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केंद्र और यूपी की सियासत में प्यासे मर जाएंगे बुंदेलखंड के लोग
लोग भूख से मरें या प्यास से लेकिन राजनीति में सबसे पहले अपना फायदा देखा जाता है। सालों से सूखे से जूझ रहे यूपी के बुंदेलखंड के साथ भी अब ये हो रहा है। पूरा बुंदेलखंड पानी के लिए तरस रहा है। प्यास से जानवर मर रहे हैं तो पानी की तलाश में लोगों को मीलों भटकना पड़ रहा है।
केंंद्र ने बुंदेलखंड के हालात को देखते हुए जल एक्सप्रेस भेजने की घोषणा की। एमपी के रतलाम से 4 मई को दस टैंकरों के साथ ट्रेन झांसी पहुंच गई। लेकिन ये क्या टैंकर खाली थे। पानी नहीं था उसमें। कहा गया था कि पानी बुंदेलखंड के सबसे ज्यादा प्रभावित जिले महोबा के लिए है। अगले साल के शुरू में होने वाले चुनाव को देखते हुए यूपी सरकार ने केन्द्र से पानी लेने से मना कर दिया। यूपी सरकार की ओर से कहा गया कि पानी की जरूरत नहीं है अगर होगी तो मांगा जाएगा। पानी नहीं लेने का बयान सबसे पहले मुख्य सचिव आलोक रंजन की ओर से आया। उनकी ओर से कहा गया कि महोबा में पानी पर्याप्त है।
संभवतः सरकार या प्रशासन किसी को पता नहीं था कि पानी आया भी है या नहीं। पानी के टैंकर आते ही बयानों की होड़़ लग गई। यूपी के जल संसाधन और सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि केंंद्र सरकार ने पानी तो भेज दिया। अब उसे रखा कहां जाए। केंंद्र सरकार को पानी रखने की भी व्यवस्था करनी चाहिए। यदि सरकार या प्रशासन को पता नहीं था तो यूपी बीजेपी को भी इसकी कहां जानकारी थी। सीएम और सीएस के पानी लेने से मना करने के बाद बीजेपी के बयानबाज नेता भी सामने आ गए।
प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि अखिलेश इस मामले में पूरी सियासत कर रहे हैं। आपदा में मदद कोई भी करे उसे लेना चाहिए। लेकिन सपा सरकार लोगों की मुसीबत और जान की कीमत पर राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा कि आलोक रंजन एक बार और अखिलेश यादव बुंदेलखंड के हालात का जायजा लेने दो बार वहां जा चुके हैं। सपा सरकार ने माना है कि स्थिति अच्छी नहीं है।
पानी की सियासत का मामला दिलचस्प होता जा रहा है। अखिलेश ने पानी के लिए मना किया और तुरंत ट्ववीट किया कि केंंद्र सरकार पानी की कमी दूर करने के लिए 10 हजार टैंकर भेजे ताकि लोगों तक पर्याप्त मात्रा में इसे पहुंचाया जा सके। सोशल मीडिया पर उनका ये संदेश वायरल होने लगा और लोग इस पर लगातार ट्ववीट करने लगे। यूपी सरकार, केंंद्र से लगातार सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड के लिए राहत की मांग करती रही है। कभी कम मिला और कभी नहीं मिला के बयान भी आते रहे हैं।
पूर्व की यूपीए की सरकार के कार्यकाल में भी बुंदेलखंड की हालत राजनीति के केंंद्र में रही है। मनमोहन सिंह के कार्यकाल में करीब 7 हजार करोड़़ का विशेष पैकेज दिया गया था। राहत लोगों तक नहीं पहुंची और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर ये इलाका वैसे का वैसा ही रह गया। कल तक राहत की मांग कर रही अब यूपी सरकार फोटो जारी कर ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि बुंदेलखंड में पानी की कमी नहीं है। क्या क्या कर देती है राजनीति। कल तक जहां हालात खराब थे। देखते- देखते अच्छे हो गए।
यूपी सरकार कहती है कि 400 तालाबों को पानी से भर दिया गया है। अब सब ठीक है। सामाजिक कार्यकर्ता और कभी आम आदमी पार्टी के नेता रहे योगेन्द्र यादव ने बुंदेलखंड का दौरा कर हालात का जायजा लेने के बाद सीएम अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। योगेन्द्र यादव ने उसे सूखाग्रस्त के साथ आपदाग्रस्त भी घोषित किए जाने आ आग्रह किया था। बुंदेलखंड में लगभग दस साल से सूखे के हालात हैं। अब तक 3500 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इस साल 174 किसानों ने आत्महत्या की है।
जल पुरुष के तौर पर पहचाने जाने वाले राजेंद्र सिंह ने एक सेमीनार में खुलासा किया कि बुंदेलखंंड में लगभग 12 हजार तालाब हुआ करते थे। आज उनमें से सिर्फ 1300 ही बचे हैं। बाकी तालाब या तो भूमाफिया के चंगुल में आकर रिहाइशी कॉलोनियों में तब्दील कर दिए गए या किसी के फार्म हाउस में बदल गए। इन बच गए तालाबों में भी 300 से ज्यादा ऐसे हैं, जिनमें वर्षा का जल पहुंच ही नहीं पाता।
इन तालाबों के आसपास की जमीन पर कब्जा कर उन्हें बांध दिया गया है, जिसके कारण बारिश का पानी तालाबों में इकट्ठा होने की बजाय इधर-उधर बहकर नष्ट हो जाता है।
प्यासे बुंदेलखंड को पानी पिलाने का श्रेय केंंद्र सरकार लेना चाहती है तो यूपी सरकार ऐसा होने देना नहीं चाहती। केंद्र की बीजेपी या यूपी की सपा सरकार दोनों में कोई नहीं चाहता कि आने वाले चुनाव में बुंदेलखंड की प्यास का फायदा दूसरे को मिले। इसमें कोई नहीं सोच रहा कि बुंदेलखंड के लोगों का क्या होगा।