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यह मयार क्यों नहीं
यह सवाल इन दिनों तीन तलाक और हलाला से पीड़ित महिलाएं सिर्फ अपनी जाति और जमात से नहीं बल्कि पूरे मुल्क से पूछ रही हैं। वो जानना चाहती हैं कि जब भारत में गैर मुस्लिम महिलाओं ऐसी बंदिशें लागू नहीं होती तो आखिर उन्होंने क्या गुनाह किया है? हर क्षेत्र में समानता और सुरक्षा का दायरा बढ़ रहा है तो उन्हें अलग-थलग क्यों किया जा रहा है? उन पर नियंत्रण बनाये रखने के लिए धर्म को हथियार के तौर पर इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? कुरान, शरियत और हदीस की मनचाही व्याख्या क्यों की जा रही है? दहेज उत्पीड़न एक्ट में सात साल की सजा का प्रावधान है। तमाम तीन तलाक दहेज के चलते भी होते हैं, फिर ऐसे तलाक देने वालों को सजा से छुटकारा क्यों मिलनी चाहिए? लगभग नौ फीसदी मुस्लिम महिलाओं को अलग-थलग करके किसी भी देश के विकास का सपना कैसे पूरा हो सकता है? क्या नौ करोड़ की आबादी को धर्म की मनचाही व्याख्या करने वाले कठमुल्लों के हवाले छोड़ा जाना चाहिए?
वह भी उन महिलाओं को जिनके शोषण के लिए, जिनकी आजादी को छीनने के लिए पल-पल फतवों का घातक इस्तेमाल किया जा रहा हो। फतवे भी ऐसे कि सुनकर किसी को रोना आ जाए। मसलन, जीवित चीजों की फोटो लेना गलत है। दूसरे ग्रह पर अगर आपको एलियन नजर आ जाए तो फोटो मत खींचिए। नौ साल की उम्र के बाद लड़कियों का साइकिल चलाना गलत है। अंगदान वर्जित है। कंडोम का इस्तेमाल अवैध है। विग पहनकर नमाज पढ़ना अनुचित है। बैंक में संदेशवाहक और वाचमैन के अलावा अगर किसी और पद पर कोई हो तो उससे शादी करना गलत है। वंदे मातरम गाना गैर इस्लामिक है। महिलाओं के लिए अनचाहे बाल हटवाना और वैक्स लगवाना अदब के खिलाफ है। व्यूटी पाॅर्लर जाना, लड़कियों के बाल काटना और भौहें तराशना हराम है। लड़कियों का नौकरी करके पैसा कमाने के खिलाफ भी फतवा आ चुका है। लड़कों से ईद पर गले मिलकर मुबारकबाद देना लड़की के लिए माफी मांगने का कृत्य है। दारूल उलूम ने फतवे की बेवसाइट बना रखी है।
बुर्के से आजादी की मांग करती औरतें। सितम सहती औरतें। कब तक कठमुल्लों के हवाले रहनी चाहिए? मलपुरम का अली फौजी अपनी पत्नी को रजिस्ट्री से तलाक दे देता है। अंबेडकर नगर के झझवा गांव की रहने वाली खुशबू मोहमदी को उसका पति रईस अहमद फोन पर तलाक दे देता है। लखनऊ के गोमतीनगर के सबा फातिमा को पति कासिफ नईम शादी के तीन महीने बाद हुई कहासुनी के बाद तीन तलाक बोल देता है। इंदौर का अतीक खान शादी के तीन माह बाद फोन पर तीन तलाक कह देता है। सिर्फ दो बेटियां जनने का आरोप चस्पा करके महराजगंज के आसमां परवीन को उसका पति नौशाद हुसैन स्पीड पोस्ट से तलाक भेज देता है। कानपुर का महबूब हैदर धोखे से दूसरा निकाह करता है और पहली पत्नी को फोन पर तलाक बोल देता है। फतेहपुर का ख्वाजा अली दस साल से साथ रहने वाली बीवी से सऊदी अरब से तीन तलाक बोलकर छुट्टी पा लेता है। रामपुर में गोरी औरत की चाहत में सांवली और को तलाक का दंश झेलना पड़ता है। गोंडा के वजीर गंज में एक मुस्लिम महिला को दिव्यांग बेटी की दवा के लिए पैसे मांगने पर शौहर से तलाक की मार पड़ती है। सुल्तानपुर की रूबीना को उसका पति हाफिज सऊदी अरब से वाट्सएप पर तलाक भेज देता है। बस्ती में मोहम्मद नसीम अपनी बीवी आसमां खातून को जमीन बेचने से रोकने पर तलाक दे देता है। जम्मू के पीडीपी आॅफिस में काम करने वाले बरेली के जलालाबाद निवासी वाजिद खाल ने अपनी बीवी को इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि बीवी ने मासूम बेटी के साथ उसकी छेड़छाड़ का विरोध किया था। बाराबंकी के मोबीन अहमद ने फरहीन फातिमा को दहेज के लिए ईद के दिन तलाक का पत्थर मारा। गोंडा में रुकैया खातून को उसके पति महफूज अहमद ने अदालत परिसर में तीन तलाक कहा और रफूचक्कर हो गया। रुकैया गुजारा भत्ते से जुड़ी एक याचिका की पैरवी करने आई थी। सीतापुर में नसीम ने अपनी पत्नी मैसूर जहां को दहेज में मोटरसाइकिल न मिलने की वजह से तलाक कह दिया। पीलीभीत के रहने वाले मतबूल ने अपनी पत्नी रेहाना को फोन पर तलाक देकर न्यूजीलैंड में दूसरी शादी रचा लिया। रेहाना ससुराल गई तो उस पर तेजाब फेंक दिया गया। वाराणसी की शहाना को उसके पति ने फोन पर महज इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि वह मोटी हो गई है। अब वह एक बच्ची लेकर जाए कहां। ग्रेटर नोएडा की सलमा को उसके पति आजाद ने निकाह के पांच दिन बाद ही पांच लाख रुपये की मांग पूरी न होने पर तलाक दे दिया। रामपुर की तलाक पीड़िता गुलफंसा बिना निकाह व हलाला के ही पति के यहां रहने पहुंच गई। पति कासिम ने उसे देर से सो कर उठने की वजह से तलाक दे दिया था। कौशांबी में आशिया को उसके शौहर मोहम्मद हाशिम ने बेटी पैदा होने पर तलाक दे दिया। गोंडा के सरवांगपुर की रहने वाली यासमीन को चैथी बेटी होने पर तलाक की मार झेलनी पड़ी।
अंजुम मियां आॅल इंडिया इत्तेहादी मिल्लत कौंसिल के मुखिया मौलाना तौकीर रजा के सगे भाई शिरान रजा खां ने 2016 में अपनी पत्नी निदा खान को तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया। उनकी शादी के आठ महीने भी नहीं हुए थे। निदा ने अदालत की शरण ली। हद यह है कि निदा के खिलाफ फतवा आया कि उन्हें इस्लाम से निकाल कर हुक्का पानी बंद कर देंगे। उनके जनाजे की नमाज नहीं होगी। बीमार होने पर दवाई न की जाए। यदि वे बीमार पड़े तो उन्हें देखने कोई न जाए। मृत शरीर को दफन करने के लिए कब्रिस्तान में जगह न दी जाए। यदि उसने देश नहीं छोड़ा तो पत्थरों से हमला किया जाए। निदा के बाल काट लेने वालों को ग्यारह हजार सात सौ छियासी रुपये के इनाम का एलान किया गया।
बरेली की जामा मस्जिद, दारूल इफ्ता और शहर काजी तीनों की ओर से ऐसे ही फतवे आए। फतवे का असर भी दिखा। कचहरी में एक मुस्लिम शख्स ने निदा का मंगवाया समोसा खाने से मना कर दिया। एक टाइपिस्ट ने उसका आवेदन पत्र टाइप करने से हाथ खड़े कर दिए। यह यातना सहते हुए निदा ने हलाला और तीन तलाक पीड़ित महिलाओं के लिए आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी गठित की।
जो देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से चल रहा है। उसे फतवे, फरमान, दारूल इफ्ता, दारूल कजा और देवबंदी फतवों से चलाने वालों को यह सोचना चहिए कि लोकतंत्र इनसे बड़ा होता है। जावेद अख्तर ने निदा की ‘शरिया रक्षकों‘ से सुरक्षा की गुहार उत्तर प्रदेश सरकार से की है। ईदगाह लखनऊ के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, आॅल इंडिया सुन्नी बोर्ड के अध्यक्ष मौलान मोहम्मद मुस्ताक नदवी, इमाम-ए-जुमा आसिफी मस्जिद के मौलाना सैय्यद कल्बे जब्बाद नकवी, शिया चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास नकवी निदा के खिलाफ आए फतवे के खिलाफ हैं। पर तीन तलाक पर इन सबने आपने मुंह सिल रखे हैं।
बरेली के कांशीराम कालोनी की शादना बी का निकाह 2013 में मीरगंज के मोहम्मद आरिफ से हुआ था। उसकी पहले भी शादी हो चुकी थी। यह बात शादना को नहीं पता थी। जब शादना गर्भवती हुई तो उसे मारपीट कर निकाल दिया। बेटी के जन्म के बाद जब वह ससुराल पहुंची तो पति ने उसे साथ रखने से इनकार किया। उसने पति की शिकायत ससुर से की तो ससुर ने कहा कि वह नहीं रखेगा तो मेरे साथ रह ले। मामला पुलिस तक पहुंचा। लखनऊ के कैसरबाग के एक मुस्लिम महिला की शादी एक कार्पेंटर से पंद्रह साल पहले हुई थी। एक दिन नशे में उसने अपनी बीवी को तीन तलाक कह दिया। फिर उसने अपने दस साल की उम्र के भाई से बीवी का हलाला, निकाह करवाया। दो महीने बाद देवर से उसका तलाक हुआ। फिर पहले पति से निकाह हो पाया। पति ने उसका खर्चा उठाना बंद कर दिया। अब वह रजाई-गद्दे की सिलाई कर जीवन चलाती है। बांसमंडी की 33 साल की महिला के पति ने 2016 में उसे तीन तलाक कहा। बच्चों को छीन लिया। फिर हलाला का दबाव बनाया। निकाह-हलाला के बाद फिर उसका उससे निकाह हुआ। लेकिन फिर तलाक हो गया। पति ने दोबारा हलाला का दबाव बनाया तो महिला ने पति को छोड़ दिया। गोमतीनगर की 22 साल की एक महिला से उसके पति ने फोन पर उसके भाई को तीन तलाक कह कर छुट्टी पा लिया। बातचीत के बाद हलाला की शर्त पर वह पत्नी को साथ रखने पर तैयार हुआ। लिहाजा एक अंधे आदमी से हलाला-निकाह करने पर मजबूर किया गया। लेकिन उसने सम्मान से जीना कबूल किया। निशातगंज की महिला को शादी के तीन साल बाद तीन तलाक से गुजरना पड़ा। वह तलाक को मंजूर नहीं कर रही थी लिहाजा पति ने उसे बुलाया। किसी के साथ हलाला करवाया। एक माह बाद जिसके साथ हलाला हुआ था उससे तलाक हुआ और पहले शौहर से निकाह। लेकिन ससुराल वालों ने उसे तंग करना शुरू किया। नतीजतन, वह पति से अलग रह कर गुजर-बसर कर रही है। बरेली की एक महिला को बच्चा न होने पर शादी के तीसरे साल तीन तलाक का दंश झेलना पड़ा। उसके मुताबिक नशे का इंजेक्शन देकर किसी मौलाना को बुलाकर ससुर से उसका निकाह कराया गया। बाद में शौहर से निकाह हो पाया। ससुर तलाक के बाद भी दुष्कर्म करता रहा। 2017 में शौहर ने उसे फिर तलाक दे दिया। जब उसकी मां ने मोहल्ले की कुछ औरतों के साथ मिलकर उस पर दबाव बनाया तो तीसरी बार रखने के लिए देवर के साथ हलाला की शर्त रख दी। यह घटना 18 जुलाई, 2018 की है। पर उसे पता चल गया कि निदा खान ऐसी औरतों की मदद करतीं हैं। पहली बार हलाला का मामला थाने तक पहुंचा। इस मामले में ससुर पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ।
एक मुस्लिम महिला के पति को शक हुआ कि उसकी पत्नी का किसी और के साथ संबंध हैं। जांचे-परखे बिना तीन तलाक बोला और भाग गया। वह आठ बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। पति को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो मिन्नतें करने लगा। सवाल हलाला का उठा। फिर उसका पति ही एक दोस्त और एक मौलाना को लेकर आया। मौलाना ने ढाई सौ रुपए में दोस्त से ही उसका निकाह कराया। रात गुजारने के बाद सुबह चार बजे दोस्त तीन तलाक बोलकर भाग गया। उसी मौलाना ने सुबह ढाई सौ रुपये लिए और फिर उसके पहले पति से निकाह करा दिया। एक दूसरी औरत को पता नहीं था कि उसका पति शादीशुदा है। पहली पत्नी को भी दूसरी शादी के बारे में पता नहीं था। हालांकि पहली पत्नी को वह तलाक दे चुका था। पर वह अपने दो बच्चों को पति के साथ रखने का दबाव बना रही थी। उसका पति गांव जाकर एक आदमी को ले आया। पहली पत्नी को हलाला के लिए तैयार किया और उस आदमी से कहा बस एक रात तुम्हारी। मुरादाबाद, बिजनौर सरीखे कई इलाकों में हलाला सेंटर चल रहे हैं। धर्म का डर दिखाया जा रहा है। मोटी रकम लेकर मौलवी हलाला कर रहे हैं। लखनऊ में एक पक्षीय तलाक दिलाने वाले मौलाना असगर को महिलाओं ने पीटा। हलाला पीड़ित इन महिलाओं से मुलाकात भी हुई है। पर नाम देना ठीक नहीं है।
जिस समाज को अपनी आधी आबादी की इतनी भी चिंता न हो। जो समाज स्त्री और पुरुष के बराबरी के मुद्दे को धर्म की इबारत में बांचता हो। जिस देश में हर क्षेत्र में समानता और सुरक्षा का दायरा बढ़ा हो वहां मुस्लिम महिलाओं को अकेले कैसे छोड़ा जा सकता है, वह भी तब जब उसकी देखभाल करने वाला संगठन- आॅल इंडिया मुस्लिम ला बोर्ड तलाक और हलाला का समर्थन करता हो। तीन तलाक के मुद्दे पर यह कह कर छुट्टी पा लेना चाहता हो कि निकाहनामे में लिखवा लेंगे कि शौहर तलाक नहीं देगा। पर इस सवाल पर चुप्पी साध लेता हो कि तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता मिलेगा कि नहीं। सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर करके निकाह हलाला और बहुविवाह को अपराध घोषित करने की मांग पर सुनवाई चल रही हो। फिर भी इस सवाल को धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के चश्में से देखा जा रहा है। डाॅ. भीमराव अंबेडकर समान नागरिक सहिंता के पक्षधर थे। लेकिन जब उनकी सरकार ने यह काम नहीं किया तो उन्होंने पद छोड़ दिया। जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक की यात्रा में समान नागरिक संहिता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। डाॅ. राम मनोहर लाहिया भी स्त्री और पुरुष समानता की बात करते थे। पाकिस्तान, सूडान, बांग्लादेश, मिस्र, सीरिया, सऊदी अरब, इराक, इरान और टर्की जैसे 22 मुस्लिम देशों में तीन तलाक पर अलग-अलग ढंग से अंकुश लगाया गया है। तब भारत में आधी आबादी तीन तलाक और हलाला के नश्तर से पैदा हो रहे दर्द क्यों सहें? क्यों वह इस बात को माने कि वह कारोबार नहीं कर सकतीं। मोबाइल का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। पति से अलग अपनी राय नहीं रख सकतीं। प्रेम नहीं कर सकतीं। अपनी पसंद की शादी नहीं कर सकतीं। पराये मर्दों से बातचीत नहीं कर सकतीं। मुलाकात नहीं कर सकतीं। हिजाब और बुर्के के बगैर बाहर कदम नहीं रख सकतीं।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक और हलाला से मुक्ति का अभियान चला रही है। उन्हें बराबरी का हक दिलाने के लिए कानून बना रही है। इसे भी कठमुल्ले धार्मिक आजादी में दखल मान बैठे हैं। इसे कुछ इस तरह पेश किया जा रहा है, मानो सरकार कुरान और हदीस की कोई नई आयत लिख रही है। सरकार चाहे डाॅ. लोहिया समर्थकों की हो। चाहे अंबेडकरवादियों की। चाहे पं. दीनदयाल के अनुयायियों की। चाहे महात्मा गांधी को मानने वालों की। सबके लिए यह संकल्प और इस संकल्प पर आगे बढ़ना जरूरी है। मुस्लिम महिलाओं की आजादी के लिए कानून बनाना एक अनिवार्य और अपरिहार्य शर्त है। उन लोगों के लिए भी जिन्होंने शाहबानो को गुजारा-भत्ता न दिया जाए इसके लिए कठमुल्लों के आगे घुटने टेके। सर्वोच्च अदालत के गुजारा भत्ता दिये जाने के फैसले को पलट कर रख दिया। ऐसे लोगों के लिए यह प्रयाश्चित का कालखंड भी है। जिस समाज के अंदर से उसमें जड़ जमा चुकी कुरीतियां और अंधविश्वास दूर करने की आवाज नहीं उठती है उसके अंदर की जड़ जमा चुकी कुरीतियों को खत्म करने के लिए कोई नई बाहरी शक्ति ही काम करती है। यह अच्छी बात है कि इस शक्ति को काम करने के लिए प्लेटफार्म शायरा बानो, आतिया साबरी, गुलशन परवीन, इशरत जहां, आफरीन रहमान, निदा खान, फरहत नकवी, शाइस्ता अंबर सरीखी बहादुर महिलाएं मुहैया करा रही हैं। इनकी फरियाद पर तारीख और तवारीख बदलने की उम्मीद जगी है और यह लग रहा है कि गुनाहे कबीरा को जायज ठहराने की लंबे समय से चले आ रहे कवायद पर विराम लगेगा।
वह भी उन महिलाओं को जिनके शोषण के लिए, जिनकी आजादी को छीनने के लिए पल-पल फतवों का घातक इस्तेमाल किया जा रहा हो। फतवे भी ऐसे कि सुनकर किसी को रोना आ जाए। मसलन, जीवित चीजों की फोटो लेना गलत है। दूसरे ग्रह पर अगर आपको एलियन नजर आ जाए तो फोटो मत खींचिए। नौ साल की उम्र के बाद लड़कियों का साइकिल चलाना गलत है। अंगदान वर्जित है। कंडोम का इस्तेमाल अवैध है। विग पहनकर नमाज पढ़ना अनुचित है। बैंक में संदेशवाहक और वाचमैन के अलावा अगर किसी और पद पर कोई हो तो उससे शादी करना गलत है। वंदे मातरम गाना गैर इस्लामिक है। महिलाओं के लिए अनचाहे बाल हटवाना और वैक्स लगवाना अदब के खिलाफ है। व्यूटी पाॅर्लर जाना, लड़कियों के बाल काटना और भौहें तराशना हराम है। लड़कियों का नौकरी करके पैसा कमाने के खिलाफ भी फतवा आ चुका है। लड़कों से ईद पर गले मिलकर मुबारकबाद देना लड़की के लिए माफी मांगने का कृत्य है। दारूल उलूम ने फतवे की बेवसाइट बना रखी है।
बुर्के से आजादी की मांग करती औरतें। सितम सहती औरतें। कब तक कठमुल्लों के हवाले रहनी चाहिए? मलपुरम का अली फौजी अपनी पत्नी को रजिस्ट्री से तलाक दे देता है। अंबेडकर नगर के झझवा गांव की रहने वाली खुशबू मोहमदी को उसका पति रईस अहमद फोन पर तलाक दे देता है। लखनऊ के गोमतीनगर के सबा फातिमा को पति कासिफ नईम शादी के तीन महीने बाद हुई कहासुनी के बाद तीन तलाक बोल देता है। इंदौर का अतीक खान शादी के तीन माह बाद फोन पर तीन तलाक कह देता है। सिर्फ दो बेटियां जनने का आरोप चस्पा करके महराजगंज के आसमां परवीन को उसका पति नौशाद हुसैन स्पीड पोस्ट से तलाक भेज देता है। कानपुर का महबूब हैदर धोखे से दूसरा निकाह करता है और पहली पत्नी को फोन पर तलाक बोल देता है। फतेहपुर का ख्वाजा अली दस साल से साथ रहने वाली बीवी से सऊदी अरब से तीन तलाक बोलकर छुट्टी पा लेता है। रामपुर में गोरी औरत की चाहत में सांवली और को तलाक का दंश झेलना पड़ता है। गोंडा के वजीर गंज में एक मुस्लिम महिला को दिव्यांग बेटी की दवा के लिए पैसे मांगने पर शौहर से तलाक की मार पड़ती है। सुल्तानपुर की रूबीना को उसका पति हाफिज सऊदी अरब से वाट्सएप पर तलाक भेज देता है। बस्ती में मोहम्मद नसीम अपनी बीवी आसमां खातून को जमीन बेचने से रोकने पर तलाक दे देता है। जम्मू के पीडीपी आॅफिस में काम करने वाले बरेली के जलालाबाद निवासी वाजिद खाल ने अपनी बीवी को इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि बीवी ने मासूम बेटी के साथ उसकी छेड़छाड़ का विरोध किया था। बाराबंकी के मोबीन अहमद ने फरहीन फातिमा को दहेज के लिए ईद के दिन तलाक का पत्थर मारा। गोंडा में रुकैया खातून को उसके पति महफूज अहमद ने अदालत परिसर में तीन तलाक कहा और रफूचक्कर हो गया। रुकैया गुजारा भत्ते से जुड़ी एक याचिका की पैरवी करने आई थी। सीतापुर में नसीम ने अपनी पत्नी मैसूर जहां को दहेज में मोटरसाइकिल न मिलने की वजह से तलाक कह दिया। पीलीभीत के रहने वाले मतबूल ने अपनी पत्नी रेहाना को फोन पर तलाक देकर न्यूजीलैंड में दूसरी शादी रचा लिया। रेहाना ससुराल गई तो उस पर तेजाब फेंक दिया गया। वाराणसी की शहाना को उसके पति ने फोन पर महज इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि वह मोटी हो गई है। अब वह एक बच्ची लेकर जाए कहां। ग्रेटर नोएडा की सलमा को उसके पति आजाद ने निकाह के पांच दिन बाद ही पांच लाख रुपये की मांग पूरी न होने पर तलाक दे दिया। रामपुर की तलाक पीड़िता गुलफंसा बिना निकाह व हलाला के ही पति के यहां रहने पहुंच गई। पति कासिम ने उसे देर से सो कर उठने की वजह से तलाक दे दिया था। कौशांबी में आशिया को उसके शौहर मोहम्मद हाशिम ने बेटी पैदा होने पर तलाक दे दिया। गोंडा के सरवांगपुर की रहने वाली यासमीन को चैथी बेटी होने पर तलाक की मार झेलनी पड़ी।
अंजुम मियां आॅल इंडिया इत्तेहादी मिल्लत कौंसिल के मुखिया मौलाना तौकीर रजा के सगे भाई शिरान रजा खां ने 2016 में अपनी पत्नी निदा खान को तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया। उनकी शादी के आठ महीने भी नहीं हुए थे। निदा ने अदालत की शरण ली। हद यह है कि निदा के खिलाफ फतवा आया कि उन्हें इस्लाम से निकाल कर हुक्का पानी बंद कर देंगे। उनके जनाजे की नमाज नहीं होगी। बीमार होने पर दवाई न की जाए। यदि वे बीमार पड़े तो उन्हें देखने कोई न जाए। मृत शरीर को दफन करने के लिए कब्रिस्तान में जगह न दी जाए। यदि उसने देश नहीं छोड़ा तो पत्थरों से हमला किया जाए। निदा के बाल काट लेने वालों को ग्यारह हजार सात सौ छियासी रुपये के इनाम का एलान किया गया।
बरेली की जामा मस्जिद, दारूल इफ्ता और शहर काजी तीनों की ओर से ऐसे ही फतवे आए। फतवे का असर भी दिखा। कचहरी में एक मुस्लिम शख्स ने निदा का मंगवाया समोसा खाने से मना कर दिया। एक टाइपिस्ट ने उसका आवेदन पत्र टाइप करने से हाथ खड़े कर दिए। यह यातना सहते हुए निदा ने हलाला और तीन तलाक पीड़ित महिलाओं के लिए आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी गठित की।
जो देश लोकतांत्रिक व्यवस्था से चल रहा है। उसे फतवे, फरमान, दारूल इफ्ता, दारूल कजा और देवबंदी फतवों से चलाने वालों को यह सोचना चहिए कि लोकतंत्र इनसे बड़ा होता है। जावेद अख्तर ने निदा की ‘शरिया रक्षकों‘ से सुरक्षा की गुहार उत्तर प्रदेश सरकार से की है। ईदगाह लखनऊ के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली, आॅल इंडिया सुन्नी बोर्ड के अध्यक्ष मौलान मोहम्मद मुस्ताक नदवी, इमाम-ए-जुमा आसिफी मस्जिद के मौलाना सैय्यद कल्बे जब्बाद नकवी, शिया चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना सैफ अब्बास नकवी निदा के खिलाफ आए फतवे के खिलाफ हैं। पर तीन तलाक पर इन सबने आपने मुंह सिल रखे हैं।
बरेली के कांशीराम कालोनी की शादना बी का निकाह 2013 में मीरगंज के मोहम्मद आरिफ से हुआ था। उसकी पहले भी शादी हो चुकी थी। यह बात शादना को नहीं पता थी। जब शादना गर्भवती हुई तो उसे मारपीट कर निकाल दिया। बेटी के जन्म के बाद जब वह ससुराल पहुंची तो पति ने उसे साथ रखने से इनकार किया। उसने पति की शिकायत ससुर से की तो ससुर ने कहा कि वह नहीं रखेगा तो मेरे साथ रह ले। मामला पुलिस तक पहुंचा। लखनऊ के कैसरबाग के एक मुस्लिम महिला की शादी एक कार्पेंटर से पंद्रह साल पहले हुई थी। एक दिन नशे में उसने अपनी बीवी को तीन तलाक कह दिया। फिर उसने अपने दस साल की उम्र के भाई से बीवी का हलाला, निकाह करवाया। दो महीने बाद देवर से उसका तलाक हुआ। फिर पहले पति से निकाह हो पाया। पति ने उसका खर्चा उठाना बंद कर दिया। अब वह रजाई-गद्दे की सिलाई कर जीवन चलाती है। बांसमंडी की 33 साल की महिला के पति ने 2016 में उसे तीन तलाक कहा। बच्चों को छीन लिया। फिर हलाला का दबाव बनाया। निकाह-हलाला के बाद फिर उसका उससे निकाह हुआ। लेकिन फिर तलाक हो गया। पति ने दोबारा हलाला का दबाव बनाया तो महिला ने पति को छोड़ दिया। गोमतीनगर की 22 साल की एक महिला से उसके पति ने फोन पर उसके भाई को तीन तलाक कह कर छुट्टी पा लिया। बातचीत के बाद हलाला की शर्त पर वह पत्नी को साथ रखने पर तैयार हुआ। लिहाजा एक अंधे आदमी से हलाला-निकाह करने पर मजबूर किया गया। लेकिन उसने सम्मान से जीना कबूल किया। निशातगंज की महिला को शादी के तीन साल बाद तीन तलाक से गुजरना पड़ा। वह तलाक को मंजूर नहीं कर रही थी लिहाजा पति ने उसे बुलाया। किसी के साथ हलाला करवाया। एक माह बाद जिसके साथ हलाला हुआ था उससे तलाक हुआ और पहले शौहर से निकाह। लेकिन ससुराल वालों ने उसे तंग करना शुरू किया। नतीजतन, वह पति से अलग रह कर गुजर-बसर कर रही है। बरेली की एक महिला को बच्चा न होने पर शादी के तीसरे साल तीन तलाक का दंश झेलना पड़ा। उसके मुताबिक नशे का इंजेक्शन देकर किसी मौलाना को बुलाकर ससुर से उसका निकाह कराया गया। बाद में शौहर से निकाह हो पाया। ससुर तलाक के बाद भी दुष्कर्म करता रहा। 2017 में शौहर ने उसे फिर तलाक दे दिया। जब उसकी मां ने मोहल्ले की कुछ औरतों के साथ मिलकर उस पर दबाव बनाया तो तीसरी बार रखने के लिए देवर के साथ हलाला की शर्त रख दी। यह घटना 18 जुलाई, 2018 की है। पर उसे पता चल गया कि निदा खान ऐसी औरतों की मदद करतीं हैं। पहली बार हलाला का मामला थाने तक पहुंचा। इस मामले में ससुर पर दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज हुआ।
एक मुस्लिम महिला के पति को शक हुआ कि उसकी पत्नी का किसी और के साथ संबंध हैं। जांचे-परखे बिना तीन तलाक बोला और भाग गया। वह आठ बच्चों के साथ अकेले रहने लगी। पति को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो मिन्नतें करने लगा। सवाल हलाला का उठा। फिर उसका पति ही एक दोस्त और एक मौलाना को लेकर आया। मौलाना ने ढाई सौ रुपए में दोस्त से ही उसका निकाह कराया। रात गुजारने के बाद सुबह चार बजे दोस्त तीन तलाक बोलकर भाग गया। उसी मौलाना ने सुबह ढाई सौ रुपये लिए और फिर उसके पहले पति से निकाह करा दिया। एक दूसरी औरत को पता नहीं था कि उसका पति शादीशुदा है। पहली पत्नी को भी दूसरी शादी के बारे में पता नहीं था। हालांकि पहली पत्नी को वह तलाक दे चुका था। पर वह अपने दो बच्चों को पति के साथ रखने का दबाव बना रही थी। उसका पति गांव जाकर एक आदमी को ले आया। पहली पत्नी को हलाला के लिए तैयार किया और उस आदमी से कहा बस एक रात तुम्हारी। मुरादाबाद, बिजनौर सरीखे कई इलाकों में हलाला सेंटर चल रहे हैं। धर्म का डर दिखाया जा रहा है। मोटी रकम लेकर मौलवी हलाला कर रहे हैं। लखनऊ में एक पक्षीय तलाक दिलाने वाले मौलाना असगर को महिलाओं ने पीटा। हलाला पीड़ित इन महिलाओं से मुलाकात भी हुई है। पर नाम देना ठीक नहीं है।
जिस समाज को अपनी आधी आबादी की इतनी भी चिंता न हो। जो समाज स्त्री और पुरुष के बराबरी के मुद्दे को धर्म की इबारत में बांचता हो। जिस देश में हर क्षेत्र में समानता और सुरक्षा का दायरा बढ़ा हो वहां मुस्लिम महिलाओं को अकेले कैसे छोड़ा जा सकता है, वह भी तब जब उसकी देखभाल करने वाला संगठन- आॅल इंडिया मुस्लिम ला बोर्ड तलाक और हलाला का समर्थन करता हो। तीन तलाक के मुद्दे पर यह कह कर छुट्टी पा लेना चाहता हो कि निकाहनामे में लिखवा लेंगे कि शौहर तलाक नहीं देगा। पर इस सवाल पर चुप्पी साध लेता हो कि तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता मिलेगा कि नहीं। सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर करके निकाह हलाला और बहुविवाह को अपराध घोषित करने की मांग पर सुनवाई चल रही हो। फिर भी इस सवाल को धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता के चश्में से देखा जा रहा है। डाॅ. भीमराव अंबेडकर समान नागरिक सहिंता के पक्षधर थे। लेकिन जब उनकी सरकार ने यह काम नहीं किया तो उन्होंने पद छोड़ दिया। जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक की यात्रा में समान नागरिक संहिता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। डाॅ. राम मनोहर लाहिया भी स्त्री और पुरुष समानता की बात करते थे। पाकिस्तान, सूडान, बांग्लादेश, मिस्र, सीरिया, सऊदी अरब, इराक, इरान और टर्की जैसे 22 मुस्लिम देशों में तीन तलाक पर अलग-अलग ढंग से अंकुश लगाया गया है। तब भारत में आधी आबादी तीन तलाक और हलाला के नश्तर से पैदा हो रहे दर्द क्यों सहें? क्यों वह इस बात को माने कि वह कारोबार नहीं कर सकतीं। मोबाइल का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। पति से अलग अपनी राय नहीं रख सकतीं। प्रेम नहीं कर सकतीं। अपनी पसंद की शादी नहीं कर सकतीं। पराये मर्दों से बातचीत नहीं कर सकतीं। मुलाकात नहीं कर सकतीं। हिजाब और बुर्के के बगैर बाहर कदम नहीं रख सकतीं।
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक और हलाला से मुक्ति का अभियान चला रही है। उन्हें बराबरी का हक दिलाने के लिए कानून बना रही है। इसे भी कठमुल्ले धार्मिक आजादी में दखल मान बैठे हैं। इसे कुछ इस तरह पेश किया जा रहा है, मानो सरकार कुरान और हदीस की कोई नई आयत लिख रही है। सरकार चाहे डाॅ. लोहिया समर्थकों की हो। चाहे अंबेडकरवादियों की। चाहे पं. दीनदयाल के अनुयायियों की। चाहे महात्मा गांधी को मानने वालों की। सबके लिए यह संकल्प और इस संकल्प पर आगे बढ़ना जरूरी है। मुस्लिम महिलाओं की आजादी के लिए कानून बनाना एक अनिवार्य और अपरिहार्य शर्त है। उन लोगों के लिए भी जिन्होंने शाहबानो को गुजारा-भत्ता न दिया जाए इसके लिए कठमुल्लों के आगे घुटने टेके। सर्वोच्च अदालत के गुजारा भत्ता दिये जाने के फैसले को पलट कर रख दिया। ऐसे लोगों के लिए यह प्रयाश्चित का कालखंड भी है। जिस समाज के अंदर से उसमें जड़ जमा चुकी कुरीतियां और अंधविश्वास दूर करने की आवाज नहीं उठती है उसके अंदर की जड़ जमा चुकी कुरीतियों को खत्म करने के लिए कोई नई बाहरी शक्ति ही काम करती है। यह अच्छी बात है कि इस शक्ति को काम करने के लिए प्लेटफार्म शायरा बानो, आतिया साबरी, गुलशन परवीन, इशरत जहां, आफरीन रहमान, निदा खान, फरहत नकवी, शाइस्ता अंबर सरीखी बहादुर महिलाएं मुहैया करा रही हैं। इनकी फरियाद पर तारीख और तवारीख बदलने की उम्मीद जगी है और यह लग रहा है कि गुनाहे कबीरा को जायज ठहराने की लंबे समय से चले आ रहे कवायद पर विराम लगेगा।
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