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हर्ष नव, वर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव

Dr. Yogesh mishr
Published on: 1 Jan 2019 2:34 PM IST
नये साल पर हर शख्स अपने लिए कोई न कोई नया संकल्प लेता है। नये सपने बुनता है। प्रत्येक समाज भी अपने लिए नये संकल्पों को पूरा करने के लिए नई तैयारी पूरी शिद्धत के साथ करता दिखता है। नया साल सिर्फ कैलेंडर बदलने का नाम नहीं है। यह पुराने साल को अलविदा कहने और नये साल के अभिनंदन का पल है। अभिनंदन इसलिए ताकि सब कुछ शुभ हो। अभिनंदन इसलिए ताकि संकल्प और सपने हकीकत में तब्दील हो जाएं। नये साल पर सबसे अधिक शुभकामना भेजने का चलन है। हर नये साल के बाद संचार तंत्र वाट्सएप और एसएमएस के मार्फत भेजे गये संदेशों को आधार बनाकर यह दावा करता है। ऐसे भी लोग हैं जो इस नये साल को यह कह कर खारिज करते हैं कि भारत का नया साल वर्ष प्रतिपदा से शुरू होता है। वैसे विविधता से भरे इस देश में पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण हर इलाके में अपने-अपने नये साल भी हैं। लेकिन जब भी जश्न, खुशी मनाने का कोई बहाना मिले तो उसे उत्सव की तरह जीना चाहिए। हर पल जो कुछ दे जाए उसे भी उत्सव की तरह जीना चाहिए। एक अच्छी सुबह मिली, एक अच्छी दोपहर मिली, एक अच्छी शाम मिली, एक अच्छी रात मिली, एक अच्छा दिन मिला, ये ईश्वर के प्रति धन्यवाद करने के अवसर हैं। इस नजरिये से जिंदगी को देखें तो किसी नये साल को खारिज करके वर्ष प्रतिपदा का इंतजार करना अच्छा नहीं कहा जाना चाहिए।

पश्चिम के अंक अब आपकी जिंदगी के अभिन्न हिस्सा हैं। हमारी नई पीढ़ियां हमारे पारंपरिक अंक शास्त्र को लिखित और वाचिक दोनों परंपरा में भूल ही गये हैं। फिर पश्चिम के कैलेंडर को लेकर शुरू होने वाले नये साल को भी अपनायें। वर्ष प्रतिपदा भी मनायें। लोकल भी रहें और ग्लोबल भी। बौद्ध का क्षणवाद यही कहता है कि हर क्षण कभी भी कुछ भी बदलकर रख सकता है। पूरे सालभर हम सबके जिंदगी में बहुत बदलाव होंगे। इसलिए खुश रहने और उत्सव मनाने के बहाने को टालें नहीं। क्योंकि टालने से आप भारी मन से जीते हैं। मनाते रहने से आप उत्सव की परंपरा का अभिन्न हिस्सा हो जाते हैं। जो आपको जीवंत रखती है। जो आपको संपर्क में रखती है। जो आपको आह्लाद से भर देती है। नया साल आपकी और हमारी जिंदगी में कितना कुछ बदल कर रख देगा यह विमर्श का सबब हो उठा है। नया साल लोकसभा चुनाव का वर्ष है। यह वर्ष राजनीति के कथ्य और कैलेंडर भी बदल सकता है। जो कथ्य और कैलेंडर हैं उन्हें ही दोबारा पढ़ने और देखने को मजबूर भी कर सकता है। इस चुनाव में लोकतंत्र लोक का होकर उभरे। ईवीएम को लेकर उठाये जा रहे सवाल निरुत्तरित हो जाएं या फिर ईवीएम ही लोकतंत्र से गायब हो जाये।
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Dr. Yogesh mishr

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