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सीएम साहब! राजनीति छोड़िए नहीं तो प्यासे मर जाएंगे 40 गांव के लोग

Newstrack
Published on: 7 May 2016 3:50 PM IST
सीएम साहब! राजनीति छोड़िए नहीं तो प्यासे मर जाएंगे 40 गांव के लोग
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IRFAN PATHAN IRFAN PATHAN

महोबा: बुंदेलखंड में महोबा के 40 गांव के लोग अब भी पानी के लिए तरस रहे हैं। प्रशासन प्यासे गांवों तक पानी पहुंचाने में खुद को असहाय पा रहा है। झांसी से महोबा की दूरी ट्रेन से 107 और सड़क से दूरी 120 किलोमीटर है। झांसी में दस टैंकर लेकर आई जल एक्सप्रेस खड़ी है। मात्र तीन से चार घंटे में ट्रेन पहुंचकर प्यास बुझा सकती है। यूपी सरकार की जिद की केंद्र से आए जल एक्सप्रेस से पानी नहीं लेंगे।

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पानी की कोई कमी नहीं बुंदेलखंड में, इसे सही साबित करने के लिए कहीं और की तस्वीर जारी कर दी गई । यूपी सरकार की ओर से इसे लेकर दो दिन में ट्वीट का अंबार लगा दिया गया। पिछले दो दिन से इस मामले में जमकर राजनीति हो रही है। ​महोबा पानी की सियासत का गढ़ बन गया है। ट्रेन से आया पानी नहीं लेंगे, लेकिन पानी की आपूर्ति के लिए केंद्र से 10 हजार टैंकर की मांग जरूर की जाएगी।

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चंदेलकालीन तालाबों में नाम मात्र का पानी

जिले के चंदेलकालीन तालाबों में नाम मात्र के लिए ही पानी बचा है,जो इंसान तो दूर जानवरों के पीने के लिए सही नहीं है। शहर में नलों से हो रही जलापूर्ति बेसमय हो रही है। पूरे शहर को पानी देने वाला उर्मिल बांध का जलस्तर भी लगातार घट रहा है। उर्मिल बांध से महोबा शहर का गला तर किया जा रहा है लेकिन यहां भी सूखे का असर है। यही वजह है कि उर्मिल बांध से पेयजल आपूर्ति करने के लिए जल संस्थान के कर्मचारी सूख रहे बांध में नाली नुमा नहर बनाकर जनरेटरों और मोटर से पानी खींच रहे हैं।

डीएम ने भी माना पानी की किल्‍लत

डीएम वीरेश्वर सिंह भी मानते है महोबा के 40 गांवों में पेयजल किल्लत है। यहां के लोगों को 63 टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। जल निगम के सर्वे के अनुसार 575 हैंडपंपों को रीबोर कराया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों 14463 और शहरी क्षेत्र में 4000 हैंडपम्प हैं। जानवरों के लिए 2434 चरही बनाई गई है। पानी के लिए यहां झगड़ा होना आम बात है। हालात इतने ख़राब है कि इन क्षेत्रों में पुलिस की मौजूदगी में पानी दिया जा रहा है।

केंद्र-राज्‍य का टकराव, झेल रहा महोबा

महोबा में सूखे के तेवर सख्त हैं। केंद्र और यूपी सरकार के टकराव का खामियाजा यहां की आवाम को झेलना पड़ रहा है ।पानी की सियासत का ही नतीजा है कि केंद्र की खाली ट्रेन झांसी में है जिसमे बुंदेलखंड का ही पानी भर दिया गया है लेकिन यूपी सरकार इसे लेने से मना कर रही है। इसके पीछे सरकार और जिला प्रशासन के अपने कुतर्क हैं।

ट्रेन से पानी लेने का मतलब धन और समय की बर्बादी

डीएम वीरेश्वर सिंह का कहना है कि महोबा में पानी का संकट है पर इतना नहीं कि हमें अन्य क्षेत्रों या जिलों से पानी मांगने की जरूरत पड़े। महोबा के 40 गांवों में जल संकट है। यदि ट्रेन महोबा पानी लेकर स्टेशन आती है तो ये महंगा संसाधन तो होगा ही साथ ही पानी के भंडारण की व्यवस्था न होने से पानी रखने के लिए अधिक खर्च भी करना पड़ेगा। ट्रेन से पानी लेने का मतलब धन और समय की बर्बादी है।

महोबा में कभी एक नदी हुआ करती थी जिसका नाम चन्द्रावल था ।चन्द्रावल महोबा के करीब एक सौ गांव की जीवनदायिनी थी। पिछले साल सीएम अखिलेश यादव ने इसे सदानीरा बनाने पर काम की पहल की थी। कुछ हुआ नहीं इस साल दो चार दिन मजदूरों ने फांवड़े चलाए और काम खत्म हो गया।

नदी को एक साल में उसके मूल स्वरूप में लाने के दावे हवा में उड़ गए। पानी के पारंपरिक स्रोतों को फिर से जीवन देने की सरकारी कोशिश एक बार फिर नौकरशाही का शिकार होकर रह गई। बजट के अभाव से चंद्रावल को फिर से जीवन देने का काम रुक गया जिसका खाका यहां की सैंकडों एकड़ खेती की जमीन को सिंचित करने तथा लोगों को पेयजल मुहैया कराने को लेकर तैयार किया गया था।

तत्कालीन आयुक्त कल्पना अवस्थी कहती हैं कि काम इस उम्मीद से शुरू किया गया था कि सरकार से बजट मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। चन्द्रावल का उदगम चांदो गांव है जिसे चंद्रापुरा के पहाड़ी झरनों से जीवन मिला करता था। खोदाई भी यहीं शुरू की गई थी। वक्त और प्रदूषण की मार से चंद्रावल के अस्तित्व पर ही खतरा हो गया। इसके सूख जाने से चंद्रावल बांध पर भी खतरा मंडराने लगा। कभी चंद्रपुरा की पहाडि़यों पर घनघोर जंगल हुआ करता था जिसका लकड़ी माफिया ने सफाया कर दिया। परिणाम यह हुआ कि प्रकृति का उपहार झरने सूख गए।

बीस साल पहले तक नदी में लबालब पानी रहता था। अंग्रेजों ने पानी का उपयोग करने के लिये चंद्रावल बांध बनाया। पांच हजार मीटर से ज्यादा लंबे बने बांध से 80 हजार किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली बनाई गई जिससे बीस हजार हेक्टयर में सिंचाई होती थी।

नदी का ऐतिहासिक महत्व भी महोबा की अस्मिता के साथ जुड़ा है। दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान ने 11वीं सदी में यहां आक्रमण किया था तथा चंदेली सेना को हराकर राजकुमारी चंद्रावल का डोला लूट लिया था। पृथ्वीराज जब चंद्रावल का डोला ले वापस दिल्ली लौट रहे थे तब नदी के बेग ने उनका रास्ता रोका। चंदेल सेना में सेनापति रहे आल्हा उदल ने पृथ्वीराज को हराया और चंद्रावल का डोला वापस ले आए। तभी से इस नदी का नाम चन्द्रावल पड़ गया।

पानी का नोबल पुरस्कार पाने वाले राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि चंद्रावल को फिर से जीवन देने के काम को खर्चीला नहीं बनाया जाना चाहिए। नदी सदानीरा हो जाय इसके लिए उनके पास साधारण सा माडल है। कई जगहों पर पांच से छह मीटर तक खोदाई करने के बाद वाटर लेबल रिचार्ज कर जमीन के अन्दर के पानी को बाहर निकालना फायदेमंद रहेगा।



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