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नवरात्रि का पहला दिन, काशी के शैलपुत्री मंदिर में जुटी भक्‍तों की भीड़

Admin
Published on: 8 April 2016 6:51 AM GMT
नवरात्रि का पहला दिन, काशी के शैलपुत्री मंदिर में जुटी भक्‍तों की भीड़
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वाराणसी: शुक्रवार से बसंतीय नवरात्रि का प्रारंभ हो गया है। धर्म की नगरी काशी में मां दुर्गा के नौ रूपों का दर्शन-पूजन शुरू हो चुका है। यहां मां दुर्गा के गौरी रूप का नौ अलग-अलग मंदिरों में दर्शन करने का महत्व है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम रूप शैलपुत्री का दर्शन का महत्व है।

लाखों की संख्‍या में आते हैं श्रद्धालु

-काशी के उत्तर दिशा में वरुणा के तट पर मां शैलपुत्री का बड़ा ही भव्य व विशाल मंदिर है।

-मंदिर के पुजारी शंकर तिवारी बताते हैं कि यह मंदिर सैकड़ों वर्षों से यहां है।

-आज नवरात्रि के प्रथम दिन इस मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां शैलपुत्री के दर्शनों के लिए आते हैं।

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इस दिन लोग रखते हैं व्रत

-इस दिन यहां न सिर्फ काशी बल्कि अन्य जिलों से भी लोग दर्शन व पूजन के लिए आते हैं।

-यहां आने वाले दर्शनार्थियों का मानना है कि मां के दर्शन व पूजन से उन्हें यश व कीर्ति मिलती है।

-मां उनका व उनके घर के सभी सदस्यों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

-इस दिन लोग व्रत रखते हैं साथ ही मां के दर्शन पूजन कर अपनी मनोकामना मांगते हैं।

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ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्रवकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। ये नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

कैसे हुआ मां के शैल रूप का जन्म

मां शैलपुत्री का जन्म हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म हुआ था। इनका वाहन वृषभ होने से देवी को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनको सती के नाम से भी जाना जाता है। उनकी एक मार्मिक कहानी है। एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया, केवल भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।

सती का आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंची तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव और दक्ष के अपमानजनक वचन से सती को बहुत कष्‍ट पहुंचा।

वे अपने पति का ये अपमान सह न सकीं और आग में खुद को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्तियां अनंत है।

नीचे की स्‍लाइड्स में देखें तस्‍वीरें...

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