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Kumbh 2025: जातिपात के बंधन से मुक्त केवल धर्म और राष्ट्र की रक्षा करना है इनका उद्देश्य, जानिए श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला के बारे में

Kumbh 2025: श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला अन्य अखाड़ों से अलग हटकर इस अखाड़े की छावनी में वैभव और प्रदर्शन की जगह सेवा और सहजता का वातावरण नजर आता है।

Jyotsna Singh
Written By Jyotsna Singh
Published on: 30 Nov 2024 11:44 AM IST
Kumbh 2025: जातिपात के बंधन से मुक्त केवल धर्म और राष्ट्र की रक्षा करना है इनका उद्देश्य, जानिए श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला के बारे में
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श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला  (फोटो: सोशल मीडिया) 

Kumbh 2025: कुंभ स्नान में आनबान और शान के साथ शिरकत करने वाले अखाड़ों का महात्म्य देखते ही बनता है। जिनमें शिरकत करने वाले पंचायती अखाड़ा निर्मला में हिंदू सनातन परंपरा के 13 अखाड़े में सभी लक्षणों की आत्मा का वास माना जाता है। ये अखाड़ा मुख्य 13 अखाड़ों में अंतिम चरण माना जाता है। वेद और वेदंगों में श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला ऐसा इकलौता अखाड़ा है, जो वेदों के परे जाकर गुरु ग्रंथ साहिब को भी अपने अखाड़ों में उतना ही सम्मान देता है। इसमें ज्ञान को हासिल करने के लिए शास्त्र की परंपरा है, तो धर्म की रक्षा के लिए अस्त्र उठाने वाले खालसा भी हैं। सैव बैरागी और उदासीन अखाड़ों से कई परंपराओं में ये अखाड़ा अपने को अलग रखता है । लेकिन वहीं सबके साथ सामंजस्य बैठा कर भी चलता है। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला अन्य अखाड़ों से अलग हटकर इस अखाड़े की छावनी में वैभव और प्रदर्शन की जगह सेवा और सहजता का वातावरण नजर आता है। यहां अखाड़ों के आचार्य और महामंडलेश्वरों की ना तो भीड़ दिखाई देगी और ना ही उनके अलग-अलग शिविर। बस एक ही आवाज आपको सुनाई देगी वो है गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी का पाठ और कीर्तन।

गोविंद सिंह जी महाराज द्वारा चलाया हुआ यहां दो संप्रदाय है खालसा पंथ और निर्मला पंत। खालसा पंथ की पेशवाई की कई खास बातें होती हैं जो इसे अन्य धार्मिक अनुष्ठानों से अलग बनाती हैं। पेशवाई के दौरान निशान साहिब, जो सिख धर्म का ध्वज है, को ऊंचा किया जाता है और इसकी पूजा की जाती है।वहीं पेशवाई के दौरान गुरु ग्रंथ साहिब, जो सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है, की पूजा की जाती है और इसके श्लोकों का पाठ किया जाता है। जबकि खालसा पंथ के संन्यासी पेशवाई के दौरान एकत्रित होकर अपने धर्म और समुदाय के प्रति समर्पित रहते हैं। और शस्त्रों द्वारा अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं। इस अखाड़े की पेशवाई के दौरान खालसा पंथ के अनुयायी सैन्य अनुशासन का पालन करते हैं और अपने सैन्य कौशल का प्रदर्शन करते हैं।

वहीं कुंभ स्नान के दौरान इस सम्प्रदाय द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सिख संगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं। साथ ही सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान लंगर आयोजित किया जाता है, जिसमें सभी लोगों को मुफ्त भोजन प्रदान किया जाता है।

इन खास बातों के अलावा, खालसा पंथ की पेशवाई में कई अन्य अनुष्ठान और गतिविधियाँ भी शामिल होती हैं जो इसे एक महत्वपूर्ण और यादगार अनुभव प्रदान करती हैं।


श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला का इतिहास

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला अखाड़े की इतिहास की बात करें तो गुरु नानक देव जी ने सन 1662 में निर्मल संप्रदाय की स्थापना की जिससे इस अखाड़े का उदय हुआ। इसका मुख्यालय उस समय पटियाला में था । लेकिन अब नया मुख्यालय कनखल हरिद्वार है। 1662 ईस्वी में जब निर्मल पंचायती अखाड़े की स्थापना पटियाला में हुई थी तब महाराजा पटियाला समेत कई महाराजाओं ने धन राशि देकर इस अखाड़े की स्थापना के कार्य में अपना सहयोग प्रदान किया था। पहले इसका हेड ऑफिस पटियाला में था फिर इलाहाबाद वहीं आज कल हरिद्वार में है। इसकी कई ब्रांच देश भर में हैं।


ये हैं इस अखाड़े की शिक्षा

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला पंत को जो शास्त्र और ग्रंथ दिए गए हैं वे यहां के संतों के लिए भारतीय संस्कृति के मूल हैं। जो है वेद शास्त्र उनके वेदंगों का पठन करे, जो गुरबाणी का अध्ययन करे और जो दूसरे की सेवा करे। वहीं खालसा अपनी शिक्षा के अनुसार इस धरती पर जो दीन हैं दुखी है, या कोई किसी को बेवजह सता रहा है या शत्रु हमारी सीमाओं पर गलत तरीके से बढ़ रहा हो उनसे रक्षा करते हैं। शास्त्र के साथ यदि शस्त्र नहीं होगा तो राष्ट्र की रक्षा नहीं हो सकती। इसलिए शस्त्र और शास्त्र दोनों की आवश्यकता है। निर्मल संप्रदाय को गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने शास्त्र दिया और खालसा पंथ को जिसको सिख पंथ भी कह देते हैं उसे शस्त्र दिए।


सिक्खों की 10 गुरुओं की वाणी का है खास महत्व

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मला अखाड़े में सिक्खों की 10 गुरुओं की वाणी को खास महत्व दिया गया है। इन दस गुरुओं ने अपने शिष्यों को सेवा और भक्ति का जो संदेश दिया उन्हें संकलित कर एक ग्रन्थ का रूप दिया गया।जो गुरु वाणी कहलाई।

गुरु वाणी का स्रोत है गुरु ग्रंथ साहिब। जिसे खुद एक गुरु का दर्जा हासिल है जो इनके लिए एक वेद से कम नहीं है।

इस अखाड़े का एक प्रेजिडेंट होता है, सेक्रेटरी कोठारी आदि और उसके विभिन्न जो है कार्यकर्ता होते हैं सब मिलकर के यहां की परंपरा को चलाते हैं। गुरु नानक देव जी महाराज, गुरु अंगद देव, अमरदास, रामदास गुरुओं की वाणी संग्रह है उसका नाम है गुरु ग्रंथ साहिब। जिसमें सभी भक्तों की वाणी है। इसमें सभी जातियों के भक्त और गुरु की सभी वाणीयों का समावेश है। इस पंथ की विशेषता है कि, इसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सब एक साथ भोजन करने के दौरान पंगत और संगत करते हैं। जातिगत कोई भेदभाव यहां नहीं किया जाता। विशेष करके इस अखाड़े के संत केश धारी होते हैं। कभी केसों को कटवाते नहीं। कड़ा पहनते हैं। कृपाण धारण करते हैं।


ये है दीक्षा संस्कार विधि

निर्मल संप्रदाय में शिष्यों को दीक्षा देने की प्रक्रिया बेहद सरल और संयमित है। इसमें गुरु ग्रंथ साहब का जो पाठ है वहीं दीक्षा होती है। जब गुरु शिष्य के कानों में कोई शब्द देता है। मूल मंत्र का पाठ देता है, इसे ही दीक्षा माना जाता है। यही दीक्षा के दौरान दिए गए मंत्रों का जाप संतों को मन में जपते रहना होता है। इसकी दीक्षा की परंपरा अन्य अखाड़ों की तुलना में अत्यंत सरल है। यहां शास्त्र और शस्त्र दोनों का बराबर महत्व है।


इस अखाड़े की ये है आंतरिक संरचना

1886 से कोटा साहब से निर्मल संतों को काशी भेजा गया पढ़ने के लिए। जबकि 1699 में खालसा पंथ को अस्त्रों की शिक्षा दी गई। 1699 में खालसा पंथ की स्थापना धर्म की रक्षा के लिए की गई थी। जो अस्त्र भी धारण करती है। इस अखाड़े में सभी जाति के लोगों को सामान अहमियत हासिल है। अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाने की कोई परंपरा नहीं है । केवल श्री महंत ही इसके सबसे बड़े संत कहे जाते हैं । वैसे अखाड़े का कामकाज एक कार्यकारिणी देखती है जिसमें अध्यक्ष से लेकर सचिव और कोठारी सभी होते हैं। इसमें रमता पंच की जगह यहां पंच प्यारे होते हैं, जो उनकी पेशवाई में सबसे आगे हाथ में खड़ग तलवार को लेकर चलते हैं। आमतौर पर वेदों और परंपराओं को महत्व देने वाले अखाड़े में से निर्मल अखाड़े की बड़ी खासियत यह है कि इसमें गुरु ग्रंथ साहिब को भी उतना ही सम्मान दिया गया है। अखाड़े में शामिल होने वालों को शास्त्रों के साथ-साथ शस्त्रों का भी पूरा ज्ञान दिया जाता है । ताकि जिंदगी में आने वाली हर परेशानियों से आसानी से निपटा जा सके। खालसा पंथ के अनुयायी ब्रह्मचर्य धारण करते हैं। खालसा पंथ के अनुयायी ब्रह्मचर्य को एक महत्वपूर्ण अनुशासन मानते हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक विकास और आत्म-नियंत्रण में मदद करता है।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)



Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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