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दीपावली विशेष : धनतेरस से पंच दिवसीय दीप पर्व, ऐसे करें तैयारी
अमृता त्रिपाठी
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है और इसी के साथ पंच दिवसीय दीप पर्व शुरू हो जाता है। इसके अगले दिन अनंत चतुर्दशी या नरक चतुर्दशी फिर मूल पर्व दीपावली, इसके बाद गोवर्धन पूजा और अंत में होती है यम द्वितीया जिसे भाई दूज भी कहा जाता है। हमारे धर्मग्रंथों में सभी पर्वों की अलग-अलग कथाएं हैं।
धनतेरस क्या है
पुराणों के अनुसार देवासुर संग्राम में समुद्र मंथन पर भगवान धनवंतरि हाथों में स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए थे। धनवंतरि ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को अमर बना दिया। धनवंतरि के दो दिन बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं। इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
भगवान धनवंतरि देवताओं के वैद्य कहे जाते हैं। इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मान्यता है कि भगवान धनवंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरि का अवतार लिया था।
धनतेरस पर की एक और कथा है। काॢतक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञस्थल पर पहुंच गये। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे, इनकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं। वह देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं।
बलि ने गुरु शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गयी तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गये।
इस वजह से कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया। वामन शुक्राचार्य की चाल समझ गये। वामन ने अपने हाथ में रखी कुशा को कमंडल में प्रवेश कराया कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गयी। शुक्राचार्य छटपटाकर कमंडल से निकल आये। इसी बीच बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि दान कर दी। इसके बाद भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी नाप ली और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया।
बलि दान में अपना सबकुछ गंवा बैठे थे। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना अधिक धन-संपत्ति देवताओं को मिल गयी। कहा जाता है कि इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस पर्व मनाया जाता है। आधुनिक युग में इसीलिए इसे धन का पर्व मान लिया गया और इसी वजह से लोग इस दिन धन-संपदा खरीदते हैं। देश में हर जगह जहां-जहां यह पर्व मनाया जाता है, बाजार जगमगा उठते हैं। आभूषण, बर्तन, वाहन, घरेलू सामान, वस्त्र आदि की खरीदारी की जाती है। इस दिन देव वैद्य धनवंतरि की पूजा भी होती है।
नरक चतुर्दशी की कथा
धनतेरस से पंच दिवसीय दीप पर्व शुरू हो जाता है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया। इस दौरान अज्ञान और अभाव रूपी अंधकार को नष्ट करने के लिए दीप जलाए जाते हैं। धन-धान्य और ज्ञान में वृद्धि की कामना की जाती है और संसाधन जुटाए जाते हैं। देश के गांवों-शहरों में चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश दिखता है। धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी या अनन्त चतुर्दशी पड़ती है जिसे काली चौदस भी कहा जाता है। इस पर्व के लिए पुराणों में एक कथा है।
भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को इसी दिन निकृष्ट कर्म से रोका था। नरकासुर ने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना लिया था। श्रीकृष्ण ने उन कन्याओं को छुड़ाने के लिए से नरकासुर से युद्ध किया और उसका वध कर दिया और उन कन्याओं को अपनी शरण में रखा।
कथासार यह है कि नरकासुर एक प्रकार से वासनाओं के समूह और अहंकार का प्रतीक है। यानी जैसे श्रीकृष्ण ने उन कन्याओं को अपनी शरण देकर नरकासुर का वध कर दिया, वैसे ही मनुष्य को स्वयं को भगवान को समॢपत कर देना चाहिए ताकि भीतर पलने वाला अहंकार नष्ट हो जाए और सोलह हजार कन्याओं रूपी आपकी अनन्त वृत्तियां भगवान के अधीन हो जाएं। नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे उद्देश्य यही है।
इसका एक मंतव्य यह भी कि जब आपको जीवन में नरकासुर रूपी वासना घेरे और अहंकार बढ़े तो उसे नष्ट करने के लिए श्रीकृष्ण यानी भगवान की शरण में जाना चाहिए, जैसे वह सोलह हजार कन्याएं गईं। ईश्वर ही वह शक्ति है जिसकी शरण में जाने पर सारे पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन चतुर्मुखी दीप जलाने से नरकरूपी भय से मुक्ति मिलती है।
नरक चतुर्दशी को सायंकाल चार मुख वाला एक दीप जलाते हुए इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए-
दत्तो दीपश्चतुर्दश्यां नरकप्रीतये मया।
चतुर्वॢतसमायुक्त: सर्वपापापनुत्तये।।
भावार्थ यह कि आज चतुर्दशी के दिन नरक के अभिमानी देवता की प्रसन्नता के लिए तथा समस्त पापों को नष्ट करने के लिए मैं चौमुखा दीप (चार बत्तियों वाला) अर्पित करता हूं।
तेल की मालिश करके स्नान का विधान
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल-मालिश करके स्नान करने का विधान है। सनत्कुमार संहिता एवं धर्मसिंधु ग्रंथ में कहा गया है कि इससे मनुष्य की नारकीय यातनाओं से रक्षा होती है। ऐसी मान्यता है कि नरक चतुर्दशी की रात को मंत्र जाप करने से मंत्र सिद्ध होता है। इस रात सरसों के तेल अथवा घी के दीये से काजल बनाना चाहिए। यह काजल आंखों में लगाने से बुरी नजर नहीं लगती तथा आंखों का तेज बढ़ता है।
हनुमान जयंती
बजरंग बली हनुमान जी की जयंती नरक चतुर्दशी को धूमधाम से मनाई जाती है। वैसे हनुमान जी की जयंती चैत्र के महीने में भी मनाई जाती है। माना जाता है कि उनकी आराधना करने वाले भी अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों की प्राप्त कर सकते हैं। हनुमान जयंती पर हनुमान जी के मंदिरों की भव्य सजावट की जाती है और हनुमान जी की विग्रह को विशेष वस्त्राभूषणों से सुसज्जित कर उनकी पूजा की जाती है।
विशेष उपाय जिनसे प्रसन्न होते हैं बजरंग बली
-बजरंग बली के सामने रात्रि को चौमुखी दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से घर-परिवार में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं।
-पीपल पेड़ के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
-हनुमान जी का विधिवत शृंगार करने से पूरे साल उनकी कृपा बनी रहती है।
-श्रीरामचरित मानस का पाठ करने या सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमान शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं।
-हनुमान मंदिर जाएं और अपने साथ एक नारियल ले जाएं। मंदिर के अन्दर पहुंचकर नारियल अपने सिर से 7 बार उतार लें। बाद में यह नारियल हनुमान जी के सामने फोड़ दें। ऐसे करने से आपकी हर बाधा दूर हो जायेगी।
-बजरंग बली को सिन्दूर और तेल अॢपत करें। जिस प्रकार विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए मांग में सिन्दूर लगाती है, उसी तरह हनुमान जी भी अपने स्वामी श्रीराम को प्रसन्न करने के लिए पूरे शरीर में सिन्दूर लगाते हैं। हनुमान जी को सिन्दूर अॢपत करने वाले भक्तों की कामनाएं पूर्ण होती है।
-हनुमान जयंती के दिन नारियल पर स्वस्तिक बनाकर हनुमान जी को अॢपत कर दें। ऐसे करने से रोग दूर होते हैं।
-हनुमान जी को गुलाब की माला चढ़ाएं। फिर मंदिर में चढ़ा हुआ गुलाब का एक फूल पुजारी से मांग लें। उसे लाल कपड़े में बांधकर अपने लॉकर में रख लें। ऐसा करने से धन की वृद्धि होती है।
-पीपल के पत्तों पर लाल चंदन व कुमकुम से श्रीराम नाम लिखें। फिर इन पत्तों की माला बनाकर हनुमान जी को अॢपत कर दें। इससे शत्रुओं का शमन होता है और प्रगति होती है।
-मंदिर में बैठकर पूरी श्रद्धा के साथ रामरक्षा स्त्रोत का पाठ करने से घर-परिवार में आने वाले संकटों से मुक्ति मिलती है। दुर्घटनाओं से हनुमान जी आपकी रक्षा करते हैं।
-उक्त सारे उपाय सुबह स्नान करने के पश्चात करने से विशेष फल मिलता है।