TRENDING TAGS :
Mahakumbh 2025: चंद्रमा की गलती धरतीवासियों के लिए बना वरदान, जानें महाकुंभ से जुड़ी रोचक कथा
Mahakumbh 2025: अमृत कलश की खासियत यह थी कि उसका एक बूंद जो भी ग्रहण कर लेगा वह अमर हो जाएगा। ऐसे में अमृत कलश के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया।
Mahakumbh Ki Katha: तीर्थनगरी प्रयागराज में 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) से धार्मिक और आध्यात्मिक समागम महाकुंभ की शुरूआत होने जा रही है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी पर करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र स्नान करते हैं। माना जाता है कि कुंभ के दौरान प्रयागराज में त्रिवेणी में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते है और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
एक माह तक चलने वाले कुंभ के दौरान प्रयागराज में साधु-संतों और श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। ऐसे में सभी के मन में कुंभ से जुड़ी कहानियों और उसके महत्व को जानने की जिज्ञासा रहती है। तो फिर आइए जानते है महाकुंभ से जुड़ी एक ऐसी ही रोचक कथा के बारे में जोकि चंद्र देव से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि भगवान चंद्र देव की एक गलती के चलते प्रयागराज में कुंभ मेले के आयोजन की शुरूआत हुई। वहीं चंद्रदेव की यह गलती धरतीवासियों के लिए वरदान बन गयी। आइए जानें पूरी कथा।
समुद्र मंथन से जुड़ा महत्व
यह तो सभी जानते हैं कि देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था। समुद्र मंथन के दौरान कई बहुमूल्य चीजों के साथ अमृत कलश भी निकला था। अमृत कलश की खासियत यह थी कि उसका एक बूंद जो भी ग्रहण कर लेगा वह अमर हो जाएगा। ऐसे में अमृत कलश के लिए देवताओं और दानवों में युद्ध छिड़ गया। दानवों को देवताओं को परास्त कर अमृत कलष अपने पास रख लिया।
तब देवताओं ने देवराज इंद्र के पुत्र जयंत को अमृत कलश को वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। तब जयंत ने पक्षी का रूप धारण कर छल से अमृत कलश को चुरा लिया था। लेकिन इससे पहले जयंत जब अमृत कलश को दानवों के चंगुल से निकालने के लिए जा रहे थे। तब उनसे साथ गुरू बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा और शनि को साथ में भेजा गया था।
जयंत के साथ भेजे गये देवताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी भी सौंपी गयी थी। गुरू बृहस्पति को असुरों को रोकने के लिए भेजा गया था। वहीं भगवान सूर्यदेव को यह कहा गया था कि अमृत कलश वापस लाने के दौरान टूटने ना पाए। चंद्र देव को कहा गया कि अमृत कलश कहीं भी छलकने ना पाए और शनि देव को जयंत पर नजर रखने के लिए कहा गया ताकि वह पूरा अमृत खुद ही न पी जाएं।
चंद्रमा से हो गयी भारी चूक
धार्मिक कथाओं के अनुसार जब जयंत के नेतृत्व में देवता अमृत कलश को लेकर वापस स्वर्ग लौट रहे थे। तभी भगवान चंद्र देव से भारी चूक हो गयी। उन्होंने जो जिम्मेदारी दी गयी थी उसके विपरीत चंद्र देव से भूलवश अमृत कलश छलक गया और उसकी चार बूंदे धरती पर जा गिरी।
अमृत की वो चार बूंदे धरती के चार जगहों हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन में गिरी। जिन चार जगहों पर अमृत की चार बूंदे गिरी वह पवित्र तीर्थस्थल बन गये। तब यहां कुंभ का आयोजन होने लगा।
अमृत कलश को असुरों को हराकर वापस लाने की जिम्मेदारी जिन देवताओं गुरू बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा और शनि को दी गई थी। आज भी वहीं ग्रहों की विशेष स्थिति को देखकर प्रयागराज समेत चारों पवित्र जगहों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि कुंभ में पवित्र नदियों में स्नान करने से मुक्ति का द्वार खुल जाता है।