हो गया है। शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक पहले चरण में शाम पांच बजे तक 59.2 फ़ीसदी मतदान हुआ है। इस बार के विधानसभा चुनाव में ज्यादा मतदान की उम्मीद जताई जा रही थी मगर 2012 और 2017 के मुकाबले बेहद कम मतदान होने से कई प्रत्याशियों की चिंताएं बढ़ गई हैं।
पहले चरण में कम मतदान का अब सियासी मतलब तलाशा जाने लगा है। आमतौर पर ज्यादा मतदान को बदलाव और सरकार के खिलाफ रुझान का संकेत माना जाता है। हालांकि इसका पक्का तौर पर कोई गणित नहीं है मगर आमतौर पर ऐसा ही दिखता रहा है। ऐसे में पहले चरण में कम मतदान को भाजपा की स्थिति मजबूत होने का संकेत माना जा रहा है।
2012 और 2017 का मतदान प्रतिशत
गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने जूमकार वोटिंग में हिस्सा लिया था। इसी कारण मतदान प्रतिशत 68 पर पहुंच गया था। 2012 के विधानसभा चुनाव में गुजरात में दोनों चरणों में कुल 71.32 प्रतिशत मतदान हुआ था। इस तरह इस बार पहले चरण का मतदान पिछले दोनों चुनावों से काफी कमजोर रहा है।
इस बार पहले चरण में शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक 59.2 फ़ीसदी मतदान दर्ज किया गया है। हालांकि यह अंतिम आंकड़ा नहीं है और अभी मतदान परिषद थोड़ा बहुत बढ़ने की संभावना बनी हुई है।
दोपहर बाद आई मतदान में तेजी
छिटपुट घटनाओं को छोड़कर पहले चरण का मतदान आमतौर पर शांतिपूर्ण हो रहा है। पहले चरण के मतदान में सौराष्ट्र, कच्छ और दक्षिण गुजरात की विभिन्न सीटों पर मतदान प्रक्रिया पूरी की गई है। सुबह मतदान शुरू होने पर शुरुआती घंटों में कम मतदाता पोलिंग बूथों पर पहुंचे। यही कारण था कि सुबह मतदान की रफ्तार सुस्त रही।
दोपहर बाद मतदान के काम में तेजी आई और विभिन्न इलाकों के पोलिंग बूथों पर मतदाताओं की लंबी-लंबी कतारें देखी गई। शाम को पांच बजे मतदान समाप्त होने तक तमाम पोलिंग बूथों पर काफी मतदाता अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। इसके बावजूद मतदान का आंकड़ा 2017 से काफी कम दर्ज किया गया। 2012 के मतदान प्रतिशत से तो यह काफी कम है।
आखिर क्या है कम मतदान का मतलब
गुजरात चुनाव के पहले चरण में कम मतदान का अब सियासी मतलब तलाशा जाने लगा है। सियासी जानकारों का मानना है कि आम तौर पर ज्यादा मतदान सरकार के खिलाफ मतदाता का गुस्सा और बदलाव का संकेत माना जाता है मगर गुजरात में वैसी स्थिति नहीं दिखी है। मतदान प्रतिशत बढ़ने पर माना जाता है कि मतदाता बदलाव के पक्ष में दिख रहा है।
वैसे मतदाता के मूड-मिजाज की कोई पक्की गणित नहीं है मगर पिछले चुनावों में आमतौर पर ऐसा ही दिखता रहा है। ऐसे में सियासी जानकारों का मानना है कि भाजपा कांग्रेस और आप के मुकाबले ज्यादा मजबूत स्थिति में दिख रही है।
वैसे मतदाताओं के फैसले की असली जानकारी तो 8 दिसंबर को मतगणना के बाद ही पता चल सकेगी मगर भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के खेमों में पहले चरण के मतदान के बाद मतदाताओं के रुझान को लेकर मंथन शुरू हो चुका है।
मोदी और शाह की प्रतिष्ठा दांव पर
गुजरात का चुनाव भाजपा के लिए काफी अहम है क्योंकि गुजरात के चुनावी नतीजे बड़ा सियासी संदेश देने वाले साबित होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने के कारण गुजरात के चुनाव में इन दोनों सियासी दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
इसी कारण पीएम मोदी और गृहमंत्री शाह गुजरात में धुआंधार चुनाव प्रचार करने में जुटे हुए हैं। गुरुवार से पहले प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के विभिन्न हिस्सों में 20 चुनावी सभाएं कर चुके थे।
गृह मंत्री अमित शाह ने भी दीपावली के बाद से ही अपना अधिकांश समय गुजरात में ही बिताया है। भाजपा के चुनाव संचालन की पूरी कमान उन्होंने अपने हाथ में संभाल रखी है। गुजरात में दूसरे चरण का मतदान 5 दिसंबर को होना है।
दूसरे चरण के मतदान से पहले भाजपा, कांग्रेस और आप नेताओं ने धुआंधार प्रचार अभियान छेड़ रखा है। अब सभी को 8 दिसंबर का इंतजार है जिस दिन गुजरात चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे।