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Corona third wave: केरल में बढ़ता ही जा रहा कोरोना का प्रकोप, तीसरी लहर की चेतावनी
कोरोना महामारी के पिछले साल के प्रकोप के दौर में केरल ने बहुत बढ़िया काम किया था और संक्रमण का फैलाव रोकने में सफलता हासिल की थी लेकिन उसके बाद से राज्य में स्थिति डगमगा गयी है। जिस तरह से यहाँ केस बढ़ रहे हैं उससे एक्सपर्ट्स ने तीसरी लहर की चेतावनी दी है।
कोच्चि। कोरोना महामारी के पिछले साल के प्रकोप के दौर में केरल ने बहुत बढ़िया काम किया था और संक्रमण का फैलाव रोकने में सफलता हासिल की थी लेकिन उसके बाद से राज्य में स्थिति डगमगा गयी है। जिस तरह से यहाँ केस बढ़ रहे हैं उससे एक्सपर्ट्स ने तीसरी लहर की चेतावनी दी है। केरल में कोरोना के साथ जीका वायरस का भी प्रकोप फ़ैल रहा है। लेकिन हैरत की बात ये भी है राज्य सरकार ने सबरीमाला के दर्शन के लिए तीर्थयात्रियों की दैनिक लिमिट को बढ़ा कर दस हजार कर दिया है और साथ ही बकरीद के लिए तीन दिन की ढील की घोषणा की गयी है।
इस साल, अप्रैल के दूसरे हफ्ते के बाद से यहाँ लगातार मामले बढ़ते चले गए और मई के मध्य में पीक की स्थिति आ गयी। उस दौरान केरल में रोजाना 44 हजार के आसपास केस आ रहे थे और राज्य में 4 लाख 45 हजार एक्टिव केस थे। यही नहीं, यहाँ पॉजिटिवटी दर 30 फीसदी के आसपास हो गयी थी। ऐसे नाजुक हालात में राज्य में पंद्रह दिन के लिए पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया था जिसके बाद संक्रमण का ग्राफ धीरे धीरे नीचे आ गया। लेकिन पिछले एक महीने से संक्रमण का ग्राफ स्थिर बना हुआ है और रोजाना 10 से 12 हजार केस सामने आ रहे हैं।
टोटल पॉजिटिवटी दर भी 10 से 11 फीसदी पर है। जहाँ पूरे देश में कोरोना के केस तेजी से नीचे आ गए हैं वहीं कुल मामलों का 30 फीसदी हिस्सा सिर्फ केरल का है। अब आलम ये है कि पिछले दो हफ़्तों से ग्राफ फिर ऊपर चढ़ने लगा है और इसमें 20 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी है। 17 जुलाई को केरल में 16148 नए केस दर्ज किये गए जबकि महाराष्ट्र में 8172 नए केस मिले थे।
ज्यादा टेस्टिंग यानी ज्यादा मामले
एक्सपर्ट्स का कहना है कि केरल में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने की कई वजहें हैं। इनमें सबसे प्रमुख बात ये है कि केरल में राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा टेस्टिंग हो रही है जिसका मतलब है कि अधिकाधिक संक्रमित दर्ज किये जा रहे हैं। फरवरी में टेस्टिंग का राष्ट्रीय औसत प्रति दस लाख पर 3,17,567 था जबकि केरल में 6,88299 था। यानी केरल में राष्ट्रीय औसत से दोगुना ज्यादा टेस्टिंग की गयी थी। एक्सपर्ट्स का दावा है कि केरल में ऐसे लोगों की संख्या कम है, जो कोरोना की पड़ताल से बच जाते हों। और दूसरा कारन लोगों का व्यवहार है क्योंकि जब भी किसी व्यक्ति में कोई लक्षण महसूस होता है तो ज्यादातर लोग खुद ही टेस्ट करवाने चले जाते हैं। लोग बीमारी छिपाते नहीं है। अगर ज्यादातर लोगों को हल्का लक्षण रहता है तो भले ही उनको अस्पताल में भर्ती करने की नौबत नहीं आती लेकिन उनका केस डेटाबेस में अवश्य दर्ज हो जाता है। यही वजह है कि कोरोना संक्रमण के केस ज्यादा होने के बावजूद मृत्यु दर 0.47 है जो देश के औसत की तुलना में बहुत कम है।
इसके अलावा लॉकडाउन की बंदिशें ढीली किये जाने से लोगों का आवागमन और मिलना जुलना बढ़ा है। कुछ एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि केरल में लोगों में सेरोपॉजिटिवटी की दर कम है यानी कोरोना के प्रति पहले एक्सपोज़ हो चुके लोगों में एंटीबॉडीज कम हैं। देश में हुए तीसरे सेरो सर्वे में पता चला था कि जहाँ राष्ट्रीय औसत 21 फीसदी था वहीँ केरल में ये 11.6 फीसदी था। इसका मतलब ये हुआ कि बहुत कम लोगों में पहले संक्रमण हो चुका था और बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे जिनको संक्रमण होने की संभावना ज्यादा थी। नए केस बढ़ने की एक वजह ये भी कही जा सकती है।
जानकारों का ये भी कहना है कि केरल के बहुत से लोग देश विदेश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे हैं और ऐसी हालत में बाहरी क्षेत्रों से इस राज्य में आने वाले लोगों की वजह से भी यहां संक्रामक रोगों, खास तौर से वायरल रोगों के फैलाव की संभावनाएं भारत के अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत ज्यादा हैं।
राज्य के जनसंख्या घनत्व (859 लोग प्रति वर्ग किलोमीटर) और बुजुर्गों की अधिक संख्या (20 फीसदी की उम्र 65 वर्ष से अधिक) को देखते हुए चिकित्सा विशेषज्ञ हमेशा से चेतावनी देते रहे हैं कि संक्रामक रोगों की पुनरावृत्ति और ज्यादा प्रभावी होने की वजहों में से एक ये भी हो सकती है।