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Nath Sampradaya: बेहद रोचक है नाथ सम्प्रदाय से जुड़ी जानकारियां, जानकर रह जाएंगे दंग

Nath Sampraday In Hindi: नाथ सम्प्रदाय हिन्दू धर्म का एक ऐसा पन्थ है, जिसे सन्यासी, योगी, जोगी, नाथ, दसनाम गोस्वामी, गिरि गोस्वामी (बिहार), उपाध्याय (पश्चिमी उत्तर प्रदेश में), नामों से भी जाना जाता है। नाथ सम्प्रदाय में योगिनियों का भी समावेश था।

Jyotsna Singh
Written By Jyotsna Singh
Published on: 2 Jan 2025 10:00 AM IST (Updated on: 2 Jan 2025 10:00 AM IST)
Nath Sampradaya: बेहद रोचक है नाथ सम्प्रदाय से जुड़ी जानकारियां, जानकर रह जाएंगे दंग
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Nath Sampradaya (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Nath Sampradaya In Hindi: महाकुंभ (Mahakumbh 2025) के आगाज के साथ ही साधु संतों और सनातन संस्कृति से जुड़ी परंपराओं और उनके महत्व को लेकर चर्चे भी इन दिनों आम होते जा रहे हैं। इसी कड़ी ने सनातन संस्कृति और शिक्षा को सुदृढ़ करने में नाथ सम्प्रदाय (Nath Sampradaya) बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। नाथ सम्प्रदाय हिन्दू धर्म का एक ऐसा पन्थ है, जिसे सन्यासी, योगी, जोगी, नाथ, दसनाम गोस्वामी, गिरि गोस्वामी (बिहार), उपाध्याय (पश्चिमी उत्तर प्रदेश में), नामों से भी जाना जाता है। नाथ सम्प्रदाय में योगिनियों का भी समावेश था। 17वीं शताब्दी की एक चित्रकला में एक नाथ योगिनी का चित्रण है। वर्तमान समय में हमारे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) भी इस परंपरा के साधक हैं।

संस्कृत शब्द नाथ का शाब्दिक अर्थ है भगवान या रक्षक या स्वामी। संबंधित संस्कृत शब्द आदिनाथ का अर्थ है पहला या मूल भगवान। यह नाथों के संस्थापक शिव का पर्याय है। नाथ संप्रदाय में दीक्षा के लिए नाथ योगी या जोगी में समाप्त होने वाला नाम प्राप्त करना शामिल है। योग रिसर्चर जेम्स मिलेनसन के अनुसार, नाथ शब्द 18वीं सदी से पहले योगी या जोगी के नाम से पहचाने जाने वाले विभिन्न समूहों के लिए उपयोग होता था। यद्यपि नाथ लोग इस मत के जनक ‘आदिनाथ शिव’ को मानते हैं। लेकिन सही अर्थ में इस मत को एक सुव्यवस्थित रुप देने का श्रेय गोरखनाथ को दिया जाता है। गोरखनाथ ने अपने इस सम्प्रदाय को सिद्ध सम्प्रदाय से अलग कर दिया और इसका नाम ‘नाथ सम्प्रदाय’ रखा।

नाथ की शुरुआत दसवीं शताब्दी में गोरखनाथ के गुरु मत्स्येंद्र नाथ और उनके गुरु आदियोगी शिव जिन्हें आदिनाथ प्रथम भगवान के नाम से हुई। इन्हीं से आगे चलकर नवनाथ से चौतालसी नाथ सिद्धों की परंपरा शुरू हुई। आपने अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि स्थलों के नाम सुने होंगे साथ आप भोलेनाथ, भैरवनाथ, गोरखनाथ आदि नाम से भी जरूर परिचित होंगे। साईनाथ बाबा भी नाथ योगियों की परंपरा से ही थे। गोगा देव बाबा रामदेव आदि संत भी इसी परंपरा से थे। तिब्बत के सिद्ध भी नाथ परंपरा से ही थे । योगी या जोगी शब्द नाथ परंपरा में खास उपयोग होता है, पर यह इसी तक ही सीमित नहीं है। इसका उपयोग भारतीय संस्कृति में उन लोगों के लिए व्यापक रूप से किया जाता है जो नियमित रूप से योग के प्रति समर्पित हैं।

माना जाता है सूफीवाद का जनक

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

नाथ संप्रदाय (Nath Sect) को लेकर उस समय के विदेशी यात्रियों के कुछ संस्मरण जैसे कि इतालवी यात्री लोदोविको डे वर्थेमा और निकोलो दी कोंटी के संस्मरण में नाथ योगी लोगों का उल्लेख मिलता है। जिनके साथ इन विदेशी पर्यटकों ने समय भी बिताया था। सभी नाथ साधुओं का मुख्य स्थान हिमालय की गुफाओं से ही होकर गुजरता है। नागा बाबा, नाथ बाबा और सभी कमंडल चिमटा धारण किए हुए जटाधारी बाबा शैव और शाक्त परंपरा संप्रदाय के अनुयायी हैं।

वहीं, गुरु दत्तात्रेय जिन्हें शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार माना जाता है, के काल में वैष्णव शैव और शाक्त परंपरा संप्रदायों का समन्वय किया गया था। नाथ संप्रदाय की एक शाखा जैन धर्म में है, तो दूसरी शाखा बौद्ध धर्म में भी मिल जाएगी। यदि गौर से देखा जाए तो इन्हीं के कारण इस्लाम में सूफीवाद की शुरुआत हुई।

नाथ सम्प्रदाय की कुछ विशेषताएं ये हैं-

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

1- नाथ संप्रदाय भारत का प्राचीन और योगियों का संप्रदाय है। ये हठ योग पर आधारित है।

2- नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी भगवान शिव को परम मानते हैं और हठ योग के ज़रिए उनकी उपासना करते हैं।

3- इस संप्रदाय के योगियों के दाहसंस्कार नहीं होते।

4- नाथ सम्प्रदाय के योगी शुद्ध हठयोग और राजयोग की साधना करते हैं।

5- नाथ सम्प्रदाय के योगी योगासन, नाड़ीज्ञान, षट्चक्र निरूपण और प्राणायाम करके समाधि प्राप्त करते हैं।

6- नाथ सम्प्रदाय के योगी रसविद्या का भी अभ्यास करते हैं।

7- नाथ सम्प्रदाय के योगी अलख (अलक्ष) जगाते हैं और इसी से भिक्षाटन करते हैं।

8- नाथ सम्प्रदाय के योगी जटाधारी होते हैं और भगवा रंग के बिना सिले वस्त्र पहनते हैं।

9- नाथ सम्प्रदाय के योगी अपने गले में काली ऊन का जनेऊ रखते हैं जिसे ’सिले’ कहते हैं।

10- नाथ सम्प्रदाय के योगी अपने गले में एक सींग की नादी रखते हैं जिसे ’सींगी सेली’ कहते हैं।

11- नाथ सम्प्रदाय के योगी एक हाथ में चिमटा और दूसरे हाथ में कमंडल रखते हैं।

12- नाथ सम्प्रदाय के योगी दोनों कानों में कुंडल और कमर में कमरबन्ध पहनते हैं।

13- नाथ सम्प्रदाय के योगी भजन गाते हुए घूमते हैं।

14- इस संप्रदाय में भी अवधूत होते हैं। इसकी शुरुआत आदिनाथ शंकर से मानी जाती है। इसका मौजूदा स्वरूप गोरक्षनाथ यानि योगी गोरखनाथ ने दिया है।

सनातनी संस्कृति और शिक्षा का प्रचार करना है उद्देश्य

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

देशभर में नाथ संप्रदाय की शिक्षा का प्रचार और प्रसार करने के उद्देश्य के साथ कई मठ स्थापित हैं। आर्थिक तौर पर ये संप्रदाय और इसके मठ काफी सुविधा सम्पन्न माने जाते हैं। इन्हीं मठों के माध्यम से संस्कृति से जुड़ी शिक्षा से लेकर धर्म के प्रचार तक कई काम मुख्य कार्य संचालित किए जाते हैं। इसके अलावा ये सामाजिक कल्याण में भी जुड़ाव रखते हैं। गोरखनाथ धाम मठ की पीठ को इस संप्रदाय की अध्यक्ष पीठ मानते हैं। लिहाजा इसका प्रमुख देशभर में नाथ संप्रदाय का अध्यक्ष होता है, जो इस समय योगी आदित्यनाथ हैं। इसी तरह हरियाणा के रोहतक में मस्तनाथ पीठ को उपाध्यक्ष पीठ का दर्जा हासिल है। इस पंथ वालों की योग साधना पातंजली विधि का विकसित रूप है।

ये होती है दीक्षा की पद्वति

नाथ संप्रदाय में शिष्यों को दी जाने वाली दीक्षा से जुड़ी परंपराओं की बात करें तो इस सम्प्रदाय में किसी भी प्रकार का भेद-भाव आदि काल से नहीं रहा है। इस संप्रदाय को किसी भी जाति, वर्ण या आयु का साधक अपना सकता है। नाथ संप्रदाय को अपनाने के बाद सात से 12 साल की कठोर तपस्या के बाद ही संन्यासी को दीक्षा दी जाती थी। दीक्षा देने से पहले और बाद में गुरु द्वारा बताए गए नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है। इस दौरान कठोर तपस्या कर सिद्धि अर्जित करने के साथ सम्प्रदाय की शिक्षा का प्रचार प्रसार करने में भी इनका अहम दायित्व होता है।

ईश पूजा की ये होती है परंपरा

नाथ संप्रदाय को लेकर मान्यता है ये शैव संप्रदाय से जुड़े हैं। लेकिन नाथ संप्रदाय में शैवों की तरह लिंगार्चन करने की परंपरा और न शिवोपासना की परंपरा नहीं है। ये लोग शैव हैं अर्थात शिव की उपासना करते हैं। लेकिन तीर्थाटन द्वारा। ये तीर्थ यात्रा को ही देवता की उपासना का हिस्सा मानते हैं। दुनिया भर में स्थित शिवमंदिर और देवीमंदिरों में दर्शनार्थ जाते हैं। इस परम्परा के योगी अपने गले में काली ऊन का ‘सिले’ नामक यंत्र धारण करते हैं। साथ में ये गले में एक सींग की नादी रखते है। इन दोनों को सींगी सेली कहते हैं।

समाधि की प्राप्ति के लिए करते हैं कठिन साधना

इस संप्रदाय के साथ समाधि की प्राप्ति के लिए बरसों कठिन योग साधना करते हैं। योगियों के मुख्य अंग योगासन, नाड़ीज्ञान, षट्चक्र निरूपण तथा प्राणायाम द्वारा समाधि की प्राप्ति है। इस पंथ के योगी या तो जीवित समाधि लेते हैं या शरीर छोड़ने पर उन्हें समाधि दी जाती है। वे जलाये नहीं जाते। यह माना जाता है कि उनका शरीर योग से ही शुद्ध हो जाता है, उन्हें अग्नि से शुद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती है।

नाथों में भस्म स्नान का है एक विशेष महत्व

नाथ संप्रदाय के योगी भस्म रमाते हैं, परन्तु भस्म स्नान का एक विशेष तात्पर्य है- जब ये लोग शरीर में श्वांस का प्रवेश रोक देते हैं, तो रोमकूपों को भी भस्म से बन्द कर देते हैं। प्राणायाम की क्रिया में यह महत्व की युक्ति है। नाथपंथी भजन गाते हुए घूमते हैं। प्राचीन समय में इस संप्रदाय के संत भिक्षाटन कर जीवनयापन करते थे। वो परंपरा कुछ हद अब भी कायम है। उम्र के अंतिम चरण में इस संप्रदाय के संत किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं। कुछ नाथ साधक हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं। इस संप्रदाय में मांस आदि तामसी भोजनों का निषेध है।

इन सम्प्रदाय में हैं नौ गुरु

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इस सम्प्रदाय में नौ गुरु माने जाते हैं। जिनमें श्री गोरखनाथ, जवलेंद्रनाथ, करीनानाथ, गहिनी नाथ, चरपथ नाथ, रेवन नाथ, नाग नाथ, भर्तृहरि नाथ, गोपीचंद नाथ आदि का नाम शामिल है। नौ नाथ नौ नारायणों के अवतार हैं जो सांसारिक गतिविधियों की देखभाल में भगवान नारायण की मदद करते हैं। जिसमें पहले नंबर पर है आदिनाथ शिव और दत्तात्रेय के बाद सबसे महत्वपूर्ण नाम आचार्य मत्स्येंद्र नाथ का आता है, जो मछंदर नाथ के नाम से लोकप्रिय हुए। प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय को गुरु मत्स्येंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरक्षनाथ गोरखनाथ ने पहली दफा व्यवस्था दी थी।

गोरखनाथ ने इस संप्रदाय के बिखराव और इस संप्रदाय की योग्य विधाओं का एकत्रीकरण किया। दोनों गुरु और शिष्य को तिब्बती बौद्ध धर्म में महा सिद्धों के रूप में जाना जाता है। मत्स्येंद्र नाथ हठयोगी के परम गुरु माने गए हैं। उनकी समाधि उज्जैन के गढ़ कालिका के पास स्थित है ।हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि मत्स्येंद्र नाथ की समाधि मछिंद्रगढ़ में है, जो महाराष्ट्र के जिला सावरगांव के ग्राम माया अंबा गांव के निकट स्थित है।

इतिहास में मत्स्येंद्र का जन्म समय विक्रम की आठवीं शताब्दी मानते हैं तथा गोरखनाथ दसवीं शताब्दी के पूर्व उत्पन्न कहे जाते हैं। इस बात की पुष्टि मत्स्येंद्र नाथ द्वारा लिखित कॉल जान निर्णय ग्रंथ का लिपिकाल निश्चित रूप से सिद्ध कर देता है कि मत्स्येंद्र नाथ 11वीं शताब्दी के पूर्व वर्ती हैं। मत्स्येन्द्रनाथ का एक नाम ’मीननाथ’ भी है। ब्रजयनी सिद्धों में एक मीनपा हैं, जो मत्स्येन्द्रनाथ के पिता बताए गए हैं। मीनपा राजा देवपाल के राजत्वकाल में हुए थे।



Shreya

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