×

ममता ने कभी बेचा था दूध, जानिए दीदी से जुड़े कुछ और भी FACTS

Newstrack
Published on: 19 May 2016 6:00 AM GMT
ममता ने कभी बेचा था दूध, जानिए दीदी से जुड़े कुछ और भी FACTS
X

पश्चिम बंगाल: सूती साड़ी, पैरों में हवाई चप्पल और कंधे पर कपड़े का थैला लेकर जब यह चलती हैं तो लोग प्यार से कहते हैं, देखो दीदी जा रही है। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की यही पहचान है। ममता ने अपनी सादगी और संघर्ष की बुनियाद पर पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा के 34 साल पुराने क़िले को 2011 के विधानसभा चुनाव में ढहा दिया था। लगातार वो दूसरी बार चुनाव जीती हैं।

ममता का बचपन कांटों से भरा रहा है। कुछ पल की छांव के लिए मीलों उन्हें चलना पड़ता था। बचपन के दिनों में अपने छोटे भाई बहनों की परवरिश के लिए उन्होंने दूध तक बेचा है। विधवा मां की मदद करने का उनके पास सिर्फ यही एक तरीका था। ममता के पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे। जब वह बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मौत हो गई थी।

यह भी पढ़ें...असम में BJP के पहले CM होंगे सोनोवाल, ऐसे शुरू हुआ था पॉलिटिकल करियर

ऐसे शुरू हुआ पॉलिटिकल करियर

ममता ने 'जोगेश चंद्र चौधरी लॉ कॉलेज' से अपनी लॉ की डिग्री हासिल की और पश्चिम बंगाल में यूथ कांग्रेस की अध्यक्ष के तौर पर राजनीति की शुरुआत की। जादवपुर सीट से 1984 में सोमनाथ चटर्जी को हराकर वह पहली बार लोक सभा में पहुँची। क़रीब 13 साल के लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा को हटाकर ममता इतिहास रचने में कामयाब रहीं। ममता पश्चिम बंगाल की पहली महिला सीएम बनीं। वह ज्यादातर सफेद साड़ी ही पहनती हैं।

पेंटिंग का रखती हैं शौक

ममता ने साल 2007 और 2008 में अपनी पेंटिंग्स पर 19 लाख रुपए कमाए और इसे दान कर दिया। अब भी वह लाल खपरैल की छत वाले घर में रहती हैं और वर्क आउट करना नहीं भूलती हैं। सिर्फ पेंटिंग्स का ही नहीं, उन्हें कविताएं लिखने का भी शौक है।

यह भी पढ़ें...LIVE UPDATE: BJP के अच्छे दिन, कांग्रेस के बुरे, दीदी-अम्मा रिटर्न्स

राजनीतिक करियर

-ममता ने अपना राजनीतिक करियर 1970 के दशक में शुरू किया

-1976 से 1980 तक वो प्रदेश महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं

-लोकसभा के 1984 के चुनाव में माकपा के धाकड़ नेता सोमनाथ चटर्जी को हराया

-लोकसभा के 1989 के चुनाव में वो कांग्रेस विरोधी लहर में हार गईं

-वो लोकसभा के लिए 1991, 96, 98, 99, 2004 और 2009 में चुनाव जीतीं

-पीवी नरसिंहराव की सरकार में वो 1991 में मानव संसाधन मंत्री बनीं

-मतभेद के कारण 1993 में मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया

-2002 में पहली बार रेल मंत्री बनीं

-लोकसभा के 2004 के चुनाव में अपनी पार्टी से जीतने वाली अकेली सांसद थीं

-लोकसभा के लिए 2009 के चुनाव में कांग्रेस से गठजोड़ किया

-यूपीए की सरकार में वो दूसरी बार रेल मंत्री बनीं

-देश भर में दुरंतो ट्रेन चलाने का श्रेय उनको जाता है

टाटा का जमकर किया था विरोध

ममता बनर्जी ने 1997 में कांग्रेस से अगल हो तृणमूल कांग्रेस बनाई। लंबे संघर्ष के बाद वाममोर्चा के 24 साल पुराने शासन को 2011 में कांग्रेस के गठबंधन कर खत्म किया और सीएम बनीं। कुछ महीने के बाद कांग्रेस के मतभेद हुआ और उन्होंनें सरकार से कांग्रेस को अलग कर दिया। सीएम बनने के बाद उन्होंनें पहला फैसला सिंगुर के किसानों की 400 एकड़ जमीन वापसी का लिया। सिंगुर में एक हजार एकड़ जमीन टाटा को नैनो कार कारखाना लगाने के लिए दी गई थी। इसे लेकर ममता ने आंदोलन भी किया था। उनका कहना था कि टाटा बाबू 600 एकड़ में कारखाना लगना चाहें तो लगा सकते हैं।

जुझारूपन है पहचान

केंद्र में मंत्री रहते हुए उन्हें पश्चिम बंगाल में रैली के दौरान पुलिस की लाठी खानी पड़ी थी। संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण के सवाल पर उन्होंनें समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद राय का कॉलर पकड़ लिया था।

Newstrack

Newstrack

Next Story