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धूल खा रही हैं रानी विक्टोरिया की 3 मूर्तियां, इटली से आईं थीं आगरा
आगराः ब्रिटिश शाही जोड़ा प्रिंस विलियम और केट शनिवार को ताजमहल का दीदार करेंगे। जहां उनके स्वागत और सत्कार की तैयारियों को लेकर पूरा प्रशासन चुस्ती से लगा हुआ है तो वहीं प्रशासन की लापरवाही से ब्रिटिश महारानी की 19वीं सदी की तीन मूर्तियां जीर्णशीर्ण अवस्था में पालीवाल पार्क के कोने में धूल खा रही हैं।
क्या कहता है इतिहास
-ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार ये तीनों मूर्तियां 1905 में इटली से ताजनगरी में लाकर विक्टोरिया पार्क में स्थापित की गयी थीं।
-यहां से 1950 में इन्हें पुलिस लाइन में भेज दिया गया।
-कुछ सालों बाद वहां फायर ब्रिगेड ऑफिस बनाया गया तब भी ये मूर्तियां वहीं रही।
-इन मूर्तियों को एक निजी संगठन के प्रयासों से ताज म्यूजियम में स्थापित करने के लिए पालीवाल पार्क लाया गया था।
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रानी विक्टोरिया के व्यक्तित्व को दर्शाती हैं ये मूर्तियां
यह तीनों मूर्तियां रानी विक्टोरिया के व्यक्तित्व के विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं। जहां पहली मूर्ति में वह एक तलवार रखती है, जो उनका ब्रिटिश सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर के रूप में उनके कद को दर्शाता है तो वहीं दूसरे में वह अपने हाथों में एक राजदंड लिए हुए है जो प्रतीक है कि वह महारानी थी। तीसरी प्रतिमा में वह धार्मिक ग्रंथ बाइबिल लिए हुए हैं जो उनके आध्यात्मिक पक्ष को बताता है।
111 साल पुरानी है ये धरोहर
-ये तीनों मूर्तियां ब्रिटिश काल के प्रतीक के रूप में हैं।
-इनको बनाने में सोने सहित कई धातुओं का प्रयोग किया गया है।
-अष्टधातु से बनी ये मूर्तियां बेशकीमती है जिन्हें ताजनगरी आगरा में लाए हुए लगभग 111 साल हो गए है।
-यह जिला प्रशासन की संपत्ति है।
-कला की उत्कृष्ट नमूने ये मूर्तियां अब दोनों विभागों का ध्यान आकर्षित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
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ब्रिटिश काल की इन मूर्तियों के बारे में शाही जोड़े ने पूछा तो क्या होगा?
शाही जोड़े के आगरा आगमन को लेकर प्रशासन से लेकर गाइड तक अपने को अपडेट कर रहे हैं। अभी तक के देश भर में दौरे के दौरान शाही जोड़े ने जिस तरह इतिहास और लोगों के बारे में अपनी जानकारी साझा की है उससे सभी चकित हैं। वहीं आज आगरा आए ब्रिटिश जोड़े ने ब्रिटिश काल के इन ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में जानकारी ली तो क्या होगा? जिस राजसी परिवार का स्वागत शाही तरीके से किया जा रहा है उसी परिवार की मुखिया रानी विक्टोरिया की ऐतिहासिक मूर्तियों का ये हाल देखकर क्या सोचेगा ब्रिटिश जोड़ा? ये एक बड़ा सवाल है।
हिंदूवादी संगठनो के विरोध के कारण उपेक्षित है ये मूर्तियां
पालीवाल पार्क स्थित लाइब्रेरी के बाहर इन मूर्तियों को स्थापित करने के लिए प्लेटफार्म बनाए गए थे, लेकिन हिंदूवादी संगठनो की धमकी के चलते इन्हें स्थापित नहीं किया गया। हिंदूवादी संगठन इन मूर्तियों को गुलामी का प्रतीक मानते है।
दो पीआरडी जवानों के जिम्मे है सुरक्षा
-अष्टधातु से निर्मित इन मूर्तियों की सुरक्षा का जिम्मा दो पीआरडी जवानों पर है।
-पीआरडी जवान राजकुमार ने कहा कि सुरक्षा की दृष्टि से पार्क के इस हिस्से में दोनों तरफ बैरियर लगा दिए गए हैं।
-यहां 24 घंटे शिफ्ट के हिसाब से दो जवानों की ड्यूटी रहती है।
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क्या कहना है सामजिक कार्यकर्ता का ?
-विवेक साराभाई ने कहा कि ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार 1905 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स लगभग 50 मूर्तियां भारत में लाए थे।
-इनमें से कम से कम 10 मूर्तियां वर्तमान में सही अवस्था में है।
-अष्टधातु से बनीं इन मूर्तियों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है।
-उन्होंने ऐतिहासिक महत्व के इन कार्यों के संरक्षण की दिशा में प्रशासन के रवैये को सुस्त बताया।
-ब्रिटिश काल में बिछाई गए रेल पटरियों और पानी की लाइनों का उपयोग करने में परेशानी नहीं होती तो इन अवशेषों को संरक्षित करने में असमर्थता क्यों हैं?
-हमें देश में उनकी विरासत के संरक्षण में स्वार्थी नहीं होना चाहिए।
क्वीन मेरी ने सबसे पहले किया था ताज का दीदार
-शाही परिवार से सबसे पहले ताज का दीदार क्वीन मेरी ने किया था।
-1911 में क्वीन मेरी भारत आईं थीं। ताज के साथ उन्होंने फतेहपुर सिकरी भी देखीं थी।
-19 दिसंबर 1911 को क्वीन मेरी ने ताज का दीदार किया था।
-महारानी के आराम करने के लिए शाहजहां गार्डेन में फूस की झोपड़ी बनाई गई थी, जहां अब उपनिदेशक उद्यान का ऑफिस बना हुआ है।
-महारानी के सम्मान में जोंस फैमिली ने क्वीन मेरी एंप्रेस लाइब्रेरी बनवाई थी।
-सदर बाजार में यह लाइब्रेरी आज भी है। ताज महोत्सव में यहां कार्यक्रम भी हुए थे।
-अप्रूव्ड गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन कहते हैं कि शहर में महारानी से जुड़े कई स्थल हैं।
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इन्होंने इससे पहले किया ताज का दीदार
-क्वीन एलिजाबेथ (1961)
-प्रिंस चार्ल्स (1980)
-प्रिंसेज डायना (1992)