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आज ही के दिन 1977 में हुई थी इंदिरा गांधी की घर से गिरफ्तारी
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊः भारतीय राजनीति में इंदिरा गांधी की बुद्धिमत्ता, चतुराई व राजनैतिक परिपक्वता की तारीफ उनके विरोधी भी करते थे। वह एक ऐसी महिला थीं जो न केवल भारतीय राजनीति पर छाई रहीं बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। वह देश की पहली महिला थीं जो सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहीं।
इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व का ही यह प्रभाव था कि उनके विरोधी भी सामने आकर बोलने से घबड़ाते थे। बावजूद इस सबके शायद आपको पता हो कि देश में भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला नेता भी इंदिरा गांधी ही थीं।
वह आज ही का दिन था तीन अक्टूबर 1977 जब इंदिरा गांधी के खि़लाफ दर्ज एफआईआर पर आईपीएस अधिकारी एनके सिंह ने उन्हें गिरफ्तार किया था। श्रीमती गांधी को एफआआईआर की एक प्रति भी दी गई थी।
इंदिरा गांधी पर अपने सरकारी पद का दुरुपयोग करने और 1971 में चुनाव प्रचार के लिए सरकारी खर्च पर जीपों का प्रबंध करने का आरोप लगाया गया था। ये आरोप 1971 चुनाव में उनके प्रतिद्वंदी राज नारायन ने लगाए थे।
उस समय आज की तरह सूचना क्रांति नहीं हुई थी। लोगों के लिए मीडिया का सशक्त माध्यम रेडियो ही था। देखते देखते यह खबर पूरे देश में फैल गई। एनके सिंह सुबह आठ बजे इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने के लिए जब उनके घर पहुंचे तो वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में हड़कंप मच गया। अधिकारी जब इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर लेकर चले तो उनके दोनो पुत्र राजीव और संजय गांधी एक कार में पुलिस के पीछे-पीछे चलते रहे।
इंदिरा गांधी की हिरासत के लिए बड़कल झील के पास एक जगह चुनी गई थी। झील और फरीदाबाद के बीच का रेलवे फाटक बंद था। इंदिरा गांधी कार से नीचे उतरीं और अपने वकील से सलाह करने की जिद करने लगीं। तब तक पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो चुके थे।
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इमरजेंसी लगाने के बावजूद देश का जनमानस यह स्वीकारने को तैयार नहीं था कि उन्होने कोई भ्रष्टाचार किया होगा जिसके आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इस बीच वहां भारी भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी और उनकी रिहाई के समर्थन में नारे लगाने लगे। इसके बाद एनके सिंह उन्हें पुरानी दिल्ली में दिल्ली पुलिस की ऑफिसर्स मेस में ले गए। इंदिरा गांधी को वह जगह ठीक लगी और उन्होंने रात भर वहीं पर आराम किया।
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अगली सुबह चार अक्टूबर को उन्हें मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया उस समय तक इतनी भीड़ जमा हो गई थी कि भीड़ पर काबू पाने में पुलिस के छक्के छूट गए। मजिस्ट्रेट ने उन पर लगे आरोपों के समर्थन में सबूतों की मांग की। उन्होंने बताया कि पिछले दिन ही उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी और सबूत अभी इकट्ठा किए जा रहे थे।
मजिस्ट्रेट ने वादी पक्ष से पूछा कि तो फिर वे क्या करें। सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। इसके बाद मजिस्ट्रेट ने इंदिरा गांधी को इस आधार पर साफ बरी कर दिया कि उनकी हिरासत के पक्ष में कोई सबूत नहीं दिया गया था।
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दरअसल जनता पार्टी की सरकार बनने के साथ ही चरण सिंह इंदिरा गांधी को जेल भेजना चाहते थे। इंदिरा गांधी के ऊपर भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए गए और इसे साबित करने के लिए शाह कमीशन का गठन किया गया। इस कमीशन को इमरजेंसी के दौरान की गई ज्याततियों की जांच करने का जिम्मा सौंपा गया था।
इसके बाद संसद की विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट पर इंदिरा गांधी को 19 दिसंबर 1978 को एक बार फिर गिरफ्तार किया गया। उन्हें संसद से ही सीबीआई के अधिकारियों ने गिरफ्तार किया। इस बार वह एक हफ्ते के लिए दिल्ली के तिहाड़ जेल में रहीं। लेकिन इंदिरा गांधी को दो बार हुई।
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गिरफ्तारी से जनता में यह संदेश गया कि सरकार बदले की भावना से इंदिराजी को परेशान कर रही है जिसका नतीजा यह हुआ कि अंतरविरोधों के चलते जनता पार्टी का विघटन हुआ और जब 1980 में मध्यावधि चुनाव हुए तो देशवासियों ने इंदिरा गांधी को सिर पर बैठाते हुए एक बार फिर सत्ता की बागडोर सौंप दी।