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Kumbh 2025: महाकुंभ पर विचार मंथन के समागम, तीन दिवसीय कुंभ कॉन्क्लेव का समापन

Kumbh 2025: हाकुंभ कॉनक्लेव का मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान में आयोजन किया गया जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख लोगों से लेकर साधु संतों का वैचारिक समागम हुआ।

Dinesh Singh
Published on: 27 Nov 2024 10:44 PM IST
Kumbh 2025 ( Pic- Newstrack)
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 Kumbh 2025 ( Pic- Newstrack)

Kumbh 2025: प्रयागराज के मोती लाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान में प्रयागराज महाकुंभ के विभिन्न पहलुओं पर चल रहे विचार मंथन के आयोजन कुंभ कॉन्क्लेव का समापन हो गया।

कल्पवास और उसकी वैज्ञानिकता पर फोकस

महाकुंभ कॉनक्लेव का मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान में आयोजन किया गया जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख लोगों से लेकर साधु संतों का वैचारिक समागम हुआ। जिस महापर्व को लेकर पूरा विश्व आश्चर्य होता है वह भारत मे ही होता है और विश्व के सबसे बड़ी आबादी इसके साथ साक्षी बनती है और वह है महापर्व कुंभ।

कल्पवासी और कल्पवास कुंभ की प्रथम संकल्पना है।।समरसता का सबसे बड़ा उदाहरण यह महापर्व कुंभ है यह हमारी आस्था और आत्मिक चेतना का जीवित उदाहरण है। यह कुंभ हानिकारक तापो का समन कर हमारे अंदर उत्पादक ऊर्जा को पैदा करता है।

कुंभ में आध्यात्मिक ऊर्जा तो संचालित होती ही है किंतु इसके वैज्ञानिक पक्ष भी हैं। यह एक तरफ से वातावरण में शुद्ध वायु का संचालन करता है और आयु वर्धन होता है। महाकुंभ के वैज्ञानिक पक्ष की समापन सत्र। आई आई टी बी एच यू के प्रो.अमित पात्रा ने साझा किया।

तकनीकी के उपयोग के नए कीर्तिमान रचेगा महाकुंभ

कुंभ कॉन्क्लेव में तकनीकी के उपयोग पर भी मंथन हुआ। इस बार मोबाइल ऐप्स और ए आई तकनीक के सहारे कुंभ का सुगम संचालन संभव होगा। इस बार श्रद्धालुओं की संख्या 40 करोड़ अनुमानित की जाती है, जिसमें तकनीक के सहारे सुविधाओं का विस्तार होगा। इस बार के कुंभ महापर्व के आयोजन, नियोजन, और सुविधा के संदेश का प्रारूप आईटीसी ने दिया है।

चिन्मय मिशन मुबंई के स्वामी मित्रानंद ने कहा कि कुंभ केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक विधि को उचाई तक लाने का कार्य कर रहा है। यह उत्सव संस्कृति और एकता का उत्सव है। कुम्भ महापर्व में सम्मिलित होकर आंतरिक, दार्शनिक, और आध्यात्मिक सुख का अनुभव किया जाता है।

इसी कुंभ में हम पारलौकिक और लौकिक सुख की बात करते हैं, उनके एकाकार की बात करते हैं। स्वयं के जीवन के व्यवहार से ऋषियों ने कुंभ जैसी परंपरा को विकसित किया। जीवन में कुछ बातों को सोचना और उनको पारित करना, यही संकल्प की वृद्धि संगम में पूरी होती है, इसका अभ्यास इसी प्रकार के समागम में होता है। हमारे समागम हमको हमारे पूर्वजों से जोड़ते हैं उनके व्यवहारों को सीखने का नया दर्शन देते हैं।



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Shalini Rai

Shalini Rai

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