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डॉ. पूजा के बयानों से फिर सुर्ख़ियों में हिन्दू महासभा, हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान

sudhanshu
Published on: 24 Aug 2018 2:05 PM GMT
डॉ. पूजा के बयानों से फिर सुर्ख़ियों में हिन्दू महासभा, हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान
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लखनऊ: मेरठ में हिन्दू कोर्ट की स्थापना के बाद अब महात्मा गाँधी की ह्त्या को लेकर दिए गए विवादित बयान के बाद डॉ. पूजा शकुनि पांडेय ने अखिल भारतीय हिन्दू महासभा को सुर्ख़ियों में ला दिया है। पूजा ने कहा है कि यदि नाथो राम गोडसे से पहले मैं पैदा हुई होती तो गांधी की ह्त्या मैं ही करती। पूजा के इस बयान के बाद से काफी चर्चा शुरू हो गयी है। डॉ. पूजा ने यह बात तब कही जब एक राष्ट्रीय चैनल ने उनका लंबा साक्षात्कार लिया।

हिंदुओं के मामले में फैसले देने के मकसद से खोले गए हिंदु कोर्ट का अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में अनावरण किया था। अपने साक्षात्कार में पूजा शकुन पांडे ने कहा कि, मुझे गर्व है कि हम नाथू राम गोडसे को पूजते हैं, वो गांधी के हत्यारे नहीं थे, उन्हें भारतीय संविधान लागू होने से पहले सजा दे दी गई थी।

गांधी को मारकर नहीं किया पाप

पूजा ने कहा कि, मुझे यह कहने में कोई डर नहीं है कि नाथू राम गोडसे ने गांधी को मार कर कोई पाप किया, 'मैं गर्व से कहती हूं कि अगर नाथू राम गोडसे से पहले मैं पैदा होती तो मैं ही गांधी को मार देती। पूजा शकुन ने आगे कहा कि, गांधी ने देश का बंटवारा कर के ठीक नहीं किया, अगर आज भी कोई कोई गांधी पैदा होगा जो देश बांटने की बात करेगा तो नाथू राम गोडसे भी इसी पुण्य भूमि पर पैदा होगा।

अब इस साक्षात्कार के बाद अखिल भारतीय हिंदू महासभा की हिंदु कोर्ट मुश्किलों में फंसती हुई नजर आ रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी करते हुए हिंदू कोर्ट पर जानकारी मांगी है। उच्च न्यायालय ने डीएम मेरठ और हिंदू कोर्ट की कथित जज पूजा शकुन पांडे को भी नोटिस भेजा है, इस मामले पर 11 सितम्बर को अगली सुनवाई होनी है।

किस प्रकार का संगठन है अखिल भारतीय हिन्दू महासभा

अखिल भारत हिन्दू महासभा भारत का एक राजनीतिक दल है। यह एक भारतीय हिन्दू राष्ट्रवादी संगठन है।विनायक दामोदर सावरकर इसके अध्यक्ष रहे। केशव बलराम हेडगेवार इसके उपसभापति रहे। बालकृष्ण शिवराम मुंजे हिन्दू महासभा के सदस्य थे। वे सन १९२७-२८ में अखिल भारत हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बनवाने में इनका बहुत योगदान था। संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार के वे राजनितिक गुरु थे। भारत के स्वतन्त्रता के उपरान्त जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तब इसके बहुत से कार्यकर्ता इसे छोड़कर भारतीय जनसंघ में भर्ती हो गये।

मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में प्रयाग में हिंदू महासभा की स्थापना

सन् 1910 में मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में प्रयाग में हिंदू महासभा की स्थापना की गई। सन् 1916 में बालगंगाधर तिलक की अध्यक्षता में लखनऊ में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। लखनऊ कांग्रेस ने मुस्लिम लीग से समझौता किया जिसके कारण सभी प्रांतों में मुसलमानों को विशेष अधिकार और संरक्षण प्राप्त हुए। हिंदू महासभा ने सन् 1917 में हरिद्वार में महाराजा नंदी कासिम बाजार की अध्यक्षता में अपना अधिवेशन करके कांग्रेस-मुस्लिम लीगसमझौते तथा चेम्सफोर्ड योजना का तीव्र विरोध किया।

स्वाधीनता आंदोलन में सहभागी

अंग्रेजों ने स्वाधीनता आंदोलन का दमन करने के लिए रौलट ऐक्ट बनाकर क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए पुलिस और फौजी अदालतों को व्यापक अधिकार दिए। कांग्रेस की तरह हिंदू महासभा ने भी इसके विरुद्ध आंदोलन चलाया। उसी समय गांधी ने तुर्की के खलीफा को अंग्रेजों द्वारा हटाए जाने के विरुद्ध तुर्की के खिलाफत आंदोलन के समर्थन में भारत में भी खिलाफत आंदोलन चलाया।

मुसलमानों के लिए सीटें सुरक्षित करने का विरोध

सन् 1925 में कलकत्ता नगरी में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हिंदू महासभा का अधिवेशन हुआ जिसमें प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता मुकुंदराव आनंदराव जयकर भी सम्मिलित हुए। सन् 1926 में देश में प्रथम निर्वाचन होने जा रहा था। अंग्रेजों ने असंबलियों में मुसलमानों के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए। हिंदूमहासभा ने पृथक् निर्वाचन के सिद्धांत और मुसलमानों के लिए सीटें सुरक्षित करने की विरोध किया।

साइमन कमीशन, रिफार्म ऐक्ट में सुधार का विरोध

जब अंग्रेजों का साइमन कमीशन, रिफार्म ऐक्ट में सुधार के लिए भारत आया, तो हिंदू महासभा ने भी कांग्रेस के कहने पर इसका बहिष्कार किया। लाहौर में हिंदू महासभा के अध्यक्ष लाला लाजपत राय स्वयंसेवकों के साथ कमीशन के बहिष्कार के लिए एकत्र हुए। पुलिस ने लाठी प्रहार किया, जिसमें लाला को चोट आई और उनकी मृत्यु हो गई। ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन आयोजित करके हिंदू, मुसलमान, सिक्ख आदि सभी के प्रतिनिधियों को बुलाया। हिंदू महासभा की ओर से डॉ॰ धर्मवीर, मुंजे, बैरिस्टर जयकर आदि सम्मिलित हुए। हिंदू महासभा ने सिंध प्रांत को बंबई से अलग करने का भी विरोध किया।

वीर सावरकर का अभुदय

सन् 1937 में जब हिन्दू महासभा काफी शिथिल पड़ गई थी और गांधी लोकप्रिय हो रहे थे, तब वीर सावरकर रत्नागिरि की नजरबंदी से मुक्त होकर आए। वीर सावरकर ने सन् 1937 में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर अपने देश की स्वतंत्रता उसी प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों ने शकों, ग्रीकों, हूणों, मुगलों, तुर्कों और पठानों को परास्त करके की थी। उन्होंने घोषणा की कि हिमालय से कन्याकुमारी और अटक से क़टक तक रहनेवाले वह सभी धर्म, संप्रदाय, प्रांत एवं क्षेत्र के लोग जो भारत भूमि को पुण्यभूमि तथा पितृभूमि मानते हैं, खानपान, मतमतांतर, रीतिरिवाज और भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही राष्ट्र के अंग हैं क्योंकि उनकी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और मित्र और शत्रु भी एक हैं - उनमें कोई विदेशीयता की भावना नहीं है।

पाकिस्तान की स्थापना

हिंदू महासभा ने पाकिस्तान बनने का विरोध किया। हिंदू महासभा के नेता रामचन्द्र वीर और वीर सावरकर ने विभाजन का विरोध किया। वर्तमान समय में देश की परिस्थितियों को देखते हुए हिंदू महासभा इसपर बल देती है कि देश की जनता को, प्रत्येक देशवासी को अनुभव करना चाहिए कि जब तक संसार के सभी छोटे मोटे राष्ट्र अपने स्वार्थ और हितों को लेकर दूसरों पर आक्रमण करने की घात में लगे हैं, उस समय तक भारत की उन्नति और विकास के लिए प्रखर हिंदू राष्ट्रवादी भावना का प्रसार तथा राष्ट्र को आधुनिकतम अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित होना नितांत आवश्यक है।१९५१/५२ के प्रथम लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग ने अखिल भारतीय हिन्दू महासभा को 'राष्ट्रीय दल' के रूप में मान्यता दी थी। इसे 'घोडा और घुड़सवार' चुनाव-चिह्न प्रदान किया गया था।

स्थापना के समय हिन्दू महासभा के उद्देश्य

अखंड हिन्दुस्तान की स्थापना। भारत की संस्कृति तथा परंपरा के आधार पर भारत में विशुद्ध हिन्दू लोक राज का निर्माण। विभिन्न जातियों तथा उपजातियो को एक अविछिन्न समाज में संगठित करना। एक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण, जिसमे राष्ट्र के सब घटकों के सामान कर्तव्य तथा अधिकार होंगे।राष्ट्र के घटकों का मनुष्य के गुणों के आधार पर विश्वास दिला कर विचार-प्रचार और पूजा को पूर्ण राष्ट्र धर्मं के अनुकूल स्वतंत्रता का प्रबंध।

सादा जीवन और उच्च विचार तथा भारतीय नारीत्व के उदात्त प्राचीन आदर्शों की उन्नति करना। स्त्रियों और बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना। हिन्दुस्तान को सैनिक, राजनितिक, भौतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनाना। सभी प्रकार की सामाजिक असमानता को दूर करना।धन के वितरण में प्रचलित अस्वाभाविक असमानता को दूर करना। देश का जल्द से जल्द औद्योगीकरण करना। भारत के जिन लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़ दिया है, उनका तथा अन्य लोगों का हिन्दू समाज में स्वागत करना। गाय की रक्षा करना तथा गौ-वध को पूर्णत: बंद करना। हिन्दी को राष्ट्र की भाषा तथा देवनागरी को राष्ट्र लिपि बनाना। अन्तराष्ट्रीय शांति तथा उन्नति के लिए हिन्दुस्तान के हितों को प्राथमिकता देकर अन्य देशों से मैत्री सम्बन्ध बढ़ाना। भारत को सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से विश्व शांति के रूप में प्रतिस्थापित करना।

अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के अध्यक्ष

राजा मणीन्द्र चन्द्र नन्दी -- हरिद्वार, १९१५

मदन मोहन मालवीय -- हरिद्वार, १९१६

जगत्गुरु शंकराचार्य भारती तीर्थ पुरी -- प्रयाग, १९१८

राजा रामपाल सिंह -- दिल्ली , १९१९

पण्डित दीनदयाल शर्मा -- हरिद्वार, १९२१

स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वती -- गया, १९२२

लाला लाजपत राय -- कोलकाता, १९२५

राजा नरेन्द्र नाथ -- दिल्ली, १९२६

डॉ बाळकृष्ण शिवराम मुंजे -- पटना, १९२७

नरसिंह चिंतामन केलकर -- जबलपुर, १९२८

रामानन्द चटर्जी -- सूरत, १९२९

विजयराघवाचार्य -- अकोला, १९३१

भाई परमानन्द -- अजमेर, १९३३

भिक्षु उत्तम -- कानपुर, १९३५

जगद्गुरु शंकराचार्य डॉ कुर्तकोटी -- लाहौर, १९३६

विनायक दामोदर सावरकर -- कर्णावती (१९३७) , नागपुर (१९३८), कोलकाता (१९३९), मदुरा (१९४०), भागलपुर (१९४१), कानपुर (१९४२)

श्यामाप्रसाद मुखर्जी -- अमृतसर (१९४३), बिलासपुर (१९४४)

लक्ष्मण बलवन्त भोपतकर -- गोरखपुर (१९४६)

नारायण भास्कर खरे -- कोलकाता (१९४९)

आचार्य बालाराव सावरकर -- कर्णावती (१९८७)

वर्ष 1987 के बाद से इस संगठन के स्वरुप को लेकर बहुत स्पष्ट जानकारी कही एक जगह नहीं मिलती। कई लोग इसके स्वयंभू अध्यक्ष होने का दावा करते हैं।

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