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HC घटतौली जांच से खुश नहीं, पुलिस से कहा- रिपोर्ट में दिख रहा मनमौजीपन
लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने पेट्रोल-डीजल में घटतौली को रोकने के लिए राज्य सरकार को आदेश दिया है, कि वह पेट्रोल पम्पों पर ऐसी डिवाइस लगवाए जिससे घटतौली के अपराधों को रोका जा सके। कोर्ट ने तेल ऑयल कम्पनियों के सहयोग से यह कार्य चार माह में पूरा करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले में पुलिस जांच पर तीखी टिप्पणी भी की।
कोर्ट ने कहा है, कि पुलिस ने मनमौजी तरीके से जांच की। कोर्ट ने यह टिप्पणी चार याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद दिए अपने निर्णय में की।
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यदि सरकारी अधिकारी गलत पाए गए, तो...
कोर्ट ने कहा, कि जनता द्वारा झेले जा रहे समस्या पर मुख्य सचिव ने भी स्वच्छ स्टैंड नहीं लिया। कोर्ट ने याचिकाओं से संबंधित मामलों में केस प्रॉपर्टी के साथ छेड़छाड़ करने वाले सरकारी व ऑयल कंपनी के अधिकारियों के खिलाफ दो माह में जांच कर पूरक रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा, कि 'यदि सरकारी अधिकारी इन मामलों में गलत पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ अभियोजन चलाए जाने की स्वीकृति तीन माह के भीतर दी जाए।'
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कोर्ट में दी गई थी चार याचिकाएं
यह आदेश जस्टिस एआर मसूदी की बेंच ने अमन मित्तल व एक अन्य की दो, राजेंद्र सिंह रावत की एक व हसीब अहमद की एक याचिका पर सुनवाई के उपरांत दिया। इनमें से दो याचिकाएं निचली अदालत द्वारा आरोप पत्र पर संज्ञान लेने से पूर्व दाखिल हुई थीं। बाद में आरोप पत्र पर संज्ञान ले लिए जाने के कारण इन याचिकाओं का प्रभाव समाप्त हो जाने के कारण कोर्ट ने इन दो याचिकाओं को खारिज कर दिया।
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पुलिस जांच पर उठाए सवाल
कोर्ट ने अमन मित्तल की याचिका से संबंधित विवेचना पर टिप्पणी करते हुए कहा, कि 'विवेचनाधिकारी ने संबंधित पेट्रोल पम्पों में स्टॉक अधिक होने के तथ्य पर जांच ही नहीं की। वह पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक चिप्स की बरामदगी पर फोकस रहा। सीज मशीनों को खोलने से पहले विवेचनाधिकारी ने घटतौली की भी जांच नहीं की। पुलिस जांच में 01 जून को 24 चिप्स बरामद होना बताया गया है, जबकि इस बरामदगी की सूचना संबंधित कोर्ट में भी नहीं दी गई। चिप्स को स्टेट फॉरेंसिक लैब में भेजने के बावत भी मांग नहीं की गई।'
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मनमौजी तरीके से की जांच
कोर्ट ने कहा, कि इन तथ्यों पर गौर करने से पता चलता है कि विवेचनाधिकारी को अपराध के संबंध में तकनीकी जानकारी का आभाव है। यदि कहा जाए कि जांच मनमौजी तरीके से की गई तो यह गलत नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि विवेचनाधिकारी के मन में डर और पक्षपात था।
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कोर्ट ने दो माह में मांगी रिपोर्ट
कोर्ट ने मामले की विवेचना एसपी (उत्तरी) को सौंपते हुए आदेश दिया, कि वह दो माह में वर्तमान विवेचनाधिकारी समेत ऐसे सरकारी व ऑयल कम्पनी के अधिकारियों के खिलाफ पूरक रिपोर्ट निचली अदालत में दाखिल करे जिन्होंने कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर केस प्रॉपर्टी मिटाई या हटाई हो।'
मुख्य सचिव ने नहीं लिया स्वच्छ स्टैंड
कोर्ट ने कहा, कि 'सरकार की ओर से दाखिल किए गए जवाबी हलफनामे संतोषजनक नहीं हैं। जनता के द्वारा झेले जा रहे इन समस्याओं के प्रति मुख्य सचिव ने स्वच्छ स्टैंड नहीं लिया।' कोर्ट ने आईपीसी की धारा- 265, 267 और 420 के तहत मैजिस्ट्रेट द्वारा 26 मई को लिए गए संज्ञान आदेश को भी खारिज कर दिया। वहीं मजिस्ट्रेट द्वारा आईपीसी की धारा- 34, 120बी व 471 और लीगर मेट्रोलॉजी एक्ट की धारा- 26 के तहत संज्ञान न लिए जाने को गलत करार दिया।
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कोर्ट ने ये आदेश भी दिए
कोर्ट ने जिला जज को नए विवेचनाधिकारी के सहयोग से संबंधित पेट्रोल पम्पों के शेष स्टॉक को मात्रात्मक और गुणात्मक तौर पर जांचने व उक्त स्टॉक को ऑयल कंपनी को सुपुर्द करने के आदेश दिए। साथ ही यह भी निर्देश दिया कि स्टॉक ऑयल कंपनियों को सुपुर्द करने के पश्चात वितरण इकाईयों को इनके स्वामियों के पक्ष में रिलीज कर दिया जाए।