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Gujarat Politics: नए सीएम के सिर सजेगा कांटों का ताज, करना होगा इन बड़ी चुनौतियों का सामना

Gujarat Politics: गुजरात में नए मुख्यमंत्री को संगठन और सरकार के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। रुपाणी की कुर्सी छीने जाने के पीछे उनके और प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच मतभेद भी बड़ा कारण बताया जा रहा है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman TiwariPublished By Vidushi Mishra
Published on: 12 Sept 2021 10:29 AM IST
Purushottam Rupala nitinbhai patel
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 मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल ये मंत्री (कांसेप्ट फोटो)

Gujarat Politics : गुजरात में अगले साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री बदलने का बड़ा सियासी दांव खेला है। गुजरात में मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के इस्तीफा (Vijay Rupani Resign) देने की अटकलें पहले से ही लगाई जा रही थीं। हालांकि यह भरोसा किसी को नहीं था कि रुपाणी को इतना जल्दी इस्तीफा देना पड़ेगा। रुपाणी के इस्तीफा देने के बाद राज्य में सियासी गतिविधियां काफी तेज हो गई हैं। रविवार को विधायक दल की बैठक बुलाई गई है।

मुख्यमंत्री पद की रेस में चार-पांच प्रमुख नेताओं के नाम बताए जा रहे हैं। हालांकि अभी तक भाजपा(BJP) का शीर्ष नेतृत्व अपने फैसलों को लेकर चौंकाता रहा है और यही कारण है कि कोई भी अभी तक इस बाबत कुछ भी निश्चित रूप से कहने की स्थिति में नहीं दिख रहा है।

वैसे जिस भी नेता का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए फाइनल किया जाएगा, उसके सिर काटों का ही ताज सजेगा क्योंकि उसे चुनाव से पहले कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना होगा। नए मुख्यमंत्री के लिए इन चुनौतियों का सामना करना आसान काम नहीं होगा।

सीएम की रेस में कई बड़े चेहरे

सबसे पहले यह जानना दिलचस्प है कि वे कौन से नेता हैं जिनका नाम मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे चल रहा है। इन नेताओं में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ( Mansukh Mandaviya ), केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ( Parshottam Rupala ), पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल ( C. R. Patil ) और राज्य के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ( Nitinbhai Patel )का नाम बताया जा रहा है।

इन नामों के अलावा गोरधन झडाफिया का नाम भी मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल है। इन नेताओं की मजबूती के अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं। वैसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सी आर पाटिल का कहना है कि वे मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल नहीं हैं। माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व से मुहर लगने के बाद विधायक दल की बैठक में उसी नेता के नाम का फैसला किया जाएगा।

गोरधन जडाफिया (फोटो- सोशल मीडिया)

समय से पहले भी हो सकते हैं चुनाव

वैसे भाजपा के जिस भी नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, उसके लिए गुजरात में तमाम चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। इन चुनौतियों से जूझना आसान नहीं है। यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व गुजरात के अगले मुख्यमंत्री के नाम का फैसला करने के लिए गंभीर मंथन में जुटा हुआ है।

गुजरात में भाजपा को अगले साल नवंबर महीने में विधानसभा चुनाव का सामना करना है। कुछ जानकारों का तो यहां तक कहना है कि गुजरात में विधानसभा चुनाव समय से पहले भी कराए जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में होने वाले चुनाव के साथ ही गुजरात का चुनाव कराए जाने की भी चर्चाएं सुनी जा रही हैं।

सत्ता विरोधी रुझान से जूझना होगा

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार बनाने में जरूर कामयाब हुई थी मगर भाजपा की नैया पार लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पूरी ताकत लगानी पड़ी थी। यह चुनाव पीएम मोदी के नाम पर लड़ा गया था। भाजपा को कांग्रेस के खिलाफ एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था।

कांग्रेस के पूरी मजबूती से चुनाव लड़ने के कारण भाजपा 99 सीटों पर ही अटक गई थी। राज्य में सत्ता विरोधी रुझान को देखते हुए इस बार का चुनाव पिछले चुनाव से और कठिन माना जा रहा है। अगले चुनाव में कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के साथ मतदाताओं का समर्थन हासिल करना किसी भी नए मुख्यमंत्री के लिए आसान काम नहीं होगा।

तीसरी लहर की चुनौतियां होंगी सामने

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गुजरात में अव्यवस्था की तमाम शिकायतें सामने आई थीं। कोरोना की दूसरी लहर का सामना करने के लिए गुजरात सरकार की ओर से किए गए प्रयासों से लोग संतुष्ट नहीं थे। यही कारण था कि गुजरात हाईकोर्ट की ओर से भी सरकार को कई मौकों पर फटकार लगाई गई थी। विजय रुपाणी की कुर्सी जाने के पीछे इसे महत्वपूर्ण कारण भी माना जा रहा है।

विजय रुपाणी (फोटो- सोशल मीडिया)

राज्य के कई जिलों में मिसमैनेजमेंट की शिकायतों को केंद्रीय नेतृत्व ने भी काफी गंभीरता से लिया था। अब कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंकाओं के बीच नए मुख्यमंत्री को बहुत तेजी से गुजरात के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाना होगा। कम समय में इस मामले में तेजी से काम करना किसी भी नए मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं होगा।

मजबूत नेता के रूप में दिखानी होगी ताकत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात की सत्ता छोड़ने के बाद आनंदीबेन पटेल और विजय रुपाणी ने मुख्यमंत्री के रूप में काम किया मगर इन दोनों नेताओं का व्यक्तित्व मोदी जैसा करिश्माई नहीं रहा।

दोनों नेता जनता के बीच वैसी धमक नहीं बना सके जैसी मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की हुआ करती थी। पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री पद का मजबूत चेहरा न होने के कारण झटका खा चुका भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अब राज्य में मजबूत क्षत्रप की जरूरत महसूस कर रहा है।

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का यह भी मानना है कि हर चुनाव सिर्फ मोदी के चेहरे पर नहीं लड़ा और जीता जा सकता। इसी कारण जिस भी चेहरे को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, उसे मजबूती से काम करके खुद को स्थापित करना होगा।

उसे सत्ता विरोधी रुझान खत्म करते हुए मतदाताओं के बीच भाजपा को लोकप्रिय भी बनाना होगा। यह काम भी किसी नए मुख्यमंत्री के लिए काफी चुनौतीपूर्ण साबित होगा।

बीजेपी (सोशल मीडिया)

पाटीदार समाज को साधने की चुनौती

गुजरात के चुनाव में पाटीदार समाज अहम भूमिका निभाता रहा है। पाटीदार आंदोलन के कारण 2017 के चुनाव में भाजपा को तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस की ओर से हार्दिक पटेल लगातार पाटीदार समाज की अनदेखी को लेकर भाजपा पर हमले करते रहे हैं। भाजपा पिछले चुनाव में पाटीदार समाज की नाराजगी के कारण सौराष्ट्र में झटका खा चुकी है।

ऐसे में पाटीदार समाज के समर्थन को जीतना भी नए मुख्यमंत्री के लिए बड़ी चुनौती होगी। पाटीदार समाज की ताकत को देखते हुए ही मनसुख मंडाविया, पुरुषोत्तम रुपाला और नितिन पटेल की दावेदारी को मजबूत बताया जा रहा है। भाजपा इस समाज की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहती। नए मुख्यमंत्री के सामने पाटीदार समाज को साधने की भी बड़ी चुनौती होगी।

संगठन के साथ बनाना होगा समन्वय

नए मुख्यमंत्री को संगठन और सरकार के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। रुपाणी की कुर्सी छीने जाने के पीछे उनके और प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के बीच मतभेद भी बड़ा कारण बताया जा रहा है।

सीआर पाटिल को पीएम मोदी का करीबी माना जाता है। वे प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी चुनाव के दौरान काम कर चुके हैं। उनका काम करने का अलग ढंग रहा है । वे रुपाणी सरकार के काम से संतुष्ट नहीं थे।

उन्होंने इस बाबत पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से शिकायत भी की थी। उनका कहना था कि रुपाणी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ना पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। नए मुख्यमंत्री के सामने संगठन के साथ समन्वय बनाकर सरकार चलाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संगठन को भी काफी महत्व देता रहा है। नए मुख्यमंत्री को इस अपेक्षा पर भी खरा उतरना होगा।

Vidushi Mishra

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