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तोगड़िया को तो जाना ही होगा ! बहुत फूंक - फूंक कर कदम रख रहा RSS

विहिप सुप्रीमो प्रवीण भाई तोगड़िया के दिन लगभग ख़त्म हो चुके हैं। सुप्रीमो की कुर्सी तो उन्हें छोड़नी ही पड़ेगी। देखना यह है कि वे अपने आप जाते हैं या हटाए जाते हैं। इसी के साथ उनके अध्यक्ष राघव रेड्डी , भारतीय किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ के प्रमुखों की छुट्टी भी तय मानी जा रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने ही आनुषांगिक संगठनों में किसी प्रकार के विरोधी सुर नहीं रखना चा

Anoop Ojha
Published on: 22 Jan 2018 8:20 AM GMT
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तोगड़िया को तो जाना ही होगा,बहुत फूंक - फूंक कर कदम रख रहा RSS

संजय तिवारी

लखनऊ: विहिप सुप्रीमो प्रवीण भाई तोगड़िया के दिन लगभग ख़त्म हो चुके हैं। सुप्रीमो की कुर्सी तो उन्हें छोड़नी ही पड़ेगी। देखना यह है कि वे अपने आप जाते हैं या हटाए जाते हैं। इसी के साथ उनके अध्यक्ष राघव रेड्डी , भारतीय किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ के प्रमुखों की छुट्टी भी तय मानी जा रही है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने ही आनुषांगिक संगठनों में किसी प्रकार के विरोधी सुर नहीं रखना चाहता। इसलिए इन सभी को अपना रास्ता देख लेने को कहा जा चुका है। संघ सिर्फ उस स्थिति से बचने की कोशिश में है जो गोवा में हो गयी थी। गौरतलब है कि गोवा में संघ के प्रमुख रहे सुभाष वेलिंगकर ने वर्ष 2016 में बगावत कर संगठन की किरकिरी करा दी थी। वेलिंगकर की तरह खासतौर पर तोगड़िया की विहिप, बजरंग दल में गहरी पैठ है। यही कारण है कि संघ किसी भी तरह तोगड़िया के स्वेच्छा से पद छोड़ने का इंतजार कर रहा है।

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सूत्र बता रहे हैं कि संघ ने फरवरी महीने के अंत तक भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ सहित कुछ अन्य अनुषांगिक संगठनों के नेतृत्व में परिवर्तन करने की पटकथा तैयार कर ली है। संघ मिशन 2019 के लिए अनुषांगिक संगठनों में सरकार विरोधी रुख को खत्म करना चाहता है। संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी स्वीकार करते हैं कि विहिप प्रमुख प्रवीण भाई तोगड़िया, अध्यक्ष राघव रेड्डी समेत अनुषांगिक संगठनों के कुछ अन्य नेतृत्वकर्ताओं को पद छोड़ने का निर्देश दिया जा चुका है। वह बताते हैं वैसे भी इनका कार्यकाल पहले ही पूरा हो चुका है। मगर निर्देश का पालन करने के बदले इनकी ओर से शक्ति प्रदर्शन कर दबाव बनाया जा रहा है।

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खासतौर से तोगड़िया के बगावती सुर और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ सीधे हमले से संघ बेहद नाराज है। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान तोगड़िया की विद्रोही भूमिका ने संघ नेतृत्व पहले ही तोगड़िया से खफा था। हालांकि पहले नेतृत्व परिवर्तन की योजना को बीते साल दिसंबर के अंत तक अमली जामा पहनाने की थी। मगर इन नेताओं के तेवरों से बदली परिस्थितियों में संघ ने अपनी इस योजना को अमली जामा पहनाने की पटकथा नए सिरे से लिखी है। संघ अब भी चाहता है कि विवाद खत्म करने के लिए ये सभी नेता स्वेच्छा से पद त्याग दें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो संघ इन्हें पद से हटाने की अपनी ओर से प्रक्रिया शुरू करेगा।

उल्लेखनीय है कि तोगड़िया कई मौकों पर पीएम नरेंद्र मोदी और उनके समर्थकों को असहज करने वाले बयान दे चुके हैं। पिछले साल ही वीएचपी की भुवनेश्वर में तीन दिन की राष्ट्रीय मीटिंग में वीएचपी के अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष का भी फैसला होना था। सूत्रों के मुताबिक संघ नहीं चाहता था कि प्रवीण तोगड़िया को फिर से वीएचपी का अध्यक्ष बनाया जाए। सूत्र बता रहे हैं कि इस संबंध में 13 दिंसबर को संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों की दिल्ली में मीटिंग हुई थी, जिसकी जानकारी पीएम मोदी को भी दी गई।

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इस मीटिंग प्रवीण तोगड़िया को वीएचपी अध्यक्ष पद से हटाने के लिए दो नाम सामने करने का फैसला हुआ। मीटिंग में तय फैसले के अनुसार ही शुक्रवार को भुवनेश्वर में हुई वीएचपी की बैठक में अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष के लिए दो नाम सामने किए गए। सूत्रों के मुताबिक एक नाम हिमाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल जस्टिस वी. एस. कोगजे और दूसरा नाम जगन्नाथ शाही का लिया गया। नौबत वोटिंग तक पहुंच गई। तब तोगड़िया समर्थकों ने उनके पक्ष में आवाज बुलंद कर दी। जब तोगड़िया का नाम लिया गया तो मीटिंग में मौजूद करीब 250 प्रतिनिधियों में से करीब 70-75 प्रतिनिधियों ने खड़े होकर 'ओम' कहा।

संघ की भाषा में सहमति के लिए 'ओम' कहा जाता है। मीटिंग में मौजूद प्रतिनिधि वीएचपी के अलग-अलग राज्यों के अध्यक्ष और दूसरे देशों के वीएचपी अध्यक्ष थे। जब ज्यादातर लोगों को तोगड़िया के पक्ष में 'ओम' कहते देखा गया तो फिर वोटिंग टाल दी गई। इसके बाद छह महीने के लिए इस विषय को टाल दिया गया।

इसी बीच प्रवीण तोगड़िया ने फिर कई तरह के बयान देने शुरू कर दिए है। इसी क्रम में उनकी रहस्यमय गुमशुदगी भी है। सब कुछ बहुत ही अजीब सा चल रहा है।

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तोगड़िया रोज रोज अलग अलग ढंग के बयान भी दे रहे हैं। संघ के लोग बता रहे हैं कि अपनी ही सरकार के खिलाफ बयानबाजी को किसी भी तरह अब बर्दाश्त करना ठीक नहीं क्योंकि सामने ही 2019 का लोकसभा चुनाव है। इसके अलावा भी आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं। वैसे भी जब इन सभी वरिष्ठ लोगों का कार्यकाल ख़त्म हो चुका है तो नए लोगों को नेतृत्व का अवसर तो मिलना ही चाहिए।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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