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धर्मग्रंथों में मिलता है छठ का उल्लेख, व्रतियों को ना हो कष्ट इसका रखते हैं ख्याल

:महापर्व छठ की शुरुआत होने वाली है सूप व फल से बाजारों की रौनक बढ़ गई है। हर तबके के लोग इस पर्व में आस्था रखते  है।लोकआस्था के पर्व छठ की तैयारियां अंतिम चरण में है।

suman
Published on: 30 Oct 2019 7:12 AM IST
धर्मग्रंथों में मिलता है छठ का उल्लेख, व्रतियों को ना हो कष्ट इसका रखते हैं ख्याल
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जयपुर:महापर्व छठ की शुरुआत होने वाली है सूप व फल से बाजारों की रौनक बढ़ गई है। हर तबके के लोग इस पर्व में आस्था रखते है।लोकआस्था के पर्व छठ की तैयारियां अंतिम चरण में है। आस्था के इस अनूठे पर्व की चर्चा ऋग्वेद में भी की गई है। इस पर्व में कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी आौर सप्तमी को अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्यदेव की उपासना की जाती है और भगवान भास्कर को अर्घ्य देते है।

सूयोर्पासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है। सूर्यषष्ठी होने के कारण इसे 'छठ' कहते है। सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को पुरुष और महिला सामान रूप से मनाते हैं, लेकिन आमतौर पर व्रत करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है।

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मान्यताओं के अनुसार, इस अनुपम महापर्व को लेकर कई लोक कथाएं हैं। कहते हैं कि सूर्य की उपासना की चर्चा ऋग्वेद में मिली है। ऋग्वेद में देवता के रूप में सूर्यवंदना का उल्लेख है। ऋग्वेद में 'सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च' अथार्त सूर्य को जगत की आत्मा, शक्ति व चेतना होना उजागर करता है।

धार्मिक ग्रंथों में वर्णित एक कथा के अनुसार संतान प्राप्ति के लिए राजा प्रियवद द्वारा सर्वप्रथम इस व्रत को करने का वर्णन है। महाभारत में सबसे पहले कर्ण ने द्वारा सूर्यदेव की पूजा का वर्णन है। द्रौपदी भी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य उपासना करती थीं, जिसका प्रमाण मिलता है।

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मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। छठ पर्व के दौरान घरों से लेकर घाटों तक पारंपरिक छठ गीत गूंजते रहते हैं। इस दिन गांव से लेकर शहरों तक के लोग छठव्रतियों को किसी प्रकार का कष्ट न हो इसका पूरा ख्याल रखते हैं



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