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Joshimath Sinking: जोशीमठ के बाद चमोली और कर्ण प्रयाग में टूटती ज़मीन बढ़ा रही लोगों की टेंशन, हिमाचल में भी ख़तरा बढ़ा

Joshimath News: एक तरफ जहां सरकारी मशीनरी जोशीमठ को संकट से उबरने में लगी हैं वहीँ उत्तराखंड के कुछ दूसरे इलाकों से आ रहीं ज़मीन धंसने की ख़बरें पर्यावरणविदों को परेशान कर रही हैं। अब जोशीमठ से करीब 80 किलोमीटर दूर चमोली ज़िले के पास कर्णप्रयाग के घरों में दरार की घटनाएं सामने आ रही हैं।

Dhanish Srivastava
Published on: 5 Feb 2023 7:38 PM IST
Joshimath Sinking
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Joshimath Sinking

Joshimath news : जोशीमठ को लेकर अभी केंद्र और राज्य सरकार राहत और बचाव कार्य की योजनाओं पर काम कर रही हैं वहीं उत्तराखंड के कुछ और हिस्सों में जमीन धंसने की खबरें सरकार की परेशानी को बढ़ा रही हैं। इतना ही नहीं पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश को लेकर अब ठोस कार्ययोजना पर काम किया जा रहा है। ताकि भविष्य में आने वाली किसी मुसीबत से बचा जा सके।

जानकारी के मुताबिक चमोली जिले के कर्णप्रयाग में हाइवे से सटे दर्जन भर घरों में दरारें आ रही हैं। किसी अनहोनी के डर की वजह से कुछ घरों के लोग प्रशासन के राहत शिविर में शरण ले रहे हैं। दूसरी तरफ बद्रीनाथ हाइवे की करीब 150 मीटर सड़क धंसती जा रही है। वहीं जोशीमठ शहर में क्षतिग्रस्त मकानों की संख्या बढ़कर 720 हो गई है।जबकि 85 घर असुरक्षित करार दे दिए गए हैं।

अंधाधुंध निर्माण कार्यों से बढ़ रही मुसीबत

समस्याग्रस्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का मानना है कि पहले प्रकृति की वास्तविक संरचना के बीच यहां कभी कोई समस्या नहीं हुई। नैसर्गिक सौंदर्य के बीच लोग छुट्टियों का आनंद उठाने आते थे और चले जाते थे। लेकिन अब आबादी का बढ़ता दबाव हालात बदल रहा है। चार धाम सड़क परियोजना, मशीनों से पहाड़ काटे जाने से यहां का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ गया है। इसी का खामियाजा यहां के मूल निवासियों को उठाना पड़ रहा है। उन्हें चिंता मानसून की भी सता रही है कि अगर भारी बारिश हुई तो इन इलाके में रहने वाले लोगों को कैसी-कैसी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।

मसूरी के आसपास रखी जा रही नजर

प्रमुख पर्यटन स्थलों में शुमार मसूरी के लैंडोर का जियालॉजिकल सर्वे कराने का निर्देश दिया गया है। सरकार से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सर्वे की रिपोर्ट के बाद आगे की सुधार की कार्ययोजना तय की जाएगी। इससे पूर्व उत्तराखंड सरकार में मंत्री गणेश जोशी लैंडोर का दौरा करके हालात का जायजा ले चुके हैं।

हिमाचल प्रदेश में नए सिरे से संवेदनशील स्थानों की बन रही रिपोर्ट

जोशीमठ के मामले ने भू-संरचना के लिहाज से संवदेनशील राज्यों की सरकारों को सतर्क कर दिया है। वो नियोजित विकास के नए तौर-तरीकों पर विचार करने के अलावा आपदा प्रबंधन को आधुनिक बना रही हैं। हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला से मैकलॉडगंज तक की सड़क पिछले वर्षों में कई बार धंस चुकी है। हिमाचल के राज्य आपदा प्राधिकरण के आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो सालों में 217 जगह जमीन धंसने के मामले सामने आए हैं। जबकि तीन सालों में जमीन धंसने और भूस्खलन से 180 लोगों की मौत हो गई। वहीं नदियों की अचानक बाढ़ से दो दर्जन लोगों की जान जा चुकी है। इस हालात को देखते हुए हिमाचल प्रदेश की सरकार जमीन धंसने वाले, भूकंप और बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों की रिपोर्ट तैयार करके उनके आपदा प्रबंधन की पुख्ता कार्ययोजना पर काम कर रही है।

लैसर हिमालय क्षेत्र में बदलाव स्वाभाविक, न दिया जाए जरूरत से ज्यादा दबाव : विशेषज्ञ

भूगर्भ वैज्ञानिक पहाड़ी इलाकों में छोटे भूस्खलन और कटान को स्वाभाविक बताते हैं। उनका मानना है कि जरूरत से ज्यादा दबाव और अंधाधुंध निर्माणकार्यों की वजह से यही परिवर्तन बड़े हो सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि विकास कार्यों को प्रभावित किया जाए, पर बेहतर यही होगा कि पहाड़ों के वास्तविक स्वरूप से बिना गहरी रिसर्च के जरूरत से ज्यादा छेड़छाड़ न की जाए। भूवैज्ञानिक डॉ पंकज शर्मा के मुताबिक देश में असम से कश्मीर तक की हिमालयन रेंज लैसर हिमालय के दायरे में आती है। लैसर को युवा अथवा मिड एज का पहाड़ कहा जा सकता है। इसमें गतिशीलता व बदलाव अधिक होता है। उनके मुताबिक लैसर हिमालयन रेंज में सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव माइनिंग से पड़ता है। बहुत जरूरी होने पर ही क्षतिपूर्ति के उपायों के साथ इन इलाकों में माइनिंग करनी चाहिए। वरना पहाड़ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते रहेंगे। जिसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ेगा।

Snigdha Singh

Snigdha Singh

Leader – Content Generation Team

Hi! I am Snigdha Singh, leadership role in Newstrack. Leading the editorial desk team with ideation and news selection and also contributes with special articles and features as well. I started my journey in journalism in 2017 and has worked with leading publications such as Jagran, Hindustan and Rajasthan Patrika and served in Kanpur, Lucknow, Noida and Delhi during my journalistic pursuits.

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