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Karnataka Politics: कर्नाटक विधानसभा में सावरकर की तस्वीर के क्या है मायने, मराठी वोटरों को साधने की कवायद
Karnataka Politics: स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की तस्वीर को लेकर कर्नाटक की सियासत में घमासान छिड़ गया है।
Karnataka Politics: स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर (Freedom Fighter Vinayak Damodar Savarkar) की तस्वीर को लेकर कर्नाटक की सियासत में घमासान छिड़ गया है। कर्नाटक विधानसभा (Karnataka Legislative Assembly) में वीर सावरकर की तस्वीर लगाए जाने पर पूरा विपक्ष भड़क गया। कांग्रेस सदन से वॉकआउट करते हुए धरने पर बैठ गई। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष सिद्धारमैया ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि सदन के शीतकालीन सत्र में जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सरकार ने जानबूझकर ये कदम उठाया है। सरकार विधानसभा में सावरकर की तस्वीर लगाकर लोगों का ध्यान असल मुद्दों से भटकाना चाहती है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार (State Congress President DK Shivakumar) ने कहा कि सरकार विधानसभा का शीतकालीन सत्र बाधित करना चाहती है। इसलिए वे यह तस्वीर लाए हैं। क्योंकि हम उनके विरूद्ध करप्शन के कई मुद्दे उठाने जा रहे हैं। उनके पास कोई एजेंडा नहीं है। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि सावरकर एक विवादित शख्सियत हैं। ऐसे में उनका इस तरह सम्मान क्यों हो रहा है। विधानसभा के बाहर कांग्रेस के तमाम विधायकों ने अन्य महापुरूषों की तस्वीरें लेकर विरोध प्रदर्शन किया।
विधानसभा में सावरकर की तस्वीर के क्या है मायने
कर्नाटक में वीर सावरकर बनाम टीपू सुल्तान का मुद्दा नया नहीं है। हाल ही में राज्य के यादगिर जिले में टीपू सर्किल नामक जगह का नाम सावरकर सर्किल कर दिया था। जिसपर एक पक्ष की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया दी गई थी। इस फैसले के खिलाफ जमकर विरोध – प्रदर्शन भी हुए थे। इससे पहले शिवमोगा जिले में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सावरकर और टीपू की होर्डिंग को लेकर बवाल खड़ा हो गया था।
दरअसल, बीजेपी समेत अन्य हिंदूवादी संगठन वीर सावरकर को कट्टर देशभक्त के तौर पर पेश करते हैं। वहीं, कांग्रेस समेत बीजेपी विरोधी पार्टियां सावरकर को देश के गद्दार के तौर पर प्रस्तुत करती है। राहुल गांधी अपने हालिया भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कर्नाटक और महाराष्ट्र में थे, तब उन्होंने इस विवाद को जोर शोर से हवा दी थी।
कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। वर्तमान में देश के सियासी नक्शे पर ये एकमात्र राज्य है, जहां बीजेपी के हाथ से सत्ता फिसलती नजर आ रही है। देश के अन्य हिस्सों में अपने जनाधार को हासिल करने के लिए जूझ रही कांग्रेस यहां बीजेपी पर भारी पड़ रही है। बीजेपी की कमजोर लीडरशिप और खराब शासन ने उसे यहां अलोकप्रिय बना दिया है। ऐसे में भगवा दल की पूरी कोशिश चुनाव को हिंदुत्व के पिच पर लेकर जाना है। राज्य में बीते एक साल से हिजाब विवाद से लेकर अब तक कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिसके सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जा रही है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में ही विपक्षी कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ मुद्दों और आरोपों का जखीरा तैयार कर रखा था लेकिन ऐन वक्त पर बीजेपी ने चर्चा का बिंदु ही बदल दिया।
विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक
दक्षिण भारत का एकमात्र बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक अगर भगवा दल के हाथ से निकल जाता है तो वो साउथ में पार्टी के भविष्य को गहरा झटका लगेगा। लोकसभा में भी कर्नाटक ने बीजेपी को झोली भड़कर सीटें दी हैं। ऐसे में बीजेपी किसी भी कीमत पर इस महत्वपूर्ण राज्य को गंवाना नहीं चाहती है। सावरकर के बहाने हिंदुत्व के मुद्दे को धार देकर पार्टी राज्य में अपने कार्यकर्ताओं को भावनात्मक रूप से अगले चुनाव के लिए तैयार करना चाहती है।
दरअसल, राज्य के बीजेपी कार्यकर्ताओं में बसवारज बोम्मई जो कि जनता दल से पार्टी में आए हैं, को सीएम बनाने को लेकर भी नाराजगी है। गैर बीजेपी और संघ के पृष्ठभूमि वाले बोम्मई को सीएम का पद दिए जाने से कट्टर भाजपाईयों में एक प्रकार का असंतोष भी है। बीजेपी हिंदुत्व जैसे भावनात्मक मुद्दे के सहारे इन चुनौतियों से पार पाना चाहती है। ऐसे में अगर कांग्रेस सावरकर के विरोध को बड़ा मुद्दा बनाती है तो राज्य में एकबार फिर टीपू सूल्तान बनाम वीर सावरकर का मुद्दा गरमा सकता है। जिसका फायदा बीजेपी को होगा।
मराठी वोटरों को साधने की कवायद
महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच इन दिनों सीमा विवाद का मुद्दा चरम पर है। दिलचस्प बात ये है कि दोनों ही राज्यों में बीजेपी सत्ता में है। महाराष्ट्र की सीमा से सटे कर्नाटक के जिलों में रहने वाले मराठी लोग लंबे समय से महाराष्ट्र में शामिल होने की इच्छा व्यक्त करते रहे हैं। कर्नाटक के चार सीमावर्ती जिलों के 12 पंचायत क्षेत्रों और 865 गांवों को लेकर क़ानूनी लड़ाई जारी है।
उत्तर कर्नाटक के इस क्षेत्र में आज भी विधानसभा के चुनाव मराठी बनाम कन्नडिगा के मुद्दे पर लड़े जाते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कर्नाटक की उपराजधानी बेलगांवी के अलावा निपाणी, बिदर, कारवार और बीजापुर जिलों में मराठी मतदाताओं की भूमिका काफी निर्णायक होती है। वीर सावरकर जो कि एक मराठी भाषी थे, उनसे जुड़े मुद्दे को उछालकर बीजेपी कांग्रेस को इन जिलों की विधानसभा सीटों पर सीधा नुकसान पहुंचाना चाहती है।
इसके अलावा बीजेपी को पड़ोसी महाराष्ट्र में भी इसका आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में फायदा होगा। राजनीतिक जानकार इसलिए सावरकर प्रकरण को कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं।