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Bridge Collapsed Video: ढह चुके सैकड़ों पुल, लगे लाशों के भयावह ढेर, बर्बाद हुए परिवारों का जिम्मेदार कौन ?

Bridge Collapsed in India: दुर्भाग्य की बात है कि पुल ढहने की दुर्घटनाओं जान माल की भयानक हानि के बावजूद किसी को सख्त सज़ा होने की जानकारी आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई है। हम कुछ बड़ी घटनाओं का ज़िक्र करते हैं।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 3 Nov 2022 3:53 PM GMT
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Bridge Collapsed in India: गुजरात के मोरबी में अब तक का सबसे बड़ा हादसा सामने आया है। इसे लेकर चारों तरफ़ कोहराम मचा है। लोग परेशान हैं। समूचे देश में पुल ढहने से इतनी बड़ी दुर्घटना कभी नहीं हुई। इसलिए यह दुर्घटना जेरे बहस भी है। लोग यह साबित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं कि आख़िर इस दुर्घटना के लिए ज़िम्मेदार कौन है? अभी तक अंतिम तौर पर ज़िम्मेदारी तय नहीं हो पाई है। लेकिन ऐसा नहीं कि यह पहला हादसा है और इस हादसे से हम लोग कोई सबक़ ले लेंगे। इसके पहले 1977 से 2017 के चार दशकों में पूरे भारत में 2,130 पुल ढह चुके हैं। इसके कारण अलग अलग हैं। इन्हें कभी प्राकृतिक आपदाओं के नाम पर दबा दिया जाता है। कभी ब्लेम गेम होता है। और कभी भी अंतिम ज़िम्मेदार आदमी पकड़ में नहीं आता है। चाहे वो कांस्ट्रक्शन कंपनी का आदमी हो , चाहे वो मेंटेनेंस का आदमी हो, चाहे डिज़ाइनर हो या जो पुल पर क्षमता से अधिक लोगों को आने की इजाज़त देता हो।

चार दशकों में 2,130 पुलों के ढहने की दास्तान एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल बयान करता है। इस अंतरराष्ट्रीय जर्नल का नाम स्ट्रक्चर एंड इन्फ़्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग है। इसके मुताबिक़ भारत में प्राकृतिक आपदाओं के चलते 80.3 प्रतिशत पुल के बुनियादी ढांचे की विफलता पर सबसे विनाशकारी प्रभाव डाला है। प्राकृतिक आपदाओं के अलावा, पुलों के ढहने की घटनाओं में 10.1 फ़ीसदी घटनाएँ सिर्फ़ इसलिये घटी हैं। क्योंकि उसमें घटिया निर्माण सामग्री का उपयोग किया गया था। दिलचस्प यह है कि ओवरलोडिंग के मामले में 3.28 फ़ीसदी पुल ही ढहे हैं। अध्ययन में कहा गया है कि पुलों के विफल होने के अन्य प्रमुख कारण हैं विस्फोट और वाहनों या जहाजों के साथ दुर्घटनाएं।

दुर्भाग्य की बात है कि पुल ढहने की दुर्घटनाओं जान माल की भयानक हानि के बावजूद किसी को सख्त सज़ा होने की जानकारी आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई है। हम कुछ बड़ी घटनाओं का ज़िक्र करते हैं।

बड़ी घटनाएँ

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के बिजनबाड़ी में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) की बैठक के समय भीड़ के दबाव में एक झरने के ऊपर बना लकड़ी का पुराना फुटब्रिज गिर गया। इस हादसे में बत्तीस लोगों की मौत हो गई थी। और 60 से अधिक लोग घायल हो गए। यह पुल 18 सितंबर, 2011 को आए भूकंप से कमजोर हुआ था। और बड़ी संख्या में भीड़ जमा होने पर ज़मींदोज़ हो गया।

दार्जिलिंग की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के ठीक एक हफ्ते बाद 29 अक्टूबर, 2011 को अरुणाचल प्रदेश के कामेंग नदी पर एक फुटब्रिज गिर गया। यह पुल उस समय गिरा। जब 63 लोग "तारी" नामक कीट को पकड़ने के लिए उस पुल पर इकट्ठा हुए थे। पुल का निर्माण 1987 में किया गया था । 1992 में इसे चालू किया गया। इस घटना में कम से कम 30 लोग मारे गए। जिसमें ज्यादातर बच्चे ही थे।

2016 में उत्तरी कोलकाता के एक भीड़भाड़ वाले बाजार इलाके में 2.2 किमी लंबे फ्लाईओवर के एक निर्माणाधीन हिस्से के गिरने से 26 लोगों की मौत हो गई थी। 60 से अधिक लोग घायल हो गए थे। हैदराबाद स्थित कंपनी आईवीआरसीएल, जो फ्लाईओवर का निर्माण कर रही थी, इसने हादसे को "भगवान का कार्य" बताया । इसे प्राकृतिक आपदा के रूप में चित्रित करने की मांग की ।

4 सितंबर, 2018 को इसी तरह की घटना में दक्षिण कोलकाता के 50 साल पुराने माजेरहाट पुल के एक हिस्से के ढहने से तीन लोगों की मौत हुई और 24 लोग घायल हो गए। यह हादसा बारिश के दौरान हुआ।

मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रेलवे स्टेशन के पास एक फुटओवर ब्रिज 14 मार्च, 2019 को ढह गया। जिसमें छह लोगों की मौत हुई और 30 लोग घायल हो गये थे। कम से कम तीन दशक पुराना यह ब्रिज आजाद मैदान पुलिस स्टेशन को कनेक्ट करता था। दिलचस्प यह है कि इस पुल का ऑडिट घटना से ठीक छह महीने पहले किया गया था। इस पुल के मेंटेनेंस का काम बीएमसी के हवाले था।

मार्च, 2012 में उत्तराखंड के पौड़ी जिले में एक निर्माणाधीन पुल ढह गया था । जिसमें छह लोग मारे गए और 18 अन्य घायल हो गए। अलकनंदा नदी पर बना यह पुल उस समय गिर गया जब मजदूर वहां काम कर रहे थे। हालांकि पुल के गिरने के कारणों का कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका ।

जून, 2014 में सूरत में एक निर्माणाधीन फ्लाईओवर पुल के गिरने से 10 मजदूरों की मौत हो गई । छह अन्य घायल हो गए। यह फ्लाईओवर पारले पॉइंट क्षेत्र को तापी नदी के पास अदजान से जोड़ने वाला केबल-वायर ब्रिज था। इस मामले में सूरत पुलिस ने तीन इंजीनियरों सहित 18 लोगों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया। ये लोग नगर निगम के पुल विभाग का हिस्सा थे। पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि पुल की डिज़ाइन और उसमें प्रयोग की गई सामग्री दोनों पुल के ढहने के लिए ज़िम्मेदार थे।

अगस्त 2016 में महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में एक फ्लाईओवर गिरने से 40 लोगों की मौत हो गई थी। 11 दिनों की लंबी खोज में कुछ शव बरामद हो सके जबकि बाकी की पहचान नहीं हो सकी। यह घटना उस समय हुई जब राज्य परिवहन की दो बसें और 10 निजी वाहन सावित्री नदी पर बने पुल को पार कर रहे थे। मानसून के कारण नदी उफान पर थी। यह पुल ब्रिटिश काल में बना था। इस पुल की उम्र उस समय 106 वर्ष थी। इस हादसे की भी कोई जवाबदेही और ज़िम्मेदारी तय ही नहीं की गई।

गोवा के कुरचोरम गांव में पुर्तगाली युग का एक पुल मई, 2017 में ढह गया। जिसमें 2 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि कई लापता हो गए थे। सैनवोर्डेम नदी पर बने फुटब्रिज की भी अच्छी स्थिति नहीं थी। यह उस समय ढहा। जब राज्य अग्निशमन और आपातकालीन सेवा के लोग एक व्यक्ति को बचाने के लिए काम कर रहे थे, जो संभवतः एक आत्महत्या के प्रयास में नदी में कूद गया था। बचाव अभियान देखने के लिए पुल पर पचास लोग जमा हो गए थे। इसी के चलते पुल ढह गया। लेकिन इस घटना के लिए भी किसी को जिम्मेदार ठहराया ही नहीं जा सका।

वाराणसी में 2018 में हाल के दिनों में सबसे भयानक फ्लाईओवर दुर्घटना हुई। वाराणसी-इलाहाबाद राजमार्ग की ओर जाने वाली सड़क पर एक फ्लाईओवर का एक हिस्सा दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें 18 लोग मारे गए और बहुत से लोग घायल हो गए। उस फ्लाईओवर का जो हिस्सा ढहा, वह सरकारी सहयोग से बनाया जा रहा था। कई मिनी बसें, दो पहिया वाहन और कारें पुल के नीचे आ गये। इस पुल का उद्घाटन सिर्फ़ तीन महीने पहले ही हुआ था।

उत्तर प्रदेश में और भी ऐसी दास्तान हैं। बुंदेलखंड में मायावती के दौर में एक पुल का एक तरफ़ से मंत्री जी उद्घाटन कर रहे थे। दूसरी तरफ़ से पुल ज़मींदोज़ हो गया। कोई ऐसी सरकार नहीं है जिसके कार्यकाल ही में बना पुल उसके कार्यकाल के आसपास ही न ज़मींदोज़ हो जाता हो। सवाल यह उठता है कि इसकी जवाबदेही तो तय ही की जानी चाहिए । जिन मामलों में घटिया सामग्री के उपयोग की बात सामने आती है, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी ही चाहिए । ऐसा नहीं होने की वजह से ये घटनाएँ भारत में रूकने का नाम नहीं ले रही हैं? मोरबी घटना में भी कुछ ऐसा ही है कि अगर ज़िम्मेदारी तय हो जायेगी तो निश्चित तौर से आने वाले दिनों में ऐसी घटनाएँ नहीं होंगी। जिस तरह ब्लेम गेम खेला जा रहा है, जिस तरह नगर पालिका, ज़िला प्रशासन,राज्य सरकार और पुल की मरम्मत देखने वाली कंपनी इन सब के बीच एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है, उसे देख के कहा जा सकता है कि निश्चित तौर से इसमें भी कोई ज़िम्मेदार नहीं होगा। अगर इसमें कोई ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाता है तो हमें यह मान लेना चाहिए कि यह सिलसिला अंतहीन है। ऐसे प्राकृतिक आपदाओं में हम अपनी जान गँवाते रहेंगे।

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