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Himachal Pradesh Election 2022: सेब की मिठास न बन जाए चुनावी कड़वाहट

Himachal Pradesh Election 2022: देश में सेब के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में शुमार हिमाचल प्रदेश में सेब किसानों की नाराजगी चुनावों में पार्टियों के समीकरण गड़बड़ा सकती है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 9 Nov 2022 9:37 PM IST
Himachal Pradesh Election 2022
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सेब की मिठास न बन जाए चुनावी कड़वाहट। (Social Media)

Himachal Pradesh Election 2022: देश में सेब के सबसे बड़े उत्पादक राज्यों में शुमार हिमाचल प्रदेश में सेब किसानों की नाराजगी चुनावों में पार्टियों के समीकरण गड़बड़ा सकती है। 1990 में हिमाचल प्रदेश के सेब उत्पादकों ने तत्कालीन भाजपा सरकार (BJP Government) के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया था। इस आंदोलन में पुलिस की गोली से तीन किसानों की मौत भी हो गई थी। सेब आंदोलन (Apple Movement) ने राज्य का पूरा राजनीतिक माहौल बदकर रख दिया था और विधानसभा चुनावों में वीरभद्र सिंह (Former CM Virbhadra Singh) के नेतृत्व में कांग्रेस ने राज्य की 68 सीटों में से 60 पर जीत हासिल की थी।

सेब किसान नाराज

इस बार भी सेब किसान नाराज हैं। राज्य में सेब उत्पादक बढ़ती लागत और घटते मुनाफे के चलते अपनी कई मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। सबसे प्रमुख मांग यह है कि सेब के बक्सों पर लगने वाली जीएसटी बढ़ोत्तरी को सरकार वापस ले। हाल ही में सेब के बॉक्स पर जीएसटी को 12 प्रतिशत से बढ़कर 18 प्रतिशत कर दिया गया था।सेब उत्पादक एमआईएस योजना के तहत लंबित खरीद भुगतानों से भी नाराज़ हैं। सेब उत्पादक इस बात से भी नाराज़ हैं कि सरकार ने एक अन्य योजना को भी वापस ले लिया है जिसके तहत उत्पादकों को रियायती दरों पर स्प्रे और कीटनाशक वितरित किए जाते थे।

हमेशा हिमाचल के चुनावी में महत्वपूर्ण रही सेब बेल्ट

सेब बेल्ट हमेशा हिमाचल के चुनावी में महत्वपूर्ण रही है। सेब व्यवसाय 6000 करोड़ रुपये या राज्य की अर्थव्यवस्था का 13.5 प्रतिशत से अधिक है। सेब बेल्ट राज्य की 20-25 सीटों पर प्रभाव डालती है। इसमें इसमें शिमला जिले की आठ विधानसभा सीटें, मंडी, कुल्लू और चंबा जिलों की 4-4 सीटें, किन्नौर, लाहौल और स्पीति जिलों की एक-एक विधानसभा सीटें शामिल हैं।

बीज और खाद से लेकर गाय के गोबर तक हर चीज की कीमतें बढ़ गई: किसान

किसानों का कहना है कि बीज और खाद से लेकर गाय के गोबर तक हर चीज की कीमतें बढ़ गई हैं। ऊपर से तुर्की जैसे देशों के सस्ते सेबों ने बाजार में बाढ़ ला दी है, जिससे कीमतों में गिरावट आई है।किसानों का कहना है कि सरकार एमएसपी पर काम नहीं कर पाई है, जिसके कारण दूसरे राज्यों और देशों के सेब के सामने यहां के उत्पादक मात खा रहे हैं। सेब व्यवसाय से करीब दो लाख लोग सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। कोरोना के बाद से पर्यटन उद्योग चौपट है और सेब व्यवसाय का भी वही हाल हो गया है।

इस बार के चुनाव में भाजपा ने पैकेजिंग पर जीएसटी को घटाकर 12 फीसदी करने और किसी भी अतिरिक्त उपकर को माफ करने का वादा किया है। कांग्रेस, जो विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय भागीदार रही है, ने एमएसपी मुद्दे पर फैसला करने के लिए एक समिति का वादा किया है। अब देखना होगा कि सेब बेल्ट किसके पक्ष में वोट करती है और सेब किसके लिए मीठा साबित होगा।



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Deepak Kumar

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