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Kumbh Mela Ka Samay: नक्षत्र तय करते हैं कुम्भ मेले का समय और स्थान
Kumbh Mela Ka Mahatva: हर कुंभ मेले के लिए विशिष्ट स्थान सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति के ज्योतिषीय प्लेसमेंट द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। आइए जानें इसके बारे में विस्तार से।
Kumbh Mela Ka Samay (Photo - AI)
Kumbh Mela Ka Samay Aur Sthan: क्या आपने कभी सोचा है कि कुंभ मेले (Kumbh Mela) की तिथि और स्थान का चयन कैसे किया जाता है? किन्हीं खास तिथियों पर ही क्यों कुम्भ का आयोजन होता है? दरअसल, इसके पीछे ज्योतिषीय गणना की भूमिका होती है और इस भव्य तीर्थ का समय और स्थान प्राचीन सनातन परंपराओं में निहित है।
हर कुंभ मेले के लिए विशिष्ट स्थान सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति के ज्योतिषीय प्लेसमेंट द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। सूर्य को आत्मा या जीवनदाता माना जाता है, जबकि चंद्रमा मन से जुड़ा हुआ है। बृहस्पति को देवताओं का गुरु माना जाता है। तथ्य यह है कि बृहस्पति को राशि चक्र के माध्यम से यात्रा पूरी करने में लगभग 12 वर्ष लगते हैं, यही कारण है कि कुंभ मेला लगभग बारह वर्षों के बाद विशेष स्थान पर लौटता है। इन शक्तिशाली नक्षत्रों के अनुसार ही प्रत्येक कुंभ मेले का समय और स्थान निर्धारित होता है, जिससे भक्तों के लिए आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली समय बनता है।
एक दुर्लभ आयोजन
कुंभ मेला 12 साल की अवधि में चार बार मनाया जाता है- हर तीन साल में एक बार। यह चार स्थानों-प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। कुंभ मेले का स्थान ग्रहों के ज्योतिषीय क्रम पर आधारित होता है। बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को ध्यान में रखा जाता है और जिस राशि में वह स्थित है, उसे भी देखा जाता है। चूँकि बृहस्पति को सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 12 वर्ष लगते हैं, इसलिए कुंभ मेला 12 वर्षों के दौरान 4 बार मनाया जाता है।
प्रयागराज (Prayagraj)
कुंभ मेला प्रयागराज में तब मनाया जाता है जब बृहस्पति वृषभ राशि में होता है और सूर्य, चंद्रमा मकर राशि में होते हैं। प्रयागराज उस स्थान पर स्थित है जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है।
हरिद्वार में कुंभ मेला तब मनाया जाता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में रहता है, सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा धनु राशि में होता है। हरिद्वार गंगा नदी के किनारे स्थित है।
उज्जैन (Ujjain)
जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है, सूर्य और चंद्रमा मेष राशि में होते हैं, तो यह उज्जैन में कुंभ मेले के लिए एकदम सही संरेखण होता है। उज्जैन शिप्रा नदी पर स्थित है।
नासिक (Nashik)
गोदावरी नदी के तट पर स्थित, कुंभ मेला नासिक में तब मनाया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है और सूर्य, चंद्रमा कर्क राशि में होते हैं।
144 वर्षीय कुम्भ (Maha Kumbh)
जब बृहस्पति मकर राशि में और सूर्य व चंद्रमा अन्य शुभ स्थानों पर होते हैं, तब कुंभ का समय बनता है और यह संयोग हर 144 वर्षों में एक बार आता है। इस संयोग को विशेष रूप से शुभ और दिव्य माना जाता है। हर 144 साल में एक दुर्लभ खगोलीय घटना होती है, जो कुंभ मेले को विशिष्ट बनाकर कुम्भ बना देती है। हिंदू ज्योतिषीय गणनाओं में 12 और 144 वर्षों के चक्र का महत्व बताया गया है। 12 साल के चक्र को एक सामान्य कुंभ मेला कहा जाता है और 12 कुंभ मेलों के बाद (12x12= 144 साल) ‘विशेष कुंभ’ आता है।