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Mahakumbh 2025: सर्पो के चलते प्रयागराज में मनाया जाता है महाकुंभ, जानें इसके पीछे की रोचक कथा
Mahakumbh 2025: ऋषि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कई पुत्रियों के साथ हुआ था। उनमें से दो पुत्रियों के नाम थे कद्रू और विनता। दोनों पत्नियों से एक बार ऋषि कश्यप ने खुश होकर वरदान मांगने को कहा।
Mahakumbh Ki Katha: प्रयागराज में आस्था के महाकुंभ की शुरू 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) से होने जा रही है। महाकुंभ 2025 का समापन 26 फरवरी को होगा। प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ की तैयारियां चरम पर हैं। यहां देश-विदेश के लगभग 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद जतायी जा रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाकुंभ अमृत खोज का परिणाम है। लेकिन इसके अलावा भी एक कथा है। जिसमें कुंभ का जिक्र है। दिलचस्प बात यह है कि यह कथा नागों से जुड़ी हुई है। आइए जानते है इस कथा के बारे में
प्रयागराज में कुंभ मनाये जाने में सर्पो का योगदान
महाभारत के आस्तीक पर्व में प्रयागराज में कुंभ पर्व मनाये जाने में सर्पो के योगदान का उल्लेख है। जिसकी पौराणिक कथा इस तरह है। ऋषि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कई पुत्रियों के साथ हुआ था। उनमें से दो पुत्रियों के नाम थे कद्रू और विनता। दोनों पत्नियों से एक बार ऋषि कश्यप ने खुश होकर वरदान मांगने को कहा। इस पर ऋषि कश्यप से कद्रू ने हजार शक्तिशाली पुत्र मांगे।
वहीं उनकी पत्नी विनता ने केवल दो अलौकिक संता नही मांगे। वरदान के प्रभाव के चलते ऋषि कश्यप की पत्नी कद्रू हजार सर्पो की माता बन गयीं। वहीं विनता को केवल दो अंडे ही प्राप्त हुए। उन दोनों अंडों में भी कोई हलचल नहीं हो रही थी। जिससे विनता काफी निराश और चिंतित रहने लगी। वहीं अपनी बहन कद्रू को माता बनते देख विनता की ममता बैचेन होने लगी। उसके बैचेनी में एक अंडे को फोड़कर यह जानते का प्रयास किया कि आखिर इसमें है क्या?
बलिष्ठ शरीर वाला विशालकाय पक्षी निकला
जैसे ही विनता ने अंडे को फोड़ा। उस अंडे में से दो बड़े पंखों वाला विशालकाय पक्षी निकला। क्योंकि उस अंडे को विनता ने समय से पहले ही फोड़ दिया था। इसलिए वह विकसित नहीं नहीं हो सका। जिसके चलते उसके पैर कमजोर हो गये। अविकसित होने के चलते उसका नाम ‘अरूण’ रखा गया। लेकिन वह अपनी मां से काफी खिन्न था। इसलिए वह सूर्यलोक चला गया और भगवान सूर्यदेव के सारथी बन गए। लेकिन जाते समय उन्होंने अपनी मां से कहा कि दूसरे अंडे का समय से पहले मत फोड़ना।
कुछ दिनों बाद विनता की दूसरी संतान अंडे से बाहर निकली। जोकि परम शक्तिशाली थी। इसलिए उसका नाम गरूण रखा गया। वहीं कद्रू और विनता के बीच सौतन की भावना बढ़ गयी। एक दिन कद्रू ने अपनी बहन विनता से पूछा कि देवराज इंद्र के घोड़े उच्चैश्रवा का रंग कैसा है। काला है या फिर सफेद? इस पर विनता ने तुरंत कहा कि सफेद है। लेकिन कद्रू यह मानने को तैयार ही नहीं हुई। कद्रू ने कहा कि जाकर देखते हैं। लेकिन अगर तुम शर्त हार गयी तो तुम्हें मेरी दासी बनना पड़ेगा। जिस पर विनता ने सहमति जाहिर कर दी।
सर्प पुत्रों के साथ मिल कद्रू ने किया छल
इसके बाद कद्रू ने अपने सर्प पुत्रों के साथ मिलकर विनता के साथ छल कर दिया। कद्रू ने अपने बेटों से उच्चैश्रवा का रंग करने को कहा। जिस पर सर्पो ने हामी भर दी। तब कद्रू के एक सर्प पुत्र कर्कोटक जाकर घोड़े के पूंछ से लिपट गया। जिससे वह पूरी तरह काला हो गया। इसके बाद विनता को घोड़ा काला दिखाया गया। हालांकि विनता अपनी बहन के छल का समझ गयी थी। लेकिन फिर वह उसने हार मान ली और दासता स्वीकार कर ली। मां के साथ गरूण को भी उन सर्पो की सेवा करनी पड़ती थी।
एक दिन गरूण ने मां से पूछा कि आपका बेटा बलषाली है। फिर भी इनकी दासता में रहना पड़ रहा है। इस पर विनता ने सारी बात बेटे को बता दी। बेटे ने मां से दासता से मुक्त होने का उपाय पूछा तो मां ने कहा कि इसका हल तो उनसे ही पता चल सकेगा। गरूण ने जाकर सर्पो से पूछा कि मैं ऐसा क्या करूं कि मेरी मां को दासता से मुक्ति मिल जाए। इस पर सर्पो ने कहा कि तुम अमृत ला दो। इसके बाद गरूण ने अपने पिता ऋषि कश्यप से अमृत के बारे में जानकारी मांगी।
तब पिता ने बताया कि देवलोक के अमृत सरोवर में अमृत रखा है। लेकिन उसका रक्षा स्वयं सभी देवता करते हैं। यह सुन गरूण अमृत लेने के लिए देवलोक पहुंच गये। वहां उन्होंने देखा कि सभी देवता अमृत की चारों ओर चक्र की तरह रक्षा करते हैं। इस पर गरूण ने सूक्ष्य रूप बनाकर सरोवर में प्रवेश किया। लेकिन देवताओं ने उन्हें देख लिया और हमला कर दिया। लेकिन गरूण ने सभी को परास्त कर दिया। बाद में गरूण अमृत कलश को पंजों में दबाकर उड़ गये। जब इस बात की जानकारी देवराज इंद्र को हुई। तो उन्होंने व्रज से गरूण पर हमला कर दिया। लेकिन व्रज का भी गरूण पर कोई असर नहीं हुआ। बस उनका एक पंख व्रज के प्रहार से टूट गया।
गरूण से प्रभावित हुए इंद्र
पराक्रमी गरूण से इंद्र काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अमृत कलष को बड़ी सौम्यता के साथ वापस मांगा। इसके बदले में वरदान मांग को कहा। इस पर गरूण बोले कि यह मैं अपने लिए नहीं बल्कि अपनी मां के लिए ले जा रहा हूं और सारी बात बात बता दी। इस पर इंद्र ने कहा कि ठीक है तुम कलश ले जाकर सर्पो को सौंप दो। लेकिन ध्यान रहे इसका प्रयोग न होने पाए। उचित समय होने पर मैं कलश को वहां से गायब कर दूंगा।
इसके बदले में इंद्र ने कहा कि वह उन्हें भरपेट भोजन के तौर पर नागां को खाने की इजाजत दे देंगे। इसके बाद गरूण अमृत कलश लेकर पहुंचे और कुश के आसन पर कलश को रख दिया। इसके बाद कद्रू ने उसकी मां को दासता से मुक्ति दे दी। कद्रू ने अपने सर्प पुत्रों को अमृत पिलाने का फैसला किया। लेकिन इससे पहले ही देवराज इंद्र कलश को लेकर स्वर्ग चले गए। इससे नाग बेहद दुखी हुए। वह कुश आसन को चाटने लगे जिससे उनकी जीभ दो हिस्सों पर बंट गयी।
वहीं मातृभक्ति से प्रसन्न होकर भगवान श्रीविष्णु ने गरूण को अपना वाहन बना लिया। लेकिन जिस जगह पर कुश आसन पर अमृत कलश रखा वह प्रयाग का स्थल था। पुराणों में यह स्थल तीर्थराज प्रयाग के नाम से जाना गया और अमृत कुंभ के इस जगह पर रखे जाने के चलते यहां कुंभ का आयोजन होने लगा।