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Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में सुक्खू को ताज तो मिला मगर करना होगा कई बड़ी चुनौतियों का सामना
Himachal Pradesh News: सीएम पद के फैसले से पहले प्रतिभा सिंह के खेमे की ओर से किए गए शक्ति प्रदर्शन से साफ हो गया है कि पार्टी की गुटबाजी सुक्खू के लिए सबसे बड़ी मुसीबत साबित होगी।
Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू की मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी तो जरूर हो गई है मगर आने वाले दिनों में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना होगा। मुख्यमंत्री पद के फैसले से पहले पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह के खेमे की ओर से किए गए शक्ति प्रदर्शन से साफ हो गया है कि पार्टी की गुटबाजी सुक्खू के लिए सबसे बड़ी मुसीबत साबित होगी।
हालांकि शपथ ग्रहण के दौरान प्रतिभा सिंह भी मौजूद थीं और उन्होंने पार्टी के पूरी तरह एकजुट होने का दावा किया मगर कांग्रेस के जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों में प्रतिभा गुट सुक्खू के लिए नई मुसीबतें पैदा करता रहेगा। वीरभद्र सिंह के जीवनकाल में भी सुक्खू के उनसे रिश्ते सहज नहीं थे और इसका असर सुक्खू के मुख्यमंत्री बनने के बाद दिखना तय माना जा रहा है।
वीरभद्र के वफादारों को साधना बड़ी चुनौती
हिमाचल प्रदेश में सुक्खू को मुख्यमंत्री का ताज तो जरूर मिल गया है मगर यह ताज कांटों भरा माना जा रहा है। राज्य के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके वीरभद्र सिंह के वफादारों को साधना सुक्खू के लिए सबसे बड़ी चुनौती मानी जा रही है। चुनाव नतीजों की घोषणा के बाद ही वीरभद्र सिंह की पत्नी और राज्य कांग्रेस की प्रमुख प्रतिभा सिंह ने दावा किया था कि पार्टी ने यह चुनाव वीरभद्र सिंह के नाम, चेहरे और काम के दम पर जीता है। इसलिए वीरभद्र सिंह के परिवार की अनदेखी नहीं की जा सकती। उन्होंने कांग्रेस पर्यवेक्षकों के सामने विधायकों को जुटाकर शक्ति प्रदर्शन भी किया था।
प्रतिभा सिंह के बेटे और कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने प्रतिभा के मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में अपनी सीट खाली करने तक की घोषणा कर डाली थी। मौजूदा समय में प्रतिभा सिंह खुद कांग्रेस सांसद हैं और कुछ जानकारों का मानना है कि दो-दो उपचुनावों से बचने के लिए पार्टी नेतृत्व ने प्रतिभा सिंह की दावेदारी पर गौर नहीं किया। मुख्यमंत्री पद के लिए सुक्खू का नाम तय होने के बाद प्रतिभा गुट की ओर से नारेबाजी भी की गई थी। ऐसे में प्रतिभा के गुट को साधना सुक्खू के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है।
प्रतिभा खेमे से सुक्खू की पुरानी अदावत
वैसे सुक्खू और प्रतिभा सिंह के खेमे के बीच राजनीतिक अदावत नई नहीं है। सुक्खू को 2013 में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और अध्यक्ष बनने के बाद सुक्खू ने वीरभद्र सिंह खेमे से जुड़े कई नेताओं से बड़ी जिम्मेदारियां छीन ली थीं। इसे लेकर वीरभद्र सिंह काफी नाराज भी हुए थे। इसके बाद से ही समय-समय पर राज्य कांग्रेस की सियासत में दोनों टीमों के बीच टकराव होता रहा है।
अब मुख्यमंत्री पद को लेकर भी सुक्खू ने बाजी मार ली है। उनका नाम तय करने के दौरान भी राज्य कांग्रेस में खेमेबाजी का जबर्दस्त असर दिखा था। सियासी जानकारों का मानना है कि सरकार चलाने के दौरान भी प्रतिभा खेमा उनके लिए बाधाएं पैदा करता रहेगा।
मंत्रिमंडल में सामंजस्य बनाना भी आसान नहीं
हिमाचल प्रदेश की सियासत में सुक्खू पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम के शिष्य रहे हैं। वीरभद्र सिंह और पंडित सुखराम कांग्रेस में एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते थे। वीरभद्र सिंह के विरोध के कारण ही पंडित सुखराम कभी हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बन सके। राज्य कांग्रेस पर अपनी पकड़ और गांधी परिवार से नजदीकियों के कारण सुक्खू मुख्यमंत्री बनने में तो जरूर कामयाब हो गए हैं मगर प्रतिभा सिंह का खेमा उनके लिए मुसीबतें पैदा करने से बाज नहीं आएगा।
प्रतिभा खेमा हिमाचल की नई सरकार में ज्यादा से ज्यादा हिस्सेदारी चाहता है। इसके साथ ही प्रतिभा सिंह के बेटे विक्रमादित्य को भी प्रमुख मंत्रालय देने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में सुक्खू राज्य मंत्रिमंडल में अपने भरोसे के लोगों को रखना चाहेंगे ताकि भविष्य में किसी भी तोड़फोड़ की राजनीति से बचा जा सके।
कांग्रेस के अन्य दिग्गजों को भी साधना होगा
प्रतिभा खेमे के साथ ही सुक्खू के सामने राज्य कांग्रेस के अन्य प्रमुख चेहरों कौल सिंह ठाकुर,आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर और प्रकाश चौधरी जैसे नेताओं को साधने की भी चुनौती होगी। ऐसे में सुक्खू को राजनीतिक कुशलता का परिचय देना होगा ताकि वे इन दिग्गज नेताओं को अपने साथ रखने में कामयाब हो सकें और विरोधी गुट को मजबूत होने से रोक सकें। इस कारण अब सबकी निगाहें सुक्खू पर टिकी हुई हैं कि वे सभी गुटों से सामंजस्य के साथ अपनी सरकार कैसे चलाते हैं।
राज्य कांग्रेस पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखने में उन्हें पार्टी नेतृत्व से मदद की भी दरकार होगी। हालांकि माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने काफी सोच समझकर सुक्खू के नाम पर मुहर लगाई है। ऐसे में वे पार्टी हाईकमान के समर्थन से इन चुनौतियों का सामना करने में कामयाब हो सकते हैं।