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HC से अखिलेश सरकार को फटकार,कहा- क्यों न राज्य में लगा दें राष्ट्रपति शासन?
लखनऊ: पारिवारिक कलह से जूझ रहे सीएम अखिलेश यादव को मंगलवार को कोर्ट से भी बड़ा झटका मिला। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने डेंगू से लगातार हो रही मौतों को न रोक पाने पर राज्य सरकार की पूरी मशीनरी को असफल करार दिया। कोर्ट ने कहा, कि प्रदेश में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया है। सरकार नागरिकों को स्वास्थ्य और सफाई उपलब्ध कराने के अपने दायित्वों को पूरा करने में पूरी तरह विफल रही है। कोर्ट ने
चीफ सेक्रेटी को गुरुवार को तलब कर पूछा है कि क्यों न प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए संविधान के अनुच्छेद-356 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल को अनुशंसा कर दी जाए।
नौकरशाह सरकार के काबू में नहीं हैं
जस्टिस एपी साही और जस्टिस डीके उपाध्याय की बेंच ने कहा, कि 'प्रतीत होता है कि नौकरशाह सरकार के काबू में नहीं हैं। बेंच ने कहा कि बार-बार आदेश देकर और अफसरों को तलब कर वह आजिज हो गया है। अफसर केवल कागजी खानापूरी और चिट्ठी पत्री पेशकर इतिश्री करने में मशगूल हैं। आम नागरिकों की डेंगू से होनी वाली मौतों को रोकने के लिए कोई कवायद नहीं की जा रही है।'
अफसर बिलकुल गंभीर नहीं
कोर्ट ने तल्ख लहजे में कहा, कि 'एक ओर आम आदमी मर रहा है तो दूसरी तरफ अफसरों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।' कोर्ट ने कहा कि यह सब कहने को हम अब बाध्य हो गए हैं। हमारे पास अब दूसरा विकल्प नहीं है।
कोर्ट ने महाधिवक्ताओं को फटकारा
बेंच स्थानीय वकील एमपी सिंह और सहित अन्य की ओर से अलग-अलग दायर कई नई और पुरानी जनहित याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा था। बेंच ने सरकार को बचाने का असफल प्रयास कर रहे उसके दो अपर महाधिवक्ताओं बुलबुल गोदियाल और आईपी सिंह को कई बार फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि उनके पास सरकार को डिफेंड करने के लिए शब्द ही शब्द हैं परंतु जमीनी हकीकत कुछ अलग ही बयान कर रही है।
सरकार अपने ही तर्क में फंस रही है
सरकार की ओर से पेश हलफनामे को पढ़कर कोर्ट ने कहा कि सरकार तो अपने ही तर्क में फंस रही है। आखिर बार-बार आदेश जारी करने के बावजूद नौकरशाह कोई ठोस कार्यवाही क्यों नहीं कर रहे हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि 'सरकार केवल जुबानी जमा खर्च में मस्त है बार-बार कहा जा रहा है कि हम कार्यवाही कर रहे हैं परंतु किसी भी सुनवाई पर सरकार की ओर से कोई ठोस कार्य योजना पेश नहीं की गई।'
यह तो 'क्रिमिनल नेग्लिजेंस' है
कोर्ट ने कहा कि सरकारी अफसरों का यह कृत्य केवल उनकी शिथिलता नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह संवैधानिक तंत्र की विफलता भी है। सरकारी नाकामी से हुई मौतों पर कोर्ट ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि यह तो 'क्रिमिनल नेग्लिजेंस' है। इसके लिए अफसरों पर 'टार्चरस लाइबिलिटी' लगानी चाहिए। कोर्ट ने नाकाम अफसरों पर कोई कार्यवाही न करने पर सरकार को लंबी लताड़ लगाई। कोर्ट ने कहा कि आखिर सरकार नाकाम अफसरों पर कार्यवाही से हिचक क्यों रही है।
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अफसर मनमानी कर रहे
करीब दो घंटे चली सुनवाई के दौरान जजों ने बार-बार दोहराया कि प्रदेश में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया है। सरकार आम नागरिकों की जान की हिफाजत करने में असफल रहा है। अफसर मनमानी कर रहे हैं। उनके पास कोई कार्ययेाजना नही है। कोर्ट ने गोदियाल से कहा कि आखिर सरकार चीजों को हैंडल न कर पाने वाले अफसरों को तत्काल हटाती क्येां नहीं।
डॉक्टरों की हो पर्याप्त नियुक्ति
जब गोदियाल ने डाक्टरों और संसाधनों की कमी का तर्क उठाया तो जजों की त्यौंरियां और चढ़ गई। जजों ने कहा कि इस तर्क से सरकार लोगों की जान की हिफाजत करने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। यदि डॉक्टर की पर्याप्त मात्रा में नियुक्ति नहीं की जा रही है तो सरकार पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन को क्यों नहीं हटाती।
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'आप कोर्ट को आउटसोर्स करना चाहते हैं?'
जब गोदियाल ने कोर्ट से कहा कि वह अपनी कमेटी स्वयं बना दें तो कोर्ट ने उन्हें फटकारा। जजों ने कहा कि आप पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के लिए कोर्ट को आउटसोर्स करना चाहते हैं जो संभव नहीं है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को गरीब लोगों की जान की कोई परवाह नहीं है। जब यह हालात राजधानी के हैं तो प्रदेश के दूर-दराज के इलाकों का क्या हाल होगा इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है।
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श्रीधरन जैसे कमिटेड व्यक्ति की जरूरत
सुनवाई के दौरान केार्ट ने एक बार मेट्रो मैन श्रीधरन का नाम लेकर कहा कि अब तो लोगों के स्वास्थ्य को बचाने के लिए उन जैसे कमिटेड व्यक्ति की जरूरत है।
कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि संविधान की सांतवी अनुसूची के इंट्री नंबर पांच में लोगों के स्वास्थ्य को बनाये रखने का जिम्मा राज्य सरकार का है। परंतु राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने जान-बूझकर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया। जिससे चलते कोर्ट यह कहने को बाध्य है कि प्रदेश में संवैधानिक तंत्र विफल हो गया है। जिसका एक ही निष्कर्ष है कि अनुच्छेद 356 के तहत प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की अनुसंशा कर दी जाए।
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