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Gujarat Election 2022: माधव सिंह सोलंकी के KHAM और चिमन भाई के KOKUM पर अकेले भारी पड़े Modi
Gujarat Election 2022: गुजरात में संगठन में काम करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओबीसी समुदाय को बीजेपी के साथ जोड़ा। राज्य की आबादी में ओबीसी जातियों की भागीदारी 52 प्रतिशत है। नरेंद्र मोदी खुद भी इसी जाति समूह से आते हैं।
Gujarat Assembly Election 2022: गुजरात में 15वीं विधानसभा के लिए चुनाव आयोग ने चुनावी बिगुल बजा दिया है। व्यापार जगत में अहम स्थान रखने वाले इस सूबे की राजनीति भी बड़ी दिलचस्प है। आम तौर पर जब कभी राजनीति और जाति के मिश्रण की बात आती है, राजनीति का थोड़ा बहुत ज्ञान रखने वाले लोग भी तपाक से हिंदी पट्टी के दो बड़े सूबे यूपी और बिहार का नाम ले लेते हैं। लेकिन हकीकत में देश का ऐसा कोई सूबा नहीं जहां जातिवाद हावी नहीं है। फिलहाल मौसम गुजरात चुनाव का है, इसलिए बात यहां की राजनीति में जाति का क्या रोल है, इस पर करेंगे। यहां दो बड़े अपराजेय सा दिखने वाले जातीय समीकरण बने, जो बाद के दिनों में नरेंद्र मोदी के उभार के बाद नेपथ्य में चले गए।
यूपी, बिहार की राजनीति में 90 के दशक में मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव के उभार के बाद MY (मुस्लिम और यादव) समीकरण अस्तित्व में आया, जिसे जीताऊ सियासी समीकरण माना गया। लेकिन गुजरात की राजनीति में जातीय समीकरण को साधने का प्रयोग 80 के दशक में ही शुरू हो चुका था। गुजरात के दो बड़े सियासतदां पूर्व सीएम माधव सिंह सोलंकी और पूर्व सीएम चिमनभाई पटेल जातीय समीकरण के बदौलत मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। तो आइए एक नजर इन दोनों नेताओं के उस सियासी थ्योरी पर डालते हैं, जिसकी चर्चा आज भी होती है।
KHAM थ्योरी
वर्तमान में गुजरात में सत्ता हासिल करने के लिए जूझ रही कांग्रेस ने किसी जमाने में इस सूबे में ऐसा जनादेश हासिल किया था, जिसी बीजेपी जैसी इलेक्शन मशीन 27 सालों तक सत्ता में रहने के बावजूद हासिल नहीं कर सकी है। ये दौर था 1980 के दशक का। पत्रकारिता से राजनीति में आए कद्दावर कांग्रेस नेता माधव सिंह सोलंकी ने 1980 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 182 में से 141 सीटें दिलाईं। नतीजे से पहले कांग्रेस के पास मात्र 75 सीटें थीं। उन्होंने ये कामयाबी KHAM थ्योरी के बदौलत हासिल की। इस थ्योरी में चार प्रमुख जातियों की गोलबंदी थी, जिनमें क्षत्रिय (K), हरिजन (H), आदिवासी (A) और मुस्लिम (M) शामिल थे।
साल 1985 में सोलंकी जब दोबारा चुनाव मैदान में उतरे, तो उनकी चुनावी सफलता ने पिछले रिकॉर्ड भी तोड़ दिए। उन्हें 149 सीटें हासिल हुईं। गुजरात की राजनीति में अब तक इस रिकॉर्ड के आसपास भी कोई नहीं पहुंच पाया। लेकिन ये थ्योरी सूबे में कांग्रेस की सत्ता को आगे बरकरार नहीं रख सकी। साल 1990 के विधानसभा चुनाव में एक और दिग्गज नेता एक नई जातीय समीकरण के साथ आए और कांग्रेस के पैरों तले की सियासी जमीन खिसका गए। उसके बाद से कांग्रेस कभी गुजरात में जीत नहीं पाई।
KOKUM थ्योरी
गुजरात के दिग्गज पाटीदार नेता चिमनभाई पटेल कांग्रेस के KHAM थ्योरी की काट निकालते हुए KOKUM थ्योरी लेकर आए। उन्होंने इस नाम से बकायदा एक सामाजिक संगठन भी बनाया। इस संगठन का ज्यादातर प्रभाव सौराष्ट्र क्षेत्र में था। जनता दल से आने वाले चिमन भाई ने कोली, कनबी और मुस्लिम समुदाय को साथ लाकर ये समीकरण बनाया था। कोकम में कोली जाति का सबसे अधिक वर्चस्व था क्योंकि इसकी संख्या ओबीसी जातियों में सबसे अधिक थी। आज भी ये एक निर्णायक तबका है। 1990 में जनता दल को इस जातीय गोलबंदी के बदौलत 70 सीटें मिलीं थीं। चिमन भाई ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी। वहीं, सत्तारूढ़ कांग्रेस 37 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी।
मोदी मैजिक ने सारे जातीय समीकरण ध्वस्त किए
90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के चरम पर पहुंचने का फायदा बीजेपी को गुजरात में भी हुआ। भगवा दल यहां ड्राइविंग सीट पर आ चुकी थी और 1995 के विधानसभा चुनाव में पहली बार तमाम जातीय गोलबंदी को ध्वस्त करते हुए अपने दम पर 121 सीटें हासिल कीं। दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के कारण राज्य का शक्तिशाली और प्रभावशाली मतदाता वर्ग यानी पाटीदार समूह जो KHAM और KOKUM थ्योरियों में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा था, बीजेपी के साथ जुड़ गया।
गुजरात में संगठन में काम करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओबीसी समुदाय को बीजेपी के साथ जोड़ा। राज्य की आबादी में ओबीसी जातियों की भागीदारी 52 प्रतिशत है। नरेंद्र मोदी खुद भी इसी जाति समूह से आते हैं। साल 2002 के बाद गुजरात की राजनीति में हिंदुत्व और डेवलपमेंट का एक ऐसा कॉकटेल बना, जिसने यहां की राजनीति में बीजेपी को अंगद के पांव की तरह जमा दिया। प्रधानमंत्री मोदी हिंदुत्व और डेवलपमेंट के इस थ्योरी के सबसे बड़े प्रतीक के तौर पर उभरे।
पिछले 6 चुनावों में बीजेपी की लगातार जीत ने कथित KHAM और KOKUM थ्योरियों को पीछे छोड़ते हुए राज्य में हिंदुत्व की एकमात्र थ्योरी को स्थापित किया है। जिसका अनुसरण करने की कोशिश गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी कर चुके हैं और मौजूदा दौर में गुजरात में अपने लिए सियासी जमीन तलाश रहे अरविंद केजरीवाल करते नजर आ रहे हैं।