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Jharkhand: हेमंत के साथ भाई बसंत की भी मुश्किलें बढ़ीं, राजभवन की चुप्पी से झामुमो और कांग्रेस की धड़कनें तेज
Jharkhand News: हेमंत सोरेन के मामले में चुनाव आयोग ने 25 अगस्त को ही राजभवन को अपनी सिफारिशें भेज दी थी।
Jharkhand News: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद उनके भाई विधायक बसंत सोरेन की मुश्किलें भी बढ़ती नजर आ रही हैं। निर्वाचन आयोग ने बसंत सोरेन के मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद अपनी सिफारिश राजभवन के पास भेज दी है। जानकारों का मानना है कि बसंत सोरेन की विधायकी पर भी खतरा मंडरा रहा है।
वैसे राज्यपाल रमेश बैस ने अभी तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में भी कोई फैसला नहीं किया है। हेमंत सोरेन के मामले में चुनाव आयोग ने 25 अगस्त को ही राजभवन को अपनी सिफारिशें भेज दी थी। आयोग की सिफारिश भेजे जाने के बाद झारखंड में सियासी उठापटक का दौर जारी है मगर राजभवन के फैसला न लेने से सियासी सस्पेंस लगातार बढ़ता जा रहा है। राजभवन के फैसले को लेकर झामुमो और कांग्रेस नेताओं में बेचैनी दिख रही है।
सीएम के भाई की भी विधायकी पर खतरा
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खनन लीज मामले में फंसने के बाद यह मामला चुनाव आयोग पहुंच गया था। चुनाव आयोग ने इस मामले में 22 अगस्त को सुनवाई पूरी करने के बाद 25 अगस्त को अपनी सिफारिशें राजभवन के पास भेज दी थीं। सिफारिश मिलने के बाद करीब 15 दिन का समय बीत चुका है मगर अभी तक राज्यपाल रमेश बैस ने हेमंत सोरेन की विधायकी के संबंध में कोई फैसला नहीं किया है।
अब हेमंत सोरेन के भाई और दुमका से विधायक बसंत सोरेन भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में फंस गए हैं। भाजपा ने बसंत सोरेन के मामले में भी चुनाव आयोग के पास शिकायत की थी। बसंत सोरेन की तरफ से चुनाव आयोग के सामने पेश हुए उनके अधिवक्ता का तर्क था कि यह मामला राजभवन के अधिकार क्षेत्र का नहीं है और राजभवन ने इसे नजरअंदाज करते हुए चुनाव आयोग से उसका मंतव्य मांगा है।
दूसरी ओर भाजपा का आरोप था कि बसंत सोरेन ने अपनी संपत्ति के बारे में आयोग को गुमराह किया है। पार्टी ने उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की है। अब आयोग ने इस मामले में सुनवाई पूरी करके अपनी सिफारिश राजभवन को भेज दी है जिसके बाद बसंत सोरेन की विधायकी पर भी खतरा मंडरा रहा है।
राजभवन ने नहीं पूरा किया वादा
वैसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के संबंध में राजभवन की ओर से अभी तक कोई फैसला न लिए जाने के कारण राज्य में सियासी सस्पेंस बरकरार है। मुख्यमंत्री सोरेन और यूपीए के अन्य नेताओं की ओर से कई बार मांग किए जाने के बावजूद राजभवन ने अभी तक अपना फैसला नहीं सुनाया है। राजभवन की ओर से चुनाव आयोग की सिफारिश के संबंध में कोई आधिकारिक जानकारी न दिए जाने के कारण असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
राजभवन की ओर से यूपीए नेताओं को एक सितंबर को इस बाबत जल्द ही फैसला लेने का आश्वासन दिया गया था मगर राज्यपाल रमेश बैस ने अभी तक उस आश्वासन को पूरा नहीं किया है। इस पूरे प्रकरण को लेकर राजभवन की चुप्पी राज्य में सियासी पहेली बनी हुई है और यूपीए नेताओं की ओर से लगातार हमले किए जा रहे हैं।
झामुमो और कांग्रेस नेताओं में बेचैनी
राजभवन की ओर से मामले को लटकाए रखने के कारण सत्तापक्ष की ओर से सवाल उठाए जा रहे हैं। झामुमो और कांग्रेस नेताओं की धड़कनें बढ़ी हुई हैं मगर राजभवन ने इस मामले को लटकाए रखा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस संबंध में विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान राज्यपाल पर हमला बोला था।
उनका सीधा आरोप था कि राज्य सरकार को अस्थिर करने की साजिश रची जा रही है। करीब एक सप्ताह तक दिल्ली रहने के बाद राज्यपाल रांची लौट आए हैं मगर फिर भी उन्होंने अभी तक अपना फैसला सार्वजनिक नहीं किया है।
सरकार के कामकाज पर असर
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर का कहना है कि अब तो राज्यपाल को दिल्ली से निर्देश भी मिल चुका है, तब वे फैसले में इतनी देरी क्यों कर रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा अप्रत्यक्ष तरीके से राजभवन का बचाव करती हुई नजर आ रही है। विधानसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक बिरंची नारायण का कहना है कि सत्ता पक्ष के लोगों को संवैधानिक संस्थाओं पर दबाव नहीं बनाना चाहिए। वैसे यह तो सच्चाई है कि मामला लंबे समय से लटके होने के कारण राज्य सरकार के कामकाज पर भी असर पड़ रहा है। राज्य सरकार के अफसरों में भी ऊहापोह की स्थिति दिख रही है जिसके कारण कई महत्वपूर्ण मसलों पर फैसले नहीं हो पा रहे हैं।