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विधानसभा चुनाव: केरल में विजयन बदल रहे सत्ता परिवर्तन का इतिहास
केरल में विजयन की सरकार बरकरार रहने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। मतगणना के ताजा रुझान में वह जोरदार वापसी करते नजर आ रहे हैं।
तिरुवनन्तपुरम: केरल में विजयन की सरकार बरकरार रहने के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। मतगणना के ताजा रुझान में वह जोरदार वापसी करते नजर आ रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि केरल के मतदाताओं ने परंपरा पर चलते हुए एक बार फिर विरोधियों को सत्ता से बाहर रखने के पक्ष में फैसला सुनाया है। इसी के साथ माकपा गठबंधन की सरकार के सत्ता में बने रहने की अटकलों पर भी विराम लग गया है।
जनता के बदलाव के सारे दावे खारिज कर दिये हैं। जनता ने वर्तमान सरकार के साथ रहने के पक्ष में फैसला सुना दिया है। केरल में 1977 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब कोई सरकार वापसी कर रही है। इतिहास देखें तो 1980 के बाद से लगातार हर पांच साल में एलडीएफ और यूडीएफ के बीच सत्ता की अदला बदली होती रही है।
हालांकि पिनाराई विजयन की कार्यशैली से वाकिफ लोगों ने पहले ही कह दिया था कि वह इस बार हर पांच साल में बदलने वाला सत्ता परिवर्तन का इतिहास बदल देंगे।
गौरतलब है कि एलडीएफ़ को पंचायत, नगरपालिका और नगर निगम तीनों चुनावों में बहुमत मिला था जो कि इस बात का संकेत था कि विधानसभा चुनाव में क्या होने वाला है। दिसंबर में हुए चुनाव में एलडीएफ़ ने 40.2 फ़ीसद वोट हासिल किए थे और अधिकांश स्थानीय निकायों पर उसका नियंत्रण रहा था।
यह बात भी कही जा रही थी कि इस बार कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है। पार्टी की निरंतर जीत भी यही संकेत दे रही है कि एलडीएफ की सरकार के सत्ता में बने रहने की पूरी संभावना है। इस विश्वास का मूल कारण था सरकार का प्रदर्शन। विजयन के नेतृत्व में कोरोना वायरस महामारी होने के बावजूद पेंशन योजना के दायरे में 60 लाख लोगों को लाया गया और राशन किट 88 लाख लोगों के घरों तक पहुँचाई गई। कोविड-19 के संक्रमित लोगों का इलाज भी मुफ़्त किया गया। सबसे बढ़ कर केरल के सरकारी अस्पतालों इलाज की कहीं बेहतर व्यवस्था रही।
इसीलिए केंद्रीय एजेंसियों के सोने की तस्करी के रैकेट के बारे में हो-हल्ला मचाने का मतदाता पर कोई असर नहीं पड़ा। एलडीएफ ने केरल में ढांचागत विकास पर भी उल्लेखनीय कार्य किया। सबसे बढ़कर विजयन की एक सफल मुख्यमंत्री की छवि काम आयी। जिसने मतदाता पर सकारात्मक प्रभाव डाला।
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