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पालघर के लोगों की चिंता, बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के कारण कहीं छिन जाये उनकी जमी
पालघर (महाराष्ट्र)। इस चुनावी मौसम में पालघर के लोग इस चिंता में डूबे हुए हैं कि बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के कारण उनकी जमीनें उनसे हमेशा के लिए छिन जाएंगी। यहां के बाशिंदों का एक ही सवाल है - सरकार विकास के लिए बुलेट ट्रेन के अलावा कोई और उपाय नहीं कर सकती?
पालघर जिले के अमागम डोंगरी पाड़ा गांव की 80 वर्षीय आदिवासी माथी दाजी कदाली अपने खेत पर खड़ी हो कर एक ही बात दोहराती हैं कि जान जाने तक अपनी जमीन छोड़ कर नहीं जाऊंगी। किसी बाहरी व्यक्ति को नापजोख के उपकरणों के साथ देखते ही इस गांव के लोगों का खून सूख जाता है। इस कदर इन लोगों में अपनी जमीन चले जाने का खौफ समाया हुआ है।
सहयाद्री पर्वत श्रृंखला की तराई में बसा यह तटीय जिला मुम्बई से मात्र १०९ किलोमीटर दूर है। इस जिले से कर मुम्बई-सूरत हाईवे गुजरती है और वसई-विरार इलाका थोड़ी ही दूर पर है। देश की आर्थिक राजधानी के इतना करीब होने के बावजूद पालघर की हालत में कोई सुधार नहीं आया है, दशकों से यह इलाका पानी का संकट झेल रहा है। कुपोषण, बेरोजगारी, सड़क, अस्पताल, स्कूल की कमी सभी तरह की समस्याएं यहां मौजूद हैं।
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१२० मकान वाले अमागम डोंगरी पाड़ा गांव की आबादी ६०० लोगों की है। लोगों की आमदनी का मुख्य स्रोत दैनिक मजदूरी या खेती-किसानी है। गांव में सिर्फ एक बोरवेल है। जबकि एक कुंआ सूखा पड़ा है। गांववालों का दुख इस बात से और बढ़ गया है कि प्रस्तावित बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट इस गांव के बीच से होकर गुजरेगा। लोगों का कहना है कि अगर यह प्रोजेक्ट वाकई में साकार हुआ तो इस गांव का नामोनिशां मिट जाएगा। इस गांव से थोड़ी दूर है उपलात जिसके तहत १७ छोटे मजरे हैं और इनकी कुल आबादी १५ हजार की है। सरपंच गुलाब वाडिया का कहना है कि यहां के लोग कभी ट्रेन में बैठे ही नहीं हैं। हमारे लिए बुलेट ट्रेन का कोई फायदा नहीें है। अगर सरकार को हमारे लिए कुछ करना है तो यहां की जमीनी समस्याओं के बारे में कुछ करे। सरपंच के अनुसार सिर्फ ३० घरों को शौचालय का पैसा मिला है। इलाके के लोग बताते हैं कि इलाज और रोजगार के लिए पड़ोसी राज्य गुजरात जाना पड़ता है।
बहरहाल, यहां के भाजपा-शिवसेना प्रत्याशी राजेन्द्र गावित का कहना है कि वह बुलेट ट्रेन के विरोधी नहीं हैं। उनका कहना है कि वह प्रभावित लोगों की पुनस्र्थापना के लिए काम करेंगे।
चुनावी नजारा
पालघर २००८ में जिला बना था। यहां पहला चुनाव २००९ में हुआ जिसमें बहुजन विकास अघाडी के बुलराम सुकुर जाधव विजयी हुए।
२०१४ में भाजपा के चिंतामन वांगा ने बलिराम जाधव को हराया। इस चुनाव में भाजपा का वोट शेयर ५३.७२ फीसदी रहा जबकि २००९ में यह मात्र २८.७८ फीसदी था।
२०१८ में वांगा के निधन के कारण यहां उपचुनाव हुआ। भाजपा ने कांग्रेस के पूर्व विधायक व राज्य के मंत्री राजेन्द्र गावित को उतारा। जबकि शिवसेना ने वांगा के पुत्र श्रीनिवास को टिकट दिया। इस चुनाव में गावित विजयी हुए लेकिन वोट शेयर २२.९६ फीसदी घट गया।
२०१९ के चुनाव में राजेन्द्र गावित शिवसेना-भाजपा गठबंधन के प्रत्याशी हैं।