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इन बुर्जियों के सीने में दफन है 150 साल का इतिहास

आज मैं उदास हूं! मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं अपने अतीत पर गौरवान्वित हूं या वर्तमान पर! क्योंकि हमारे सीने में लगभग 150 साल का इतिहास दफन है।

Roshni Khan
Published on: 18 Feb 2020 4:52 AM GMT
इन बुर्जियों के सीने में दफन है 150 साल का इतिहास
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इन बुर्जियों के सीने में दफन है 150 साल का इतिहास

दुर्गेश पार्थ सारथी

अमृतसर: आज मैं उदास हूं! मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं अपने अतीत पर गौरवान्वित हूं या वर्तमान पर! क्योंकि हमारे सीने में लगभग 150 साल का इतिहास दफन है। यहां तक कि हमने वर्तानवी हुकूमत से लेकर भारत के विभाजन तक को देखा है। और तो और एक नया देश पाकिस्तान बनने के सरहद के इस पार व उस पार आने- जाने वालों का कत्लेआम होते भी देखा है। हमने रिफ्यूजियों के कैंप देखे हैं तो लाशों से भरी पाकिस्तान से आने रेलगाडियों को भी देखा है। आखिर मैं मिनार हूं, जिसके एक तरफ अमृतसर से लाहौर को जाती रेल पटरियां तो दूसरी तरफ पल्टन की छावनी। वर्तमान में मैं जीटी रेड के बीच-ओ-बीच खड़ा हूं।

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पहचान तलाश रही बुर्जियां

डेढ़ सौ सदी के इतिहास का गवाह रहा मैं खुद अपनी पहचान खो चुका हूं। कोई मुझे शेरसाह सूरी द्वारा बनवाया गया कोस मिनार समझता है तो कोई मुझे मामूली सा स्तंभ समझकर रंगबिरंगे इस्तिहार चिपका देता है। यहां तक कि पंजाब सरकार भी हमारी पहचान को लेकर पशोपेस में है कि मैं कौन हूं। लेकिन मैं खुश हूं कि इसी पशोपेश में हमारा वजूद कायम है, वर्ना विकास के दौर में सारागढ़ी की याद में बनवाए गए स्कूल की इमारत की तरह मैं भी जमींदोज हो जाता। हमने खालासा काले की भव्य इमारत को बनते हुए देखा है तो उधम सिंह को पुतली घर स्थित यतीम खाने में पलते हुए भी देखा है।

लाहौर से जनरल डायर को अमृतसर आते देखा है तो 1862 में पहली बार अमृतसर से कसूर तक रेल चलते हुए भी देखा है। यहां तक कि देश की आजादी के बाद पहले प्रधान मंत्री पं जवाहरलाल नेहरू को खुली जीप में कैंट रोड पर जाते हुए भी देख है। पर हमें हंसी आती है पंजाब टुरिज्म विभाग और आक्र्योलाॅजिकल डिपार्टमेंट के अधिकारियों पर जिनके पास हामरी कोई जानकारी नहीं है। खैर मै तो स्तंभ हूं, खड़ा रहना हमारी नीयति है।

दुरिज्‍म विभाग के पास नहीं है जानकारी

जी हां! यह दर्द है अमृतसर-बाघा जीटी रोड पर स्थित एक दूसरे के समानांतर बनी दो मिनारों का। इन मिनारों के बारे में न तो पंजाब पर्यटन विभाग के अधिकारियों के पास कोई जानकारी है और ना ही आक्र्योलाॅजिकल विभाग के पास। जीटी रोड के बीच-ओ-बीच स्थित बेलनाकार लगभग 12 फुट उंची लखौरी ईंटो से बनी इन मिनारों के पास से रोजाना हजारों वाहन व पर्यटक गुजरते हैं और इन मिनारों को कौतूहल भरी निगाहों से देखते भी हैं, लेकिन इनके बारे में कोई जानकारी न होने के कारण मन मसोस कर रह जाते हैं।

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1851 में अंग्रेज अधिकार एमई मैकलोड ने करवाया था निर्माण

लगभग एक सदी के इतिहास को नजदिक से देखने वाली इन मिनरों के बारे में इतिहासकार सुरेंद्र कोछड़ बताते हैं कि इनका निर्माण 1851-52 में पंजाब के फाइनांस कमिश्नर एमई मैकलोड ने करवाया था। मैकलोड ने छावनी से किला गोविंदगढ़ के बीच कुल 8 बुर्जियों का निर्माण करवाया था। ये बुर्जियां छावनी से किला गोविंदगढ़ तक जाती सड़क के दानो तरफ बनवाई गई थीं।

रास्‍ते की पहचान के लिए करवाया था निर्माण

इतिहासकार कोछड़ की मानें तो तत्कालीन समय में इस इलाके में जंगल हुआ करता था और सड़क के दोनों तरफ ढाब हुआ करते थे। अंग्रेज सैनिक छावनी से किला गोविंदगढ़ की तरफ आते समय इन्ही ढाबों में गिर जाते थे। अतः इनका निर्माण निशानदेही के तौर पर करवाया गया था। बाद में इन ढाबों को अंग्रेज अधिकारियों ने भरवा दिया। इसके बाद अहाता सूरा जो आज पुतली घर के नाम से जाना जाता है विकसित हुआ। और किला से कैंट को जाती सड़क को फाइनांस कमिश्नर के नाम पर मैकलोड रोड का नाम दिया गया।

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आठ में से बची हैं दो बुर्जियां

1862 में अमृतसर- लाहौर के बीच रेल पटरी बिछाने के बाद इस रास्ते को बंद कर रिंगो वृज का निवर्माण किया गया, जिससे हो कर अंग्रेज अधिकारी किला गोविंदगढ़ तक आने-जाने लगे और पुरानी सड़क पर रेलवे ने लोको शेड का निर्माण कर दिया। कालांतर में आठ बुर्जियों में छह बुर्जियां जमींदोज हो गई, जबकि जीटी रोड पर स्थित एक दूसरे के समानान्तर खडी ये दो बुर्जियां अपने स्तीत्व की जंग लड़ रही हैं।

Roshni Khan

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