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Jharkhand: ‘सास की सेवा नहीं करने वाली पत्नी पति से नहीं मांग सकती गुजारा भत्ता’, झारखंड हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
Jharkhand: झारखंड हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाने के दौरान जो टिप्पणियां की है, उसे काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
Jharkhand News: सास – बहू के बीच लड़ाई किसी भी भारतीय परिवार की एक आम कहानी है। कई बार मामला इतना गंभीर हो जाता है कि परिवार के टूटने तक की नौबत आ जाती है। हाल-फिलहाल में पति-पत्नी के बीच तलाक के मामलों में हुए इजाफे के पीछे एक बड़ा कारण ये भी है। झारखंड हाईकोर्ट ने एक ऐसे ही मामले पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाने के दौरान जो टिप्पणियां की है, उसे काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
दरअसल, पूरा मामला दुमका के रहने वाले रूद्र नारायण राय और उनकी पत्नी पिनाली राय चटर्जी के बीच गुजारा भत्ते को लेकर विवाद का है। दुमका की एक फैमिली कोर्ट ने रूद्र नारायण राय को उनसे अलग रह रही पत्नी को 30 हजार और अपने नाबालिग बेटे को 15 हजार देने का आदेश दिया था। रूद्र नारायण ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिस पर बुधवार को फैसला आया।
पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश निरस्त
याचिकाकर्ता रूद्र नारायण राय ने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया था कि वो उस पर उसकी मां और दादी के साथ अलग रहने के लिए दबाव डाल रही है। वह घर की दोनों बूढ़ी महिलाओं की सेवा नहीं करना चाहती। वहीं, पत्नी ने ससुरालवालों पर दहेज प्रताड़ना और क्रूरता का आरोप लगाया। जस्टिस सुभाष चंद ने दोनों पक्षों की दलीलें और कोर्ट में पेश किए गए साक्ष्यों का अध्ययन करने के बाद फैसला सुनाते हुए कहा कि बूढ़ी सास का सेवा करना बहू का कर्तव्य है। वही अपने पति को मां से अलग रहने के लिए दबाव नही बना सकती है। पत्नी के लिए अपने पति की मां और दादी की सेवा करना अनिवार्य है। उसे उनसे अलग रहने की जिद्द नहीं करनी चाहिए।
जस्टिस चंद ने अपने फैसले में मनुस्मृति और यजुर्वेद में महिलाओं को लेकर दर्ज श्लोकों का हवाला भी दिया है। उन्होंने कहा कि जहां परिवार की महिलाएं दुखी होती हैं, वह परिवार जल्द ही नष्ट हो जाता है। जहां महिलाएं संतुष्ट रहती हैं, वह परिवार हमेशा फलता-फूलता है। पत्नी द्वारा बूढ़ी सास या दादी सास की सेवा करना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, कोर्ट ने नाबालिग बेटे के परवरिश की राशि 15 हजार से बढ़ाकर 25 हजार कर दी।