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SC-ST Law: एससी एसटी कानून तभी लागू जब सार्वजनिक स्थान पर गालियां दी गईं हों

SC-ST Law: कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी को गाली देने में SC-ST कानून तभी लागू होगा जब गालियां पब्लिक प्लेस में, सार्वजनिक रूप से दिखाई पड़ने वाली जगह में दी गईं हों।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 23 Jun 2022 2:26 PM GMT
SC ST law applicable only when abuses are made in public place
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कर्नाटक हाई कोर्ट: Photo - Social Media

Lucknow: कर्नाटक हाई कोर्ट (Karnataka High Court) ने एक मामले में कहा है कि किसी को गाली देने में एससी-एसटी कानून (SC-ST Law) तभी लागू होगा जब गालियां पब्लिक प्लेस में (abuse in public place), सार्वजनिक रूप से दिखाई पड़ने वाली जगह में दी गईं हों।

कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) ने कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराधों के लिए, जातिवादी गालियां देने की घटना सार्वजनिक स्थान पर होनी चाहिए।

हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ लंबित एक मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया कि कथित दुर्व्यवहार एक इमारत के तहखाने में किया गया था, जहां पीड़ित और उसके सहकर्मी ही मौजूद थे। यानी वह सार्वजनिक स्थल या सार्वजनिक दृश्यता वाला स्थान नहीं था।

जातिवादी गालियां देने का मामला

2020 में हुई कथित घटना में रितेश पियास नामक शख्स पर आरोप था कि उसने मोहन को एक इमारत के तहखाने में जातिवादी गालियां दीं जहां वह दूसरों के साथ काम कर रहा था। इन सब लोगों को भवन मालिक जयकुमार आर नायर ने काम पर लगाया था।

हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना ने 10 जून को दिए अपने फैसले में कहा : "बयानों को पढ़ने से दो कारक सामने आते हैं - एक यह कि इमारत का तहखाना सार्वजनिक निगाह में नहीं था और दूसरी बात ये कि वहां केवल शिकायतकर्ता, उसके मित्र या जयकुमार आर. नायर के अन्य कर्मचारी उपस्थित थे।

अदालत ने कहा, "स्पष्ट रूप से सार्वजनिक स्थान या सार्वजनिक रूप से दिखाई देने वाले स्थान पर अपशब्द नहीं कहे गए।" अदालत ने कहा कि इसके अलावा मामले में अन्य कारक भी थे। आरोपी रितेश पियास का भवन मालिक जयकुमार आर नायर से विवाद था और उसने भवन निर्माण के खिलाफ स्टे ले लिया था।।अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि नायर, पियास पर "अपने कर्मचारी (जोहान) को आगे किये हुए था।"

अदालत ने कहा कि दोनों के बीच विवाद के मुद्दे को खारिज नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह घटनाओं की श्रृंखला में एक स्पष्ट लिंक को प्रदर्शित करता है। इसलिए, अपराध का पंजीकरण ही प्रामाणिकता की कमी से ग्रस्त है। मंगलुरु के सत्र न्यायालय में जहां मामला लंबित था, के एससी एसटी अत्याचार अधिनियम के अलावा, पियास पर आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने) के तहत भी आरोप लगाया गया था।

उच्च न्यायालय ने आरोपों को किया खारिज

उच्च न्यायालय ने आरोपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आईपीसी की धारा 323 के तहत दंडनीय अपराध के लिए, झगड़े के दौरान चोट लगी होनी चाहिए। हालाँकि इस मामले में, मोहन के "घाव प्रमाण पत्र" में बताया गया है कि उसके हाथ और छाती पर एक साधारण खरोंच का निशान है। रक्तस्राव का संकेत नहीं है। इसलिए, साधारण खरोंच के निशान आईपीसी की धारा 323 के तहत अपराध नहीं हो सकते हैं।

निचली अदालत के समक्ष लंबित मामले को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि तथ्यों के आलोक में, जब अपराध के मूल तत्व गायब हैं, तो इस तरह की कार्यवाही को जारी रखने और याचिकाकर्ता को आपराधिक मुकदमे की कठोरता का सामना करने के लिए मजबूर करने की अनुमति देना पूरी तरह से अनुचित होगा, और ये कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।"

Shashi kant gautam

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