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आज लिखी जा सकती है नई इबारत: बिना मुलायम कांशीराम, कैसे बनेगा इनका काम

aman
By aman
Published on: 9 Jun 2017 8:48 PM GMT
आज लिखी जा सकती है नई इबारत: बिना मुलायम कांशीराम, कैसे बनेगा इनका काम
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आज लिखी जा सकती है नई इबारत: बिना मुलायम कांशीराम, कैसे बनेगा इनका काम

अनुराग शुक्ला Anurag-Shukla

लखनऊ: 10 जून को एक ऐसी इबारत लिखने की शुरुआत हो जाएगी, जो सूबे के सियासत का रुख पलट सकती है। दरअसल, 10 जून को बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो ने एक ऐसी बैठक बुलाई है जिसमें समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एक होने का ब्लूप्रिंट बनना शुरू हो जाएगा।

वैसे तो मायावती जब भी प्रदेश में होती हैं तो महीने की 10 तारीख को लखनऊ में बैठक होती है। लेकिन इस बार 10 जून की बैठक काफी अहम है। इस दिन मायावती ने अपने कोआर्डिनेटरों को बुलाया है। इस बार सपा और बसपा के साथ आने का मुद्दा ही एजेंडा है। ऐसे में माना जा रहा है कि मायावती अपने कोआर्डिनेटरों और काडर के खास लोगों को बुलाकर इस पर बातचीत करेंगी और निर्देश देंगी।

क्या है रणनीति?

अगामी 10 जून की बैठक से पहले ही newstrack.com और 'अपना भारत' को बसपा की रणनीति के बारे में कुछ अहम जानकारियां मिली हैं। दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विजय रथ के घोड़े पर नकेल कसने के लिए अब सपा और बसपा दोनों को अहसास हो चुका है कि वह अकेले इसमें सक्षम नहीं है। बसपा के एक बड़े पदाधिकारी के मुताबिक, 'बीजेपी धीरे-धीरे देश की ऩंबर एक पार्टी बनने जा रही है। ऐसे में अगर उसे रोकना है तो राज्य के सभी दलों को एक साथ आना होगा। बीजेपी के पास कम से कम 10 मुख्यमंत्री हैं। मनी, मसल है, मीडिया है और मैनेजमेंट है। ऐसे में इतनी बड़ी ताकत से लड़ने के लिए एक साथ आना ही होगा।'

यक्ष प्रश्न: नेता कौन होगा?

बसपा और सपा के एक साथ होने में सबसे बड़ा रोड़ा मायावती और मुलायम की अदावत रही है। गेस्ट हाउस कांड की याद दोनों को एक-दूसरे से हाथ नहीं मिलाने देती। चाहे जितनी सियासी मजबूरी हो। इसके अलावा मायावती और मुलायम के एक साथ होने की सूरत में नेता कौन होगा, यह यक्ष प्रश्न बनकर उभरता है।

माया के हाथ ‘कंसोलेशन प्राइज’

ऐसे में बसपा सुप्रीमो ने इसका रास्ता निकाला है। अब पार्टी की कमान अखिलेश यादव के हाथ है और उनकी वैसी लड़ाई अखिलेश यादव के साथ नहीं है। अखिलेश यादव ने जिस तरह से अपने पिता से समाजवादी पार्टी की कमान को हासिल किया, वह मायावती के लिए ‘कंसोलेशन प्राइज’ जैसा तो कहा जा सकता है। मायावती अब अपनी नई रणनीति के तहत अखिलेश यादव को महत्व देंगी। उनकी शर्त यह भी है कि इस बार शिवपाल और मुलायम की गठबंधन में बिलकुल नहीं चलनी चाहिए। मायावती को पता है कि अखिलेश की युवाओं में लोकप्रियता का उनके पास कोई जवाब नहीं है। ऐसे में वह अखिलेश को चेहरा मानकर गठबंधन करने को उत्सुक हैं।

सोशल मीडिया की धार तेज करने में जुटी बसपा

इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी अब अपने सोशल मीडिया की धार को अखिलेश के स्तर पर लाएगी। अखिलेश यादव ने तो अपनी रणनीति बना ली है, जिसके तहत वह करीब 200 लोगों की टीम बना रहे हैं। हर जिले में 2 सोशल मीडिया के लोग होंगे जो अपने जिले से केंद्र, राज्य सरकार और बीजेपी के खिलाफ खबरों को यूपी की टीम को लखनऊ में देंगे और यहां की टीम इसे सोशल मीडिया पर प्रमोट करेगी। इस टीम का खर्चा समाजवादी पार्टी के करीबी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक कारोबारी उठाएंगे। अखिलेश की इस तैयारी से हमकदम अब सोशल मीडिया पर बसपा भी अपनी धार को तेज करने जा रही है और रणनीति है कि सपा और बसपा एक दूसरे के संसाधनों का फायदा उठाकर एक साथ मोदी पर हमला करेंगे । इसके साथ ही नई रणनीति में बसपा अपने दल से अलग हो चुके नेताओं को दलबदलुओं की तरह अपने काडर में काडरद्रोही की तरह प्रस्तुत करेगी।

बिहार का प्रयोग यूपी में

लालू और नीतीश कुमार बीजेपी विरोधी सियासत में 'बर्लिन की दीवार' मानिंद बानगी बन चुके हैं। उसके नतीजों से उत्साहित और उस पर अमल करते हुए सपा और बसपा यूपी में अपने अपने बर्बाद हो चुके सियासी किले की दीवारों की मरम्मत में जुटेंगे।

हवा का रुख बदलने की कोशिश

उत्तर प्रदेश के बीते विधानसभा चुनाव में सपा को 28 फीसदी वोट मिले थे और बसपा को 22.2 फीसदी वोट पर इनके तालमेल न होने से ये वोट ज्यादातर एक-दूसरे के लिए विनाशकारी ही साबित हुए। ऐसे में सपा और बसपा मिलकर हवा का रुख बदलने की कोशिश में है। इसके अलावा अखिलेश के चेहरे की वजह से युवाओं के साथ आने का फायदा भी मायावती को दूसरी स्थिति में नहीं हो सकता है। अखिलेश यादव की ब्राहमण चेहरे की कमी को बसपा के ब्राह्मण चेहरे पूरा कर सकते हैं ऐसे में यह स्थिति दोनों पार्टियों के लिए मुफीद है।

इस गठबंधन में सपा से बसपा में शामिल हुए दिग्गज नेता अंबिका चौधरी और नारद राय जैसे किरदार भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। अंबिका चौधरी तो साफ कह चुके हैं कि भाजपा को रोकने के लिए हमें किसी भी हद तक जाने को तैयार रहना चाहिए।

संकेत दोनों तरफ से हैं, 27 अगस्त होगा अहम

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव 27 अगस्त को पटना में होने वाली लालू की रैली में शामिल होंगे। मैनपुरी के करहल में एक शोक सभा के दौरान उन्होंने यहां तक कहा था कि इस रैली में बसपा सुप्रीमो मायावती भी शामिल होंगी। उन्होंने कहा था कि न्यौता उन्हें और मायावती दोनों को मिला है। उन्होंने इस 'मेगा रैली' के महत्व का बखान करते हुए कहा कि, 'अगर कोई भावी गठबंधन के संबंध में घोषणा हुई तो वहीं होगी।' अखिलेश ने मायावती की तरफ इशारा करते हुए कहा कि बसपा सुप्रीमो ने कहा कि वह बीजेपी को हराने के लिए 'किसी भी राजनीतिक दल' के साथ हाथ मिलाने को तैयार थी। वहीं, मायावती अभी सधी हुई चुप्पी से अपनी रणनीति पर 10 जून को अगला कदम बढाने को इच्छुक दिख रही हैं।

वजह वही, किरदार बदले

गौरतलब है, कि सपा और बसपा के बीच इससे पहले भी 1993 में गठबंधन हुआ था। यह गठबंधन भी बीजेपी को रोकने के लिए ही हुआ था। इसमें ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्रीराम’ के नारे लगे थे। इस गठबंधन में बसपा ने 164 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और 67 सीटें जीती थीं वहीं सपा ने 256 सीटों पर लड़कर 109 सीटें हासिल की थीं। लेकिन नए गठबंधन के किरदार के साथ ही व्यवहार भी बदल गए हैं। अब न कांशीराम हैं न ही केंद्रीय भूमिका में मुलायम हैं। दोनों ही पार्टियों के सुप्रीमो अब बदल चुके हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पुराने किरादारों से नए किरदार कितने प्रभावी हैं।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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