बुद्ध पूर्णिमा पर जानें इसका महत्व, मांस से करें परहेज, गरीबों को दें दान

suman
Published on: 10 May 2017 4:28 AM GMT
बुद्ध पूर्णिमा पर जानें इसका महत्व, मांस से करें परहेज, गरीबों को दें दान
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लखनऊ: बुधवार यानी 10 मई को बुद्ध पूर्णिमा या वैशाख पूर्णिमा होती है। जिसे बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं।इस दिन गौतम बुद्ध की जयंती होती है और उनका निर्वाण दिवस भी। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। हिंदूओं के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। हिंदुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिंदू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृह-त्याग के बाद सिद्धार्थ 7 सालों तक वन में भटकते रहे। यहां उन्होंने कठोर तप किया और वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई।

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गौतम बुद्ध का जन्म (563 ईसा पूर्व-निर्वाण 483 ईसा पूर्व) को हुआ, वह विश्व के महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरु और उच्च कोटी के समाज सुधारक थे। उनका जन्म राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था, उनकी माता का नाम महामाया था, 7 दिन बाद ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद महाप्रजापति गौतमी ने उनका पालन किया। शादी के बाद वह संसार को दुखों से मुक्ति का मार्ग दिलाने के लिए पत्नी और बेटे को छोड़कर निकल गए थे। सालों कठोर साधना करने के बाद वह बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।

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अलग-अलग देशों में वहां के रीति-रिवाज के अनुसार ही पूजा की जाती है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन घर को फूलों से सजाने के बाद दीप जलाएं जाते हैं। पूजा-पाठ करने के बाद बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। वृक्ष की जड़ में दूध और सुगंधित पानी डालते हैं और दीपक जलाते हैं।

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इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएं करते हैं। बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है। मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है।

आगे....बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।इस दिन मांसाहार से परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे। इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।

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