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विवादित ढांचा: कब से चल रहा मुकदमा, कौन रहे जज, कौन वकील, जानें सब
लखनऊ: देश के सबसे लंबे चलने वाले मुकदमों में से एक 'राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद' मुद्दा देश की सबसे बड़ी अदालत की चौखट पर है। अब फैसले के लिए रोजाना सुनवाई का इंतजार हो रहा है। इस मौके पर ये याद करना जरूरी है कि इस मुकदमे के दौरान कई पीढ़ियां जवान हो गयीं। कई पक्षकार और वकीलों की मृत्यु हो गई और कई माननीय न्यायाधीशों की सेवानिवृति हो गई।
22-23 दिसंबर 1949 को कथित तौर पर बाबरी मस्जिद के नीचे रामलला की मूर्ति रखकर इसकी पूजा शुरू कर दी गई थी। इसके बाद मस्जिद को स्थानीय प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया था। वहां पर एक रिसीवर 5 जनवरी 1950 को बैठा दिया गया। इसके बाद ही इस मुद्दे पर सबसे पहला मुकदमा 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद की दीवानी अदालत में दायर किया था। इसके बाद फैजाबाद की दीवानी अदालत में चार और मुकदमे दायर किए गए।
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बढ़ते चले गए पक्षकार
1950 में ही परमहंस रामचंद्र दास ने एक और मुकदमा दायर किया। रामचंद्रदास बनाम जहुर अहमद के इस मुकदमे के बाद 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने 1959 में निर्मोही अखाड़ा बनाम प्रिय राम रिसीवर, 18 दिसंबर 1961 को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और आठ अन्य मुस्लिम प्रतिनिधियों ने सिविल जज फैजाबाद की अदालत में मुकदमा दायर किया। इसमें प्रतिवादी गोपाल सिंह विशारद को बनाया गया। 23 जुलाई 1989 को एक और मुकदमा रामलला विराजमान बनाम राजेंद्र सिंह भी दाखिल किया गया। इन मुकदमों में पक्षकार बढ़ते गए। अब इस मुकदमे में करीब 40 पक्षकार हैं। इनमें से 10 मुस्लिम पक्ष और 30 हिंदू पक्ष के हैं।
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केस इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित
इसी दौरान विवादित परिसर के दो गेटों पर ताले को लेकर फैजाबाद के स्थानीय वकील उमेश चंद्र पांडेय की याचिका पर जिला जज ने एक फरवरी 1986 को राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के दो गेटों पर पड़े ताले खोलने के आदेश दे दिए। विवाद की संवेदनशीलता के मद्देनजर राज्य सरकार के अनुरोध पर इन सभी मुकदमों को 10 जुलाई 1989 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। साथ ही तीन जजों की एक पूर्ण पीठ-विशेष पीठ का भी गठन कर दिया गया।
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होती रही तो बस...गवाही
1992 की घटनाओं और उसके बाद के केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर कुछ विवाद होने पर अधिग्रहण का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश जारी कर उच्च न्यायालय को मामला सुनने की हिदायत दी। 1996 से इस मुकदमे की गवाही शुरू हो गई। मुकदमे में मुस्लिम पक्ष ने कुल 30 गवाहों की गवाही करायी गई। ये गवाही कुल 3,343 पृष्ठ की थी। इसमें यह कहा गया कि सन 1528 में बाबर के जमाने में ये मस्जिद एक खाली जगह पर बनायी गयी थी जहां पर मुस्लिम लगातार नमाज अता कर रहे थे। इसके खिलाफ हिंदू पक्ष ने 50 गवाहों की 7,268 पन्नों की गवाही पेश की। इस गवाही में मुख्यतः ये ही कहा गया, कि जिस जगह पर बाबरी मस्जिद बनायी गई थी वहां पहले राम मंदिर था और उसे तोड़कर ही मस्जिद बनवायी गई।
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एएसआई ने की खुदाई, सौंपी रिपोर्ट
इस बात का पता लगाने के लिए हाईकोर्ट ने पांच मार्च 2003 को एक आदेश जारी कर विवादित परिसर की खुदाई एएसआई से कराने का आदेश दिया। ये खुदाई 12 मार्च 2003 से 07 अगस्त 2003 तक हुई। 22 अगस्त 2003 को एएसआई ने अपनी रिपोर्ट अदालत के सामने पेश की। इस रिपोर्ट के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने चार सेट में अपनी आपत्ति दाखिल की। बाद में, कोर्ट ने ये आदेश पारित कर दिया कि इस रिपोर्ट को एक सुबूत के तौर पर ही देखा जाएगा और इसे भी पक्षकारों के दूसरे सबूत के साथ देखा जाएगा। इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने अपने पक्ष में आठ भूगर्भ विशेषज्ञ पेश किए और 2,216 पन्नों में उनकी गवाही करवाई। वहीं, हिंदू पक्ष ने चार विशेषज्ञ पेश कर 1,200 पन्नों में उनकी गवाही पेश की। इसके बाद गवाहों की गवाही और उनसे जिरह के बाद 26 जुलाई 2010 को कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली।
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...बस बदलती रही विशेष खंडपीठ
इस पूरी सुनवाई के दौरान विशेष खंडपीठ बदलती रही। 21 जुलाई को तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केसी अग्रवाल, न्यायमूर्ति उमेश चंद्र श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति सैय्यद हैदर अब्बास रज़ा की विशेष खंडपीठ गठित की गई। 1990 में नयी पूर्ण पीठ में न्यायमूर्ति एससी माथुर, न्यायमूर्ति बृजेश कुमार और न्यायमूर्ति सैय्यद हैदर अब्बास रज़ा शामिल हुए। दिसंबर 1994 में नई पीठ में न्यायमूर्ति एस पी मिश्र, न्यायमूर्ति सी ए रहीम और न्यायमूर्ति आई पी वशिष्ठ शामिल हुए। जुलाई 1996 में फुल बेंच में न्यायमूर्ति एस पी मिश्र, न्यायमूर्ति सैय्यद रफत आलम और न्यायमूर्ति आई पी वशिष्ठ शामिल हुए। सितंबर 1997 में बनी विशेष पूर्ण पीठ में न्यायमूर्ति आई पी वशिष्ठ, न्यायमूर्ति सैय्यद रफत आलम और न्यायमूर्ति डी के त्रिवेदी शामिल हुए। जनवरी 1999 में बनी फुल बेंच में न्यायमूर्ति सैय्यद रफत आलम और न्यायमूर्ति डी के त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे सी मिश्रा शामिल हुए।
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जुलाई 2000 की इस फुलबेंच में में न्यायमूर्ति सैय्यद रफत आलम , न्यायमूर्ति डी के त्रिवेदी और न्यायमूर्ति भंवर सिंह शामिल हुए। सितंबर 2001 की बेंच में न्यायमूर्ति सैय्यद रफत आलम , न्यायमूर्ति भंवर सिंह और न्यायमूर्ति सुधीर नारायण शामिल हुए। वहीं जुलाई 2003 की फुल बेंच में न्यायमूर्ति एस आर आलम, न्यायमूर्ति भंवर सिंह और न्यायमूर्ति खेमकरन शामिल हुए। अगस्त 2005 की नई फुलबेंच में न्यायमूर्ति एस आर आलम न्यामूर्ति भंवर सिंह और न्यायमूर्ति ओ पी श्रीवास्तव शामिल हुए। जनवरी 2007 की विशेष पीठ में न्यायमूर्ति एस आर आलम न्यामूर्ति भंवर सिंह, न्यायमूर्ति ओ पी श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति धरमवीर शर्मा शामिल हुए। सितंबर 2008 में एक बार फिर फुल बेंच बनी इसमें न्यायमूर्ति एस आर आलम, न्यायमूर्ति धरमवीर शर्मा और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल शामिल हुए।
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दिसंबर 2009 में बनी वर्तमाना फुल बेंच में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति धरमवीर शर्मा और न्यायमूर्ति एस यू खान शामिल हैं। इस मुकदमें दोनों पक्षकारों के कई वकील अपनी दलीलों से कोर्ट को संतुष्ट करने की कोशिश कर चुके हैं। मुस्लिम पक्ष के प्रमुख पक्षकारों में अब्दुल मन्नान(जिनका बाद में निधन हो गया), हाशिम अंसारी (इनकी भी मृत्यु हो चुकी है) जफरयाब जिलानी, मुश्ताक अहमद सिद्दीकी, शकील अहमद खां, रफत फारुखी, फारुक अहमद हैं तो हिंदू पक्ष की तरफ से स्व वीरेश्वर द्विवेदी, रणजीत लाल वर्मा, रंजना अग्निहोत्री, मदन मोहन पांडेय, हरिशंकर जैन वेद प्रकाश अपनी दलीले कोर्ट में पेश कर चुके हैं। इस मुकदमे के प्रमुख पक्षकार परमहंस रामचंद्र दास का भी निधन हो चुका है।
एक उम्मीद, उहापोह ख़त्म होने की
इस मुकदमे का हाईकोर्ट से जब ऐतिहासिक फैसला आया, तो तीन जजों की बेंच जस्टिस एसयू खान, जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस डीवी शर्मा ने पूरे परिसर को तीन हिस्सों में बांटकर रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुना दिया। दोनों पक्ष इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए। 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए फैसले पर रोक लगा दी, कि हाईकोर्ट का फैसला हैरत में डालने वाला था क्योंकि किसी पक्ष ने तो बंटवारे की मांग की ही नहीं थी। इसके बाद 5 दिसंबर 2017 से अब इस मामले को लेकर रोजाना सुनावाई होगी। ऐसे में लोगों को ये उम्मीद है कि इस सुनवाई के बाद आए फैसले से अयोध्या समेत पूरे देश में बनी उहापोह की स्थिति अब खत्म होगी।
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तीन जजों की बेंच करेगी सुनवाई
मंगलवार दोपहर 2 बजे तीन जजों की स्पेशल बेंच सुनवाई शुरू करेगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के जीवन का ये सबसे बड़ा केस साबित होने जा रहा है। दीपक मिश्रा अगले साल 2 अक्टूबर को रिटायर होंगे। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन होंगे। रामलला का पक्ष हरीश साल्वे रखेंगे। कोर्ट देखेगा कि डॉक्यूमेंटस का अनुवाद पूरा हुआ है या नहीं। अनुवाद पूरा नहीं होने पर पेंच फंस सकता है।