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मां सीता ने कराया था यहां लव-कुश का कर्ण छेदन, आने से नि:संतान को मिलती है संतान
कहते है कि यूपी में श्री राम चंद्र और सीता माता के पुत्र लव-कुश का कर्ण छेदन पुराने कानपुर के एक मंदिर में हुआ था। हजारों साल से स्थित इस मंदिर की मान्यता है। वही परंपराएं व आस्था आज भी इससे जुड़ी है। जिसके चलते यहां के लोग अपने बच्चों का कर्ण छेदन कराने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
जयपुर : कहते है कि यूपी में श्री राम चंद्र और सीता माता के पुत्र लव-कुश का कर्ण छेदन पुराने कानपुर के एक मंदिर में हुआ था। हजारों साल से स्थित इस मंदिर की मान्यता है। वही परंपराएं व आस्था आज भी इससे जुड़ी है। जिसके चलते यहां के लोग अपने बच्चों का कर्ण छेदन कराने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
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*इस नाम से प्रसिद्ध है ये मंदिर?
पुराना कानपुर के बारी घाट के पास स्थित हजारों साल पुराने मंदिर में लव-कुश का कर्णछेदन हुआ था। मां सीता बिठूर स्थित वाल्मीकि आश्रम से नाव से इस मंदिर में आई थीं और लव-कुश का कर्णछेदन कराया था। तभी से इसका नाम कर्णछेदन मंदिर पड़ा।
*क्या है मान्यता
इस मंदिर की यह मान्यता है कि यहां कोई संतान की मनौती मानता है तो उसकी इच्छापूर्ति होती है। उसकी सूनी गोद भर जाती है। फिर उन बच्चों का कर्णछेदन भी यहीं होता है। अपने ऐतिहासिक महत्व और प्राचीनता के चलते मंदिर का एक विशेष स्थान है। प्रतिदिन आस्थावान भक्तों की यहां भीड़ लगी रहती है। पुजारी के मुताबिक देश के हर कोने से भक्त आते हैं। जिनकी गोद सूनी होती है वह यहां आकर मनौती मांगते हैं, और उनकी सूनी गोद भर जाती है ।
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*पुरोहित के अनुसार
पुरोहित के पुरोहित के अनुसार अनुसार जब राम द्वारा सीता को वाल्मीकि आश्रम में छोड़ा गया तो यहीं बिठूर स्थित आश्रम में मां सीता ने दो पुत्र लव-कुश को जन्म दिया था। यहीं आश्रम में लव-कुश का पालन-पोषण भी हुआ। इसी दौरान उनका कर्णछेदन संस्कार पुराने कानपुर के बारी घाट के पास गंगा बैराज स्थित एक मंदिर में हुआ था। इसी के चलते मंदिर का नाम कर्णछेदन मंदिर ही हो गया। हालांकि यह भी मान्यता है कि पहले यहां मंदिर नहीं था सिर्फ एक झोपड़ी थी, जिसे हटवाकर लव-कुश द्वारा ही इस मंदिर को भव्यता दी गई थी।
*शहीद चंद्रशेखर आजाद को भी था इस मंदिर से लगाव
पुजारी ने बताया कि शहीद चंद्रशेखर आजाद का भी इस मंदिर से बहुत लगाव था। बताया कि उनके नाना और नानी ने आजाद को उन्नाव से लेकर यहीं पर कर्णछेदन करवाया था। खुद आजादी की लड़ाई के दौरान आजाद अक्सर यहीं पर रहकर गोरों के खात्मे की रणनीति बनाते थे।
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