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'डे' इन हिस्ट्री 11 सितम्बर: विवेकानंद ने शिकागो में दिया था ऐतिहासिक भाषण, ‘सत्याग्रह’ आन्दोलन का बजा था बिगुल
लखनऊ: इतिहास एक दिन में नहीं बनता, लेकिन हर दिन इतिहास के बनने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। 11 सितम्बर के इतिहास के लिए भी यही मायने हैं। इस दिन इतिहास की कुछ बहुत महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। उसमें से एक घटना स्वामी विवेकानंद और दूसरी महत्मा गांधी से जुड़ी हुई है। स्वामी विवेकानन्द ने आज ही के दिन शिकागो में ऐतिहासिक भाषण दिया था। वहीं पहली बार 'सत्याग्रह' आन्दोलन का बिगुल बजा था। तो आइये जानते है इस दिन घटी कुछ प्रमुख घटनाओं के बारे में:-
स्वामी विवेकानंद का शिकागो में भाषण
स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में 11 सितम्बर 1893 को आयोजित विश्व धर्म संसद में भाषण दिया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत 'मेरे प्यारे अमेरिकी भाइयों और बहनों' से किया था। आज उनके भाषण को लगभग 125 साल पूरे हो रहे हैं, लेकिन उनकी प्रतिध्वनि आज भी सुनाई देती है।
भाषण में दिया गया संदेश आज भी अपने अस्तित्व में बना हुआ है। उन्होंने शिकागो में कहा था कि "मुझे गर्व है। अपने धर्म पे, जिसने दुनिया के हर सताए हुए लोगों को अपने देश में शरण दी।"
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि उन्होंने सभी धर्मों के उद्देश्य को एक सूत्र में रखा। जिस प्रकार पानी की धारा अलग-अलग दिशाओं से बह कर एक नदी का निर्माण करती है। ठीक उसी प्रकार से अलग-अलग धर्मो का एक हीं उद्देश्य होता है।
स्वामी विवेकानंद का यह भाषण मौजूदा समय में भी प्रासंगिक लगता है। शिकागो के भाषण में उन्होंने गीता के श्लोकों का वर्णन करते हुए कहा था कि "जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं। स्वामी विवेकानंद का यह वक्तव्य बहुत ही अहमियत रखता है और भारत की मजबूत छवि को प्रस्तुत करता है।
सत्याग्रह आंदोलन का बिगुल बजा
जैसा कि आप जानते हैं कि महात्मा गांधी का आज़ादी में बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने लोगों के हक़ के लिए कई आंदोलन चलाए। लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रियता उन्हें सत्याग्रह आंदोलन से मिली। उन्होंने पहली बार दक्षिण अफ्रीकी सरकार के ख़िलाफ सत्याग्रह आंदोलन किया था।
दक्षिण अफ़्रीकी सरकार द्वारा एक पूंजीवादी अध्यादेश लाया गया था। जिसका विरोध अफ्रीका में रहने वाले भारतीय कर रहे थे। और उस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया।
11 सितम्बर 1906 को को अहिंसात्मक तरीके से गांधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन की शुरूआत की। इस आंदोलन में गांधी द्वारा पूंजीवाद, अन्याय और रंगभेद की नीति के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई। जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
अफ्रीका में आंदोलन ख़त्म कर वे 15 जनवरी को भारत लौट आए। गांधी के सत्याग्रह का असर भारत पर भी दिख रहा था। सत्याग्रह की चिंगारी बिहार तक पहुंच चुकी थी। राज कुमार शुक्ल ने गांधी जी को बिहार आने के लिए निमंत्रण भेजा।
इसे गांधी जी ने स्वीकार कर लिया। 10 अप्रैल 1917 को गांधी जी बिहार के चंपारण पहुंचे। वहां उन्होंने अंग्रेजी सरकार के ख़िलाफ सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। यह आंदोलन चंपारण आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।
चंपारण सत्याग्रह आंदोलन अंग्रेजी सरकार को नागवार गुजरा। उन्होंने गांधी समेत कई आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया। हालाँकि गांधी के प्रति व्यापक जन समर्थन हासिल था, इसलिए अदालत में सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट ने उन्हें बिना जमानत छोड़ने का आदेश दे दिया। यह आंदोलन गांधी जी के सबसे सफल आंदोलनों में से एक रहा।
चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के बाद गांधी जी ने 1918 में गुजरात के खेड़ा में एक और बड़ा सत्याग्रह किया। यह अंग्रेजों की तरफ से किसानों से ज्यादा कर वसूली के विरोध में किया गया। इस आंदोलन में सरदार पटेल भी गांधी जी के साथ थे।
चिली में सैनिक विद्रोह और तख्तापलट
सल्वाडोर अलांदे दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें लोकतांत्रिक रूप से मार्क्सवादी देश चिली का राष्ट्राध्यक्ष चुना गया था। वह 1970 में सत्ता में आए थे। उन्होंने अपनी नीतियों से कई सुधार किए थे। वह चिली में कई बदलाव लाना चाहते थे, लेकिन उनकी नीतियां विफल हो रही थीं।
महंगाई बढ़ती जा रही थी और खाद्य पदार्थों की कीमतों में इज़ाफा हो रहा था. यही नहीं चिली में लगातार हुई हड़तालों से अर्थव्यवस्था भी चरमरा रही थी।
सल्वाडोर अलांदे उस समय अपने समर्थकों से अपील कर रहे थे कि उनका साथ दें। पर तब तक मामला बहुत ज्यादा बिगड़ चुका था। उस समय की दो विपक्षी पार्टी सल्वाडोर अलांदे के इस्तीफे पर अड़ी थीं। हालांकि उनकी ये अपील नामंजूर कर दी गई। ऐसा भी बताया जाता है कि राष्ट्रपति अलांदे के विरोधी उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने सैन्य विद्रोह का रास्ता चुना।
परिणामस्वरूप, 11 सितंबर 1993 को चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर अलांदे सरकार का तख्तापलट कर उनकी हत्या कर दी गई। उस समय विद्रोही सैनिकों ने वहां संसद पर 17 बम गिराए थे। इस पूरे घटनाक्रम में कई निर्दोषों की जान चली गई। सल्वाडोर अलांदे की मृत्यु के बाद जनरल पिनोचे ने सत्ता संभाली। अपने शासनकाल में उन्होंने हजारों राजनीतिक विरोधियों का कत्लेआम कराया।
देश और दुनिया के इतिहास में 11 सितंबर के इतिहास में कई घटनाएं हुईं। जिसमें ये प्रमुख हैं:-
1895: दर्शनशास्त्री विनोबा भावे का जन्म हुआ था।
1962: आज ही के दिन मशहूर इंग्लिश रॉक बैंड 'दि बीटल्स' ने अपने पहले एकल हिट एलबम 'लव मी डू' के गाने रिकार्ड किए थे।
2003: आज ही के दिन स्वीडन की विदेश मंत्री एना लिंध की एक अस्पताल में मौत हुई थी।
2001: न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की दोनों इमारतें हवाई हमले के बाद धाराशायी हो गई थीं। इसमें हजा़रों लोगों की मौत हुई थी।
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