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Landslide In Himachal: हिमाचल में भूस्खलन का कहर, रास्तों पर चलने से डर रहे लोग
प्राकृतिक सौंदर्य का गढ़ माना जाने वाला हिमाचल प्रदेश अब प्राकृति आपदाओं का केंद्र बन गया है। राज्य में बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं आम हो गई हैं।
Landslide In Himachal: प्राकृतिक सौंदर्य का गढ़ माना जाने वाला हिमाचल प्रदेश अब प्राकृति आपदाओं का केंद्र बन गया है। राज्य में बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं आम हो गई हैं। इस साल भूस्खलन की ढेरों घटनाएँ हो चुकी हैं जिसकी कड़ी में 11 अगस्त को किन्नौर जिले की एक और आपदा जुड़ गयी। इस घटना में रिकांग पियो-शिमला राजमार्ग पर भूस्खलन में एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी।
इस साल 13 जून के बाद से अब तक विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 27-28 जुलाई को लाहौल-स्पीति में भारी बारिश से सात लोगों की, केलांग और उदयपुर में बादल फटने से 12 लोगों की, 25 जुलाई को किन्नौर में पत्थरों के गिरने से नौ लोगों की मौत हो गई थी।
इस साल जिस तरह एक के बाद एक पहाड़ दरक रहे हैं उससे स्थानीय निवासी और बाहर से आये सैलानी, सब दहशत में हैं। जून में जिस तरह सैलानियों का हुजूम हिमाचल में आ गया था वह अब नदारद हो चुका है। अब लोग हिमाचल आने से डर रहे हैं, ख़ास कर ज्यादा ऊँचाई वाले इलाकों में जाने वालों की संख्या में खासी कमी आई है। किन्नौर में पहाड़ों के दरकने की घटनाओं को देख अब लोग रास्तों पर चलने से डर रहे हैं।
किन्नौर जिले में पहाड़ों के दरकने की असंख्य घटनाएं हो चुकी हैं
किन्नौर जिले में बीते कुछ दशकों में ही पहाड़ों के दरकने की असंख्य घटनाएं हो चुकी है। यहां के एक बड़े वर्ग का मत है कि किन्नौर जिले में बीते दो-तीन दशकों में ही कई भूमिगत जल विद्युत परियोजनाएं सहित कई सड़कों का भी निर्माण हुआ है। इन सभी कार्यों में अत्यधिक विस्फोटकों के प्रयोग होने से यहां की पहाड़ियां जर्जर हो चुकी है। इन विस्फोटों के कारण पहाड़ों में आई दरारों में बारिश व बर्फ का पानी रिसाव होने से इस तरह की घटनाओं का रूप ले रही हैं जो किन्नौर के लिए बेहद खतरनाक होता जा रहा है। न्यूगलसेरी के पास भूस्खलन की जो ताजी घटना हुई है, ठीक उसके नीचे से करीब तीन दशक पूर्व भूमिगत जल विद्युत परियोजना का भी निर्माण हुआ है।
इन आफतों के लिए के लिए इंसान जिम्मेदार
हिमाचल प्रदेश में हर साल बादल फटने, अत्यधिक बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कारण प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन आफतों के लिए के लिए इंसान ही जिम्मेदार हैं और इन्हें मानव निर्मित आपदाएं कहना ज्यादा उचित होगा। दरअसल, उच्च हिमालयी क्षेत्र जलवायु और पारिस्थितिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील हैं।
लेकिन इसके बावजूद इन क्षेत्रों में बड़े बड़े हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट लगाये गए हैं जो प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनते हैं। हिमाचल की तरह उत्तराखंड की भी यही दशा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में खास्स्तौर पर चंबा, किन्नौर, कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर और ऊना जिलों में अचानक बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सबसे अधिक खतरा है।
जलवायु परिवर्तन के चलते बारिश का तरीका बदल रहा है और गर्मियों में तापमान सामान्य से कहीं अधिक पर पहुंच रहा है। ऐसे में बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा देना कहीं से उचित नहीं है। बिजली परियोजनाओं के अलावा भी कई अन्य कारण हैं, जैसे कि हिमालयी क्षेत्रों में सड़कों का गलत तरीके से निर्माण, अंधाधुंध निर्माण कार्य और बढ़ता शहरीकरण।
भूस्खलन से बचने के लिए बांधों और सुरंगों के निर्माण को रोकना होगा
मिसाल के तौर पर मनाली से रेकोंग पियो तक पूरे रास्ते में निर्माण कार्यों की भरमार है। जो भी कसबे या शहर हैं वहां बड़े पैमाने पर बिल्डिंगें खड़ी कर दी गयी हैं। भूवैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में भूस्खलन से बचने के लिए बांधों और सुरंगों के निर्माण को रोकना होगा। यदि इन्हें नहीं रोका गया तो आने वाले समय पर बड़ा विनाश देखने को मिल सकता है।
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय की उंचाईयों में पहले बहुत सारे ग्लेशियर हुआ करते थे लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण अब कई ग्लेशियर पिघल गए हैं। जिसके चलते बाढ़ आती रहती है। जलवायु परिवर्तन से संबंधित पैनल आईपीसीसी ने चेतावनी दी है कि 21वीं सदी में ग्लेशियर कम होंगे और हिमरेखा की ऊंचाई बढ़ेगी। इसी तरह उत्सर्जन में वृद्धि के साथ ग्लेशियर के द्रव्यमान में और गिरावट आएगी। यह एक बड़ा खतरा है।