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माथे की बिंदी हिंदी

Dr. Yogesh mishr
Published on: 14 Nov 2018 2:55 PM IST
पिछले दिन हिंदी के लिए बेहद शुभ दिन थे। बीते दिनों में हिंदी को दो बड़े उपहार मिले। पहला, संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिंदी में अपनी ट्वीटर सेवा शुरू की। दूसरा, देश के मुख्य न्यायाधीश तरुण गोगोई ने यह आदेश दिया कि अब सर्वोच्च अदालत के फैसले हिंदी भाषा में भी उपलब्ध होंगे। 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में जब पहला विश्व हिंदी सम्मेलन गांधी जी द्वारा स्थापित राष्ट्र भाषा प्रसार समिति की पहल पर हुआ था तब भी दो फैसले हुए थे। पहला, संयुक्त राष्ट्र में हिंदी आधिकारिक भाषा हो। दूसरा, वर्धा में विश्व हिंदी विद्या पीठ की स्थापना हो। इन दोनों लक्ष्यों में हम डेढ़ हासिल कर चुके हैं। इसकी भी वजह केवल भारत के ही लोग नहीं, बल्कि हमारे वो लोग भी हैं जिन्होंने मजदूर बनकर दुनियाभर में अपने पैर पसारे।




हिंदी भारत के माथे की बिंदी है। तैतीस करोड़ लोग दुनिया में ऐसे हैं जिनकी पहली भाषा हिंदी है। 54.4 करोड़ लोग दुनिया में हिंदी भाषी हैं। दुनिया के 150 से अधिक विश्व विद्यालायों में हिदी पढ़ाई जाती है। चीन भी हिंदी की रचनाओं का अनुवाद करता है। अमेरिका में अंगेजी के बाद बोली जाने वाली भाषाओं की हैसियत हिंदी को हासिल है। फिजी में हिंदी आधिकारिक भाषा है। न्यूयार्क की संस्था ‘द वल्र्ड आल्मेनक एंड बुक, आॅफ फैक्टस‘ के 1999 के न्यूज पेपर इंटरप्राइजेज एसोसिएशन के अंक के मुताबिक दुनिया भर में हिंदी बोलने वालों की संख्या 130 करोड़ हो गई है। जो सबसे ज्यादा है। हालांकि संयुक्त राष्ट्र अब भी हिंदी को चीनी और अरबी के बाद तीसरे स्थान पर रखता है। चीन में 301 भाषाएं बोली जाती हैं। जबकि भारत में 453 भाषाएं और बोलियां हैं। छोटे से देश पापुआ न्यूगिनी जिसकी आबादी ण्क करोड़ से भी कम है वहां 840 भाशाएं और बोलियां अस्तित्व में हैं। ज्ञान के सबसे बड़े सर्च इंजन विकीपीडिया ने अपने सर्वेक्षण में दुनिया के सौ भाषाओं की जो सूची जारी की उसमें हिंदी को चैथा स्थान दिया।




ऐसा इसलिए किया क्योंकि हिंदी ही अंग्रेजी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। हिंदी को कमजोर करके देश की सांस्कृतिक अस्मिता को आसानी से कमजोर किया जा सकता है। नेट पर दुनिया में हिंदी अंग्रेजी को पछाड़ रही है। गूगल को हिंदी की हैसियत पता थी इसीलिए अपनी 20वीं साल गिरह पर हिंदी और भारतीय भाषाओं के प्लेटफार्म शुरू किये। उस समय गूगल ने माना था कि इंटरनेट पर हिंदी की सामग्री की खपत में सालाना 94 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। इंटरनेट पर एक अरब से ज्यादा लोग अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं, जो कुल वैश्विक उपयोगकर्ताओं को 25.3 फीसदी है। जबकि 20 फीसदी हिस्सेदारी के साथ चीनी भाषा दूसरे पायदान पर है। ऐसा महज इसलिए है क्योंकि इंटरनेट 55.8 फीसदी सामग्री अंग्रेजी में है। जबकि हिंदी में इंटरनेट पर सामग्री की उपलब्धता 0.1 फीसदी है। अरबी भाषा की सामग्री इंटरनेट पर 0.8 फीसदी है। गौरतलब है कि दुनिया की 5 फीसदी से कम आबादी अंग्रेजी को पहली भाषा के रूप में इस्तेमाल करती है। केवल 21 फीसदी लोग अंग्रेजी की समझ रखते हैं। केपीएमजी और गूगल की एक रिपोर्ट बताती है कि 2020-21 में हिंदी और भारतीय भाषाओं की हिस्सेदारी 53.6 फीसदी हो जाएगी और अंग्रेजी की 19.9 फीसदी रह जाएगी।




फिर भी भारत में अंग्रेजी राजकाज की भाषा बनी हुई है। हिंदी भले ही राजभाषा हो पर अंग्रेजी के आगे उसे प्रजाभाषा का ओहदा हासिल है। हिंदी की किसी भारतीय भाषा से कोई प्रतिस्पर्धा या प्रतियोगिता नहीं है। बावजूद इसके हिंदी बनाम भारतीय भाषाओं की लड़ाई बनाने में ‘अंग्रेजी दां‘ लगातार कामयाब हो जाते हैं। अब हिंदी का विरोध मुट्ठी भर इलाके में रह गया है। पर हैरतंगेज यह है कि जो लोग हिंदी का विरोध करते हैं वे भारतीय भाषाओं के समर्थक नहीं हैं। उनके लिए अंग्रेजी भाषा नहीं है, ‘स्टेटस सिंबल‘ है। भाषा के स्तर पर हिंदी की अंग्रेजी से भी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है। क्योंकि कोई भी राजनेता, कलाकार, संगीतकार, विचारक, धर्मगुरु अगर भारत में अपने विस्तार और पहचान की कामना रखता है तो वह जानता है कि उसे हिंदी आनी ही चाहिए। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी गुजराती थे। बाल गंगाधर तिलक मराठी थे। सुभाष चंद्र बोस बंगाली थे। ऐसे अनेक नाम आप स्वतंत्रता आंदोलन के दौर के ले सकते हैं जो दूसरे भाषा के थे पर देश के आवाम को संबोधित करने के लिए उन्होंने हिंदी अपनाई। भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण में इस बात का जिक्र किया है कि हिंदी में ठीक से संप्रेषण न कर पाने की वजह से वह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहंुच सके। इनके कार्यकाल में राष्ट्रपति सचिवालय में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी से स्पष्ट हुआ कि 2016-17 के दौरान 799 निविदा दस्तावेजों में से सिर्फ एक हिंदी में थी। इसके अलावा दया याचिका और यात्रा संबंधी जानकारियां और अन्य कामकाज के जो 1011 दस्तावेज वेवसाइट पर अपलोड किये गये थे, उसमें सिर्फ 14 हिंदी में थे। देवगौड़ा ने भी प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद हिंदी सीखी थी। मनोविज्ञान की मानें तो खंीझ, गुस्सा, अहंकार की अवस्था में मनुष्य अपना भाषाई संतुलन खो बैठता है। भाषा केवल अभिव्यक्ति या उपस्थिति तक सीमित नहीं होती। मूर्त और प्रत्यक्ष दुनिया से भी जोड़ती है। समानांतर दुनिया भी रचती है। प्राथमिक शिक्षा हिंदी में होनी चाहिए यह शिक्षा को लेकर गठित हर आयोग की सिफारिश है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी अपनी प्रतिनिधि सभा से यह प्रस्ताव पास करवाया कि प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा या भारतीय भाषा में हों। बावजूद इसके प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा या भारतीय भाषा में ग्रहण करना गरीबी की पहचान है। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को लेकर अभी आधा कदम हमारा जो शेष है, वह तभी पूरा हो सकता है जब हम हिंदी को भारत में राजभाषा का मान दिलवा लें और हिंदी बोलने वालों को सम्मान। हाल फिलहाल यही दूर की कौड़ी है। 71 साल बाद हिंदी सर्वोच्च अदालत में जगह बना पाई है। अभी सेना, आर्थिक मंत्रालयों, वाणिज्य, व्यापारिक, वैज्ञानिक और चिकित्सकीय महकमों में हिंदी इस हक के इंतजार में है। यह इंतजार जब खत्म हो जाएगा तभी संयुक्त राष्ट्र में आधे बचे कदम के पूरा होने की उम्मीद की जानी चाहिए।






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Dr. Yogesh mishr

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