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गोमती रिवर फ्रंट परियोजना: नौकरशाही के चलते सांसत में सरकार

अखिलेश यादव सरकार को घेरने की मंशा को लेकर गठित रिवर फ्रंट आयोग की रिपोर्ट नौकरशाही के चलते सरकार की परेशानी का सबब बनती जा रही है।

tiwarishalini
Published on: 22 Jun 2017 12:29 PM GMT
गोमती रिवर फ्रंट परियोजना: नौकरशाही के चलते सांसत में सरकार
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गोमती रिवर फ्रंट परियोजना: नौकरशाही के चलते सांसत में सरकार

योगेश मिश्र

लखनऊ: अखिलेश यादव सरकार को घेरने की मंशा को लेकर गठित रिवर फ्रंट आयोग की रिपोर्ट नौकरशाही के चलते सरकार की परेशानी का सबब बनती जा रही है। अलोक सिंह आयोग की रिपोर्ट के बाद योगी सरकार ने रिवर फ्रंट मामले में जुटाई गई अनियमितताओं पर पुख्ता कार्रवाई के लिए नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की अगुवाई में एक कमेटी गठित की।

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इस कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट सीएम के हवाले कर दी है। लेकिन दिलचस्प यह है कि इन दोनों कमेटियों की अनुशंषाओं को दरकिनार कर नियुक्ति विभाग ने नए सिरे से कार्रवाई शुरू कर दी है। जिसमे पूर्व मुख्य सचिव अलोक रंजन तो कार्रवाई की जद में आ रहे हैं पर वर्तमान मुख्य सचिव राहुल भटनागर को मुक्त कर दिया गया है। जबकि आम तौर पर विभागीय कार्रवाई किसी भी अफसर के खिलाफ सेवानिवृत्ति के बाद नहीं हो सकती है। यही नहीं, खन्ना कमेटी की रिपोर्ट में विभागीय कार्रवाई की जद में वर्तमान मुख्यसचिव राहुल भटनागर और टास्क फोर्स समिति के अन्य सदस्यों को भी रखा गया है। नियुक्ति विभाग ने कार्रवाई के लिए जो पत्रावली चलाई है उसमें प्रमुख सचिव सिंचाई रहे दीपक सिंघल और पूर्व मुख्य सचिव अलोक रंजन के ही नाम हैं।

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यह तब है जब खन्ना कमेटी की रिपोर्ट जब सीएम योगी आदित्यनाथ को थमाई गई तो उनकी तरफ से समिति की रिपोर्ट के साथ एक पेज के पत्र में खन्ना समिति की रिपोर्ट के मुताबिक कार्रवाई करने की हिदायत साफ तौर पर दर्ज है। सूत्रों की माने, तो बृहस्पतिवार को मुख्य सचिव ने नियुक्ति सचिव को दोनों कमेटियों की रिपोर्ट थमा कर कार्रवाई करने की जगह जो आदेश दिए हैं उनमे नए तरह के संदेश हैं जो अलोक रंजन और सिंघल के ही खिलाफ बनते हैं।

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इस तरह देखा जाए तो अलोक सिंह कमेटी और खन्ना कमेटी दोनों में से किसी पर भी हू-ब-हू अमल होता नहीं दिख रहा। सूत्रों का कहना है कि खन्ना कमेटी की सिफारिशों पर अमल हुआ तो मुख्य सचिव राहुल भटनागर को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ सकती है। कमेटी की रिपोर्ट को सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने एक पेज के पत्र के साथ कार्यवाही के लिए हालांकि मुख्य सचिव के पास ही भेज दिया है। रिवर फ्रंट मामले में हुई गड़बड़ियों में अपने पूर्ववर्ती आलोक रंजन की जिम्मेदारी तय कराने में राहुल भटनागर खुद ही उलझते नज़र आ रहे हैं।

दरअसल खन्ना कमेटी ने रिवर फ्रंट मामले की जांच रिपोर्ट में चार सिफारिशें की हैं। पहली सिफारिश में कहा गया है कि जिन अभियंताओं के खिलाफ वित्तीय अनियमितताएं सामने आई हैं उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। दूसरा, रिवर फ्रंट मामले में जहां जहां आपराधिक कृत्य उजागर होता है वहां वहां सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए। तीसरा, टास्क फोर्स/अनुश्रवण समिति अथवा कहीं भी पर्यवेक्षणीय शिथिलता दिखाई पड़ती है तो ऐसे जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जाए। चौथी और अंतिम सिफारिश कमेटी ने यह की है कि कम से कम धनराशि खर्च कर परियोजना पूरी कर दी जाए।

सीएम योगी आदित्यनाथ के पत्र के मुताबिक, जांच रिपोर्ट पर अमल हुआ तो सीबीआई जांच सिर्फ उन मामलों में ही लिखी जाएगी जहां जहां आपराधिक कृत्य उजागर हुआ है, अथवा जिन अफसरों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता में प्राथमिकी दर्ज हो। इस लिहाज से सीबीआई जांच की जद से पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन और वर्तमान मुख्य सचिव राहुल भटनागर दोनों बाहर निकल जाते हैं, लेकिन कमेटी की तीसरी सिफारिश के मुताबिक पर्यवेक्षणीय शिथिलता बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की जो बात कही गई है उसकी गाज मुख्य सचिव राहुल भटनागर पर भी गिरती नज़र आ रही है।

खन्ना कमेटी की रिपोर्ट ने पर्यवेक्षणीय शिथिलता के मामले में वर्तमान और पूर्व दोनों मुख्य सचिव में से किसी के साथ भेदभाव नहीं किया है। हालांकि, आलोक सिंह कमेटी की रिपोर्ट ने इस बाबत भेद करते हुए यहां तक लिखा है कि मुख्य सचिव रहते हुए टास्क फोर्स के अध्यक्ष के पद पर आलोक रंजन पर्यवेक्षणीय शिथिलता के जिम्मेदार है। जबकि राहुल भटनागर को यह कहकर क्लीन चिट थमा दी कि उनका कालखंड छोटा है पर खन्ना कमेटी की रिपोर्ट ऐसा नहीं करती है। अगर सिर्फ आपराधिक कृत्य के मामले में सीबीआई जांच की सिफारिश सरकार की ओर से की जाती है तो राहुल भटनागर विभागीय जांच की जद में जरुर आएंगे। उनके मुख्य सचिव रहते कोई भी अधिकारी उनके खिलाफ विभागीय जांच नहीं कर सकता नतीजतन, उन्हें जांच शुरु होते ही पद से हटाना होगा।

दूसरी ओर अगर पूरे रिवर फ्रंट की जांच अगर सीबीआई के हवाले की जाती है तो भी राहुल भटनागर पद पर बने रहने के अधिकारी नहीं रह जाएंगे। हालांकि आलोक रंजन के कालखंड तक टास्क फोर्स ने जो भी निर्णय लिए अथवा बैठकें की उन सबको 25 जुलाई 2016 की कैबिनेट से अऩुमोदन करवा रखा है।

अलोक रंजन इस परियोजना से सिर्फ एक भूमिका में जुडे थे जबकि राहुल भटनागर इसमें दोहरी भूमिका निभा रहे थे। एक तरफ उन्होंने बतौर प्रमुख सचिव वित्त, व्यय वित्त समिति के अध्यक्ष की हैसियत से परियोजना का धनराशि स्वीकृत की। 1,900 करोड़ रुपव की इस परियोजना को 1,513 करोड़ का अनुमोदन दिया।

सिंचाई विभाग के उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो तत्कालीन प्रमुख सचिव सिंचाईं दीपक सिंघल ने व्यय वित्त समिति की बैठक में पूरी परियोजना के एक एक अंश को बैठक के मिनट्स का हिस्सा बनवा रखा है। खन्ना कमेटी की रिपोर्ट टास्क फोर्स में शामिल अन्य अफसरों पर भी उंगली उठाती है। टास्क फोर्स में तत्कालीन मुख्य सचिव के अलावा सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव दीपक सिंघल, तत्कालीन प्रमुख सचिव नगर विकास, प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन, सिंचाई विभाग के तत्तकालीन सचिव, तत्कालीन मंडलायुक्त लखनऊ, तत्कालीन जिलाधिकारी लखनऊ, सिंचाई के तत्कालीन प्रमुख अभियन्ता एवं विभागाध्यक्ष, मुख्य अभियंता शारदा सहायक (तत्कालीन) एवं तत्कालीन प्रबंध निदेशक जल निगम की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।

इन रिपोर्ट्स के ही आधार पर बीते 18 जून को गोमती रिवर फ्रंट की न्यायिक जांच के आधार पर आठ इंजीनियरों के खिलाफ राजधानी के गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई थी। यह मुकदमा वित्तीय अनियमितता और कथित भ्रष्टाचार की धाराओं में दर्ज किया गया है। इसमें रिटायर इंजीनियर भी शामिल हैं। कई वर्तमान में कार्यरत हैं। इन्हीं में से एक अधिशासी अभियंता सुरेंद्र कुमार यादव को बुधवार को मलाईदार पोस्टिंग दे दी गई। अब तक यह लखनऊ खण्ड, शारदा नहर, लखनऊ में अधिशासी अभियंता के पद पर कार्यरत थें। पर अब जनहित में इनका तबादला लखनऊ खण्ड—2, शारदा नहर, लखनऊ में अधिशासी अभियंता के पद पर किया गया है। अब इससे कैसा जनहित सधेगा। विभाग के बड़े अफसर यह बताने से कतरा रहे हैं।

इन पर दर्ज हुई थी एफआईआर

इन पर दर्ज हुई थी एफआईआर

तत्कालीन चीफ इंजीनियर, गुलेश चन्द्र, अब रिटायर

तत्कालीन चीफ इंजीनियर, एसएन शर्मा

तत्कालीन चीफ इंजीनियर, काज़िम अली

तत्कालीन अधीक्षण अभियंता, शिव मंगल यादव, अब रिटायर

तत्कालीन अधीक्षण अभियंता, अखिल रमन, अब रिटायर

तत्कालीन अधीक्षण अभियंता, कमलेश्वर सिंह

तत्कालीन अधिशासी अभियंता/अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव, अब रिटायर

अधिशासी अभियंता, सुरेंद्र यादव

इन धाराओं में दर्ज हुआ केस

इन इंजीनियरों पर आईपीसी की धारा 409 (लोक सेवक द्वारा सरकारी धन का गबन), 420 (धोखाधड़ी), 467, 468, 471 व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

सुरेश खन्ना कमेटी ने की है सीबीआई जांच की सिफारिश

बता दें कि सत्ता में आने के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने गोमती रिवर फ्रंट का दौरा कर मौके पर हुए कामों का जायजा लिया था। उसी समय उन्होंने अफसरों को जमकर फटकार लगाई थी और प्रकरण की जांच के लिए जस्टिस आलोक सिंह की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की थी। समिति से 45 दिन में जांच रिपोर्ट मांगी गई थी।

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