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Gujarat Morbi Bridge Collapse: बेहतरीन इंजीनियरिंग का नमूना था 142 साल पुराना ब्रिज, जानें लकड़ी के इस पुल की कहानी

Gujarat Morbi Bridge Collapse: मोरबी पुल का निर्माण जब हुआ था उस समय इस ब्रिज को बनाने में तक़रीबन 3.5 लाख रुपए का खर्च आया था। पुल निर्माण का सारा सामान तब राजा ने ब्रिटेन से मंगवाया था।

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Written By aman
Published on: 31 Oct 2022 7:31 PM IST
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Gujarat Morbi Bridge (Social Media)

Gujarat Morbi Bridge Collapse: गुजरात (Gujarat) का मोरबी स्थित फंक्शनल पुल (Functional Bridge in Morbi) सुर्खियों में है। रविवार को पुल गिरने से करीब 141 लोगों की मौत हो गई। लापता लोगों की तलाश अब भी जारी है। ये ब्रिज करीब 142 साल पुराना था। समय-समय पर इसके रखरखाव पर मोटी रकम खर्च की जाती रही, बावजूद ब्रिज गिर गया। इस पुल की गिनती गुजरात के प्रमुख टूरिस्ट प्लेस के रूप में होती रही है। ये पुल जितना पुराना है, इतिहास उतना ही रोचक है। तो चलिए आपको बताते हैं मोरबी स्थित फंक्शनल पुल का पूरा इतिहास।

मोरबी के जिस पुल पर ये हादसा हुआ वह आम नहीं था। यहां हर रोज बड़ी संख्या में पर्यटक घूमने आते रहे हैं। यह ऐतिहासिक पल मच्छु नदी पर करीब 142 साल पहले बना था। समय के साथ पुल की लोकप्रियता बढ़ती गई। एक समय ऐसा आया जब ये गुजरात के प्रमुख टूरिस्ट प्लेस में शामिल हो गया।

Morbi Bridge क्यों था खास?

Morbi Bridge की खास बात ये थी कि ये पुल हवा में झूलता रहता था। ठीक उसी प्रकार जैसे ऋषिकेश का राम और लक्ष्मण झूला है। इसी खासियत की वजह से वर्षों से बड़ी संख्या में लोग यहां आते रहे थे। हादसे वाले दिन यानी रविवार को भी इस पुल पर भारी भीड़ जुटी थी। मगर, यहीं चूक हो गई। जिस पुल की क्षमता 100 लोगों की थी वहां 500-700 लोग जमा हो गए थे। पुल इतना भार नहीं उठा पाया और टूटकर नदी में गिर गया।


1880 में वाघजी ठाकोर ने बनवाया था पुल

मोरबी के तत्कालीन राजा वाघजी ठाकोर ने साल 1880 में इसे बनवाया था। राजा ठाकोर का मोरबी पर शासन 1922 तक रहा। बताया जाता है, मोरबी के मच्छु नदी जब लकड़ी के इस पुल का निर्माण किया गया था तब इसमें यूरोप की सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। मोरबी के राजा वाघजी ठाकोर इसी पुल के रास्ते दरबार जाते थे। ये पुल दरबारगढ़ पैलेस व नजरबाग पैलेस यानी शाही महल को जोड़ता था। समय के साथ यह पुल दरबारगढ़ पैलेस और लख धीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज के बीच प्रमुख मार्ग बन गया।

जानें मोरबी पुल की खास बातें, आया था इतना खर्च

गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर निर्मित इस पुल का उद्घाटन तत्कालीन मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेम्पल (Richard Temple) ने किया था। आपको पता है उस समय इस ब्रिज को बनाने में तक़रीबन 3.5 लाख रुपए का खर्च आया था। पुल निर्माण का सारा सामान तब राजा ने ब्रिटेन से मंगवाया था। इस पुल की लंबाई 765 फीट थी, जबकि, चौड़ाई 1.25 मीटर। ब्रिटिश शासन के दौरान बने इस पुल को अच्छी इंजीनियरिंग का प्रतीक माना जाता रहा है। राजकोट से मोरबी के इस पुल की दूरी 64 किलोमीटर है। इस पुल पर जाने के लिए पर्यटकों को 15 रुपए शुल्क अदा करने पड़ते थे।


2001 के भूकंप में पुल को हुआ था नुकसान

साल 2001 में गुजरात में भयानक भूकंप आया था। कहा जाता है कि, उस भूकंप का ने इस ब्रिज को गंभीर नुकसान पहुंचाया था। हालांकि, समय-समय पर पुल की मरम्मत की जाती रही। बीते 6 महीने से ये पुल बंद था। मरम्मत की वजह से इसे बंद किया गया था। इसी महीने 25 अक्टूबर को एक बार फिर से पर्यटकों के लिए खोला गया था। 6 महीनों में ब्रिज की मरम्मत पर करीब 2 करोड़ रुपए का खर्च आया था।

मोरबी में स्वागत करता है ये ब्रिज

यह पुल मोरबी में प्रवेश करने वाले का स्वागत करता प्रतीत होता है। आगंतुकों को यह ब्रिज आकर्षित करता रहा है। घूमने वाले उस नजारे की तुलना लंदन के विक्टोरिया ब्रिज से करते थे। यहां आपको ये भी बता दें कि, मोरबी में 19वीं सदी बनी इमारतें यूरोपीय भवनों को टक्कर देती रही है। दरअसल, मोरबी के शासकों ने अंग्रेजों की तकनीक और उनके निर्माण कला का भरपूर इस्तेमाल किया। यूरोपियन इमारतों का गहरा प्रभाव यहां के स्थापत्य पर दिखता है। इस शहर में यूरोपीय शैली की छाप साफ-साफ दिखती है। शहर के ग्रीन चौक चौराहा पर तीन गेट से पहुंचा जा सकता है। हर गेट में राजपूत तथा इटालियन तकनीक का अक्स दिखाई पड़ता है।


मेंटेनेंस की जिम्मेदारी ओरेवा ग्रुप को

मोरबी पुल के मेंटेनेंस की जिम्मेदारी इस वक़्त ओधवजी पटेल के स्वामित्व वाले ओरेवा ग्रुप (Orewa Group) के पास है। इस समूह ने मार्च 2022 से मार्च 2037 अर्थात 15 साल के लिए मोरबी नगर पालिका (Morbi Municipality) के साथ एक समझौता किया था। इस समझौते के तहत पुल के रखरखाव, सफाई, सुरक्षा तथा टोल वसूली सहित सभी जिम्मेदारी ओरेवा ग्रुप के पास ही है।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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