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COVID Super-Immunity Secrets: जिनको कभी नहीं हुआ कोरोना, आखिर क्या है सुपर इम्यूनिटी का राज़?

COVID Super-Immunity Secrets: 11 मार्च,2020 से दुनिया भर में 67 करोड़ 60 लाख से अधिक लोगों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है। अमेरिका के सीडीसी के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत अमेरिकी आबादी में कोरोना हो चुका है। लाखों और छूटे हुए मामले हो सकते हैं क्योंकि व्यक्तियों में कभी लक्षण नहीं थे। भले ही करोड़ों लोगों को टीका लगाया गया है और लोगों ने सावधानियों का पालन किया गया है, फिर भी वे कोरोना से बीमार हो चुके हैं।

Neelmani Laal
Published on: 14 April 2023 1:29 AM IST

COVID Super-Immunity Secrets: कोरोना महामारी के तीन साल हो गए हैं, लगता है जैसे सबको कोरोना हो ही चुका है लेकिन ये सच्चाई नहीं है। सच्चाई ये है कि बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको कोरोना की लहरों के बावजूद संक्रमण हुआ ही नहीं। ये ऐसी चीज है जिसे कभी असम्भव माना जाता था लेकिन इन लोगों का कभी भी कोरोना पॉजिटिव रिजल्ट नहीं आया। दुनिया भर के वैज्ञानिक इस ‘सुपर इम्यूनिटी’ का राज़ जानने के एकोशिश में लगे हुए हैं। वैज्ञानिक ढूंढ रहे हैं वो आनुवंशिक कारण जिसके चलते इन लोगों ने बार-बार वायरस के संपर्क में आने के बावजूद कोरोना को चकमा दिया। सवाल बड़ा है – क्या ऐसे लोग सुपर इम्युनिटी के रूप में पैदा हुए थे?

67 करोड़ से ज्यादा हो चुके हैं संक्रमित

11 मार्च,2020 से दुनिया भर में 67 करोड़ 60 लाख से अधिक लोगों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि हुई है। अमेरिका के सीडीसी के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत अमेरिकी आबादी में कोरोना हो चुका है। लाखों और छूटे हुए मामले हो सकते हैं क्योंकि व्यक्तियों में कभी लक्षण नहीं थे। भले ही करोड़ों लोगों को टीका लगाया गया है और लोगों ने सावधानियों का पालन किया गया है, फिर भी वे कोरोना से बीमार हो चुके हैं। फिर भी वैज्ञानिकों का मानना है कि यह संभव है कि कुछ लोग कभी संक्रमित नहीं हुए हैं क्योंकि वे कोरोना का कारण बनने वाले वायरस के खिलाफ एक तरह के जेनेटिक कवच से लैस रहे हैं।

क्या कोरोना के प्रति इम्यूनिटी संभव है?

न्यूयॉर्क में रॉकफेलर विश्वविद्यालय के बाल रोग विशेषज्ञ, आनुवंशिकीविद् और प्रोफेसर डॉ. जीन-लॉरेंट कैसानोवा का कहना है कि - हम दुर्लभ आनुवंशिक रूपों की खोज कर रहे हैं जो लोगों को कोरोना संक्रमण के लिए प्रतिरोधी बनाते हैं। अगर हम उन्हें खोज लेते हैं ये बहुत महत्वपूर्ण होगा। डॉ कैसानोवा ‘कोरोना ह्यूमन जेनेटिक एफर्ट’ नामक प्रोजेक्ट में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के साथ काम कर रहीं हैं। टीम के क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. एंड्रास स्पान का कहना है कि - ऐसे कुछ जीन हैं जिन पर हमारा ध्यान है। उनमें से एक ‘एसीई - 2’ है जिसे कोरोना को शरीर में घुसपैठ करने में मदद करने के लिए जाना जाता है।

दुनिया भर में एक हजार लोगों पर स्टडी

वैज्ञानिकों का कहना है कि सिद्धांततः कुछ लोगों के पास ऐसा डीएनए हो सकता है जो उलटा काम करता है यानी एसीई – 2 या अन्य जीन को कोरोना आक्रमण की अनुमति देने से रोकता है। यदि शोधकर्ता एक सुरक्षात्मक जेनेटिक कारक को ढूंढ निकलते हैं तो यह संभव है कि वे संक्रमण को रोकने और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दवाएं भी डेवलप कर सकते हैं। इस क्रम में वैज्ञानिकों ने दुनियाभर में एक हजार लोगों को स्टडी में शामिल किया है। इन स्वयंसेवकों के डीएनए का अध्ययन करने के लिए लार के नमूनों का उपयोग किया गया है। लेकिन ये पाया गया कि स्टडी के कई शुरुआती वालंटियर्स अंततः कोरोना वायरस से संक्रमित हो ही गए खास कर 2022 में अत्यधिक संक्रामक ओमीक्रान के आने के बाद। लेकिन कुछ वालंटियर्स कभी संक्रमित नहीं हुए। तमाम रिस्क फैक्टर्स के बावजूद उन पर ओमीक्रान का कोई असर नहीं हुआ। ऐसे ऐसे वालंटियर्स हैं जो घातक डेल्टा वेरियंट से संक्रमित लोगों से मिले, उनके करीबी संपर्क में आए लेकिन खुद कभी संक्रमित नहीं हुए।

ऐसा तो हमेशा से हुआ है

कुछ लोगों की जबर्दस्त इम्यूनिटी कोई अनसुनी चीज नहीं है। ऐसे ऐसे लोग हुए हैं जिनके जीन उन्हें एचआईवी जैसे अन्य वायरस से बचाते हैं। कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें एचआईवी से पीड़ित लोगों को संभवतः स्वाभाविक रूप से इम्यून डोनर्स से स्टेम सेल प्रत्यारोपण से ठीक किया गया है। यूनाइटेड किंगडम में कोरोना महामारी के आरंभ में वैज्ञानिकों ने एक शोध के क्रम में जानबूझकर लोगों को संक्रमित करने की कोशिश की थी। ये एक बहुत छोटी स्टडी थी जिसमें सिर्फ 36 स्वस्थ युवा पुरुष और महिलाएं शामिल थीं। इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों की नाक में वायरस का एक छोटा सा अंश डाला और फिर उनको सावधानीपूर्वक आब्ज़र्व किया गया। हल्के लक्षणों का अनुभव करते हुए आधे प्रतिभागी संक्रमित हो गए। लेकिन आधे संक्रमण-मुक्त रहे। शोध का नेतृत्व करने वाले इम्पीरियल कॉलेज लंदन में प्रायोगिक चिकित्सा के प्रोफेसर पीटर ओपेंशॉ ने कहा कि जैसे-जैसे महामारी बढ़ती गई, वैसे-वैसे अधिकांश प्रतिभागियों में अंततः संक्रमण हो ही गया। यानी, किसी भी प्राकृतिक कोरोना प्रतिरक्षा की संभावना नहीं थी।

कोविड के संपर्क में आए, लेकिन कोई लक्षण नहीं

एक और इम्यूनिटी जीन के लिए खोज जारी है वहीं एसिम्प्टोमैटिक यानी बिना लक्षण वाला संक्रमण भी हैरान करने वाला है। लोगों को कभी पता ही नहीं चला कि उन्हें कोरोना हुआ है क्योंकि उनके शरीर ने वायरस को उन्हें बीमार करने से रोक दिया- न खांसी, न बुखार, न सांस लेने में परेशानी। महामारी की शुरुआत में किए गए एक अध्ययन में, जब नियमित टेस्टिंग आम बात थी तब ऐसा माना गया था कि 40 फीसदी से अधिक मामले बिना अलक्षण वाले हो सकते हैं। जब टेस्टिंग कम होती चली गयी तो सीडीसी ने ऐसे मामलों को ट्रैक करने की कोशिश बंद कर दी। वैज्ञानिक आज भी बिना लक्षण वाले कोरोना संक्रमण से हैरान हैं। ये पता ही नहीं चल पा रहा कि ऐसा क्या है जो पैर जमाने से पहले वायरस को साफ कर देता है।

इम्यून रिएक्शन का राज़

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में महामारी विज्ञान और जैव-सांख्यिकी विभाग इस राज़ की खोज करने की कोशिश कर रहा है। यहाँ न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर जिल होलेनबैक की प्रयोगशाला में मानव ल्यूकोसाइट एंटीजन, या एचएलए पर ध्यान केंद्रित किया गया है। एचएलए लगातार प्रतिरक्षा प्रणाली को दिखाता है कि वह कोशिकाओं के पास क्या चीजें पा रहा है। आम तौर पर ऐसी चीजें हानिरहित होती हैं जो शरीर में लगातार बनती रहती हैं। सो, इम्यून सिस्टम आमतौर पर इससे बेफिक्र रहते हैं। कभी-कभी एचएलए कुछ ऐसा पकड़ लेता है जिसे प्रतिरक्षा प्रणाली पहचान नहीं पाती है, जैसे कि कोरोना जैसा वायरस। तभी यह बचाव रिएक्शन ट्रिगर कर देता है। लेकिन एचएलए की क्षमताएं हर इंसान में अलग अलग होती हैं। सो प्रयोगशाला में यह पता किया जा रहा है कि एचएलए का कौन सा संस्करण विशेष रूप से प्रतिरक्षा प्रणाली को कोरोना से छुटकारा दिलाने में सक्षम है। एचएलए जीन वही होते हैं जिनका किसी अंग या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट देखने वाले लोगों में मिलान किया जाना चाहिए।

होलेनबैक की टीम ने महामारी की शुरुआत से अप्रैल 2021 तक अमेरिका के नेशनल डोनर प्रोग्राम के डेटा को खंगाला है जिसमें लगभग 13 मिलियन लोग शामिल हैं। डेटाबेस में इन सभी लोगों के एचएलए के प्रकारों का विवरण मौजूद है। होलेनबैक की टीम ने डेटाबेस के लगभग 30,000 लोगों को फॉलो किया है। इनमें से 13,000 से अधिक अंततः कोरोना पॉजिटिव हो गए। जबकि दस प्रतिशत पूरी तरह से बिना लक्षण वाले थे।

मजबूत प्रतिरक्षा

होलेनबैक की टीम ने एक सामान्य अनुवांशिक धागे की खोज की : ‘एचएलए-बी15:01’ नामक एक जीन। होलेनबैक ने पाया कि जिन लोगों के पास यह एचएलए संस्करण है, उनमें बिना लक्षण संक्रमण होने की संभावना दोगुनी से अधिक थी। यदि किसी व्यक्ति के पास जीन की दो कॉपी हों तो उस सुरक्षा को आठ गुना से अधिक बढ़ा दिया गया पाया गया। येल यूनिवर्सिटी में इम्युनोबायोलॉजी के प्रोफेसर अकीको इवासाकी का कहना है कि जिन लोगों को बिना लक्षण वाला कोरोना हुआ है उनमें संभावना है कि वे फिर कभी कोरोना से संक्रमित नहीं हो सकते हैं। ऐसे लोग एक मजबूत म्यूकोसल प्रतिरक्षा सिस्टम विकसित कर सकते हैं। यही है, जब वे वायरस के माहौल में सांस लेते हैं, तो प्रतिरक्षा कोशिकाओं की एक सेना जल्दी से उनके मुंह और नाक में इकट्ठी हो जाती है। यदि व्यक्ति फिर से सामने आता है तो वे कोशिकाएं वायरस की तलाश में रहती हैं।

यह संकेत दे सकता है कि इन लोगों ने बहुत मजबूत स्थानीय प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया विकसित की है जो भविष्य में संक्रमण को रोकती है। लार के नमूनों का उपयोग करने वाला भविष्य का शोध यह बताने में सक्षम हो सकता है कि क्या वे म्यूकोसल प्रतिरक्षा कोशिकाएं वास्तव में कोरोना की याददाश्त पर पकड़ रखती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली में एचएलए जीन का रूप शामिल है, उनमें पूर्व संक्रमणों को याद रखने की शानदार क्षमता होती है, जब उन्हें कुछ ऐसा लगता है जो पहले हो चुका है, तो तुरंत कार्रवाई में कूद जाते हैं।इसी वजह से बच्चे आमतौर पर कोविड के सबसे बुरे नतीजों से बचे रहे हैं। उनके छोटे शरीर पहले से ही श्वसन वायरस से बेहद परिचित होते हैं।



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