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CM योगी और केशव मौर्य के बीच बढ़ती दूरी BJP-संघ के लिए बड़ी परेशानी
संजय भटनागर
लखनऊ: ऐसे समय जब उत्तर प्रदेश में विकास का ब्लूप्रिंट बन चुका है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच बढ़ती हुई खाई ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेतृत्व ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस ) की भी नींद उड़ा दी है।
वैसे तो दोनों के बीच मतभेद उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के तुरंत बाद ही उभरकर सामने आ गए थे, लेकिन ये कम होने के बजाय बढ़ते नज़र आ रहे हैं। सरकार में नंबर एक और दो के नेताओं के बीच इस तरह का मतान्तर पार्टी अच्छे संकेत के रूप में नहीं देख रहा है।
यह दुराव हो सकता है घातक
पिछले दिनों इन्वेस्टर्स समिट 2018 के सफल आयोजन और इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की सक्रिय भागीदारी उत्तर प्रदेश के प्रति पार्टी और संघ की दिलचस्पी का परिचायक है और देश के सबसे बड़े प्रदेश को एक बार फिर प्राथमिकताओं की सूची में ऊपर रखने की प्रक्रिया है। इन परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व में इस तरह का दुराव पार्टी की योजनाओं के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है।
लिया जा सकता है निर्णायक कदम
सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने newstrack.com से बातचीत में यह स्वीकार किया, कि योगी और मौर्य के बीच रिश्तों में जो खटास है यह आने वाले समय के लिए अशुभ संकेत हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस संबंध में संघ ने प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं से फीडबैक समय रहते इस दिशा में कोई निर्णायक कदम भी उठाया जा सकता है।
मौर्य की अनावश्यक महत्वाकांक्षा आ रही आड़े
दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश नेताओं का मानना है कि इस कहानी में मौर्य ही गलती पर हैं। पीडब्लूडी जैसा महत्वपूर्ण विभाग और उप मुख्यमंत्री का पद पाने के बावजूद अनावश्यक महत्वाकांक्षा और मुख्यमंत्री की अवहेलना पार्टी, सरकार और प्रदेश सभी के लिए अहितकर है।
अब समय रहते किस तरह पार्टी निबटती है पार्टी
यहां यह उल्लेखनीय है, कि जहां एक तरफ मुख्यमंत्री की साफ़-सुथरी कार्यप्रणाली संदेह के परे है, वहीं मौर्य के विभाग के बारे में जनधारणाएं इसके विपरीत हैं। देखने की बात है कि समय रहते किस तरह पार्टी इससे निबटती है। इस संबंध में मौर्य अपनी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो सके।