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रंगहीन होता रंगों का मोेहल्ला, मशीन और मंहगाई ने किया बेरोजगार
गाजीपुरः कभी रंगों से भरा रहने वाला रंग मुहल्ला आज रंगहीन होता जा रहा है। गाजीपुर जिले के सैदपुर में एक ऐसा मुहल्ला है जहां आजादी के पहले से ही रंगों का कारोबार होता है। इस बदलते दौर में ये धंधा विलुप्त होता जा रहा है। कभी पुरे मोहल्ले के लोग रंग बनाया करते थे, लेकिन मंहगाई और अत्याधुनिक मशीनों के चलते कुछ परिवार ही इस धंधे को कर पा रहे हैं।
पहले कपड़ों को करते थे रंगीन
इस धंधे से जुड़े लोग कहते है कि पहले रंगीन कपड़ा न होने से रंगों का प्रयोग कपड़ों को रंगीन बनाने में किया जाता था। जिसके चलते रंगों की काफी मात्रा में डिमांड होती थी। इसकी वजह से रंगों का कारोबार काफी फल फुल रहा था। पहले जिले के अलावा अन्य प्रदेशों में यहां के रंगो की सप्लाई हुआ करती थी। जिससे इस धंधे से जुड़े लोगों को अच्छा खासा इनकम भी हो जाता था, लेकिन बदलते परिवेश में अत्याधुनिक मशीनों द्वारा कपड़ों की प्रिंटिंग शुरू हो गई तब से यह रंग का धंधा विलुप्त होकर महज 15 दिनों का रह गया है। इतना ही नहीं इस धंधे पर आज तक किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया, शायद यही वजह है कि यह धंधा विलुप्त होता जा रहा है।
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क्या कहते हैं धंधे से जुड़े लोग ?
इस धंधे से जुड़ी मंजू देवी ने कहा कि पहले पूरे परिवार के साथ काम करने के बावजूद भी दो से तीन महीने रंग तैयार करने में लग जाता था। अत्याधुनिक मशीनों के आ जाने से रंग तैयार करनें में महज एक महीना ही लगता है, लेकिन ये मशीनें इतनी मंहगी हैं कि इन्हे खरिदना आम इंसान के बस की बात नहीं है। इसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ गई हैं। इस धंधे से जुड़े लोगों को सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिलने की वजह से लोगों को कर्ज लेकर रंग तैयार करना पड़ता है।
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आजादी के पहले से चलता है रंगों का कारोबार
इस धंधे से जुड़े रहे बुजुर्ग प्रेम प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि आजादी के पहले से ही यहां पर रंगो का कारोबार चल रहा है। हालांकि इस रंग के कारोबार को चलाने के लिए पूरा मुहल्ला लगा रहता था। लेकिन बदलते समय के साथ अब यह धंधा विलुप्त होता जा रहा है। जिसके चलते कुछ परिवार के लोग ही अब इस धंधे से जुड़े हुए है।
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