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आखिर कब सीखेंगे, NTPC हादसे ने हरे कर दिए कई हादसों के जख्म
संजय तिवारी
लखनऊ: आखिर हम कब सीखेंगे? हादसों के बाद हर बार सबक लेने की बात कही जाती है, लेकिन फिर सब वैसे ही चलने लगता है। ऊंचाहार में एनटीपीसी हादसे ने कई पुराने हादसों की यादें ताज़ा कर दी हैं। जिस तरह बुधवार को रायबरेली से लेकर लखनऊ तक सायरन बजाती एम्बुलेंसेस दौड़ रहीं थीं और ऊंचाहार में लाशें निकल रही थीं, वह बहुत भयावह दृश्य था। ऐसे औद्योगिक हादसों के लिए जैसे सब आदी हो गए हैं। हर हादसे की जांच होती है। हादसे से सबक सीखने के संकल्प लिए जाते हैं। पुनरावृत्ति न होने देने की कसमें खायी जाती हैं। लेकिन हादसे हो ही जाते हैं।
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ऊंचाहार की जिस यूनिट में यह मौत का तांडव हुआ है, इसका सम्यक निरीक्षण अभी ढाई महीने पहले ही हुआ था। 22 अगस्त को ही एनटीपीसी के निदेशक सुभाष चन्द्र पांडेय ने इस संयंत्र का जायजा लिया था और सबकुछ ठीक पाया था। एनटीपीसी ऊंचाहार के ही एक इंजीनियर का कहना है कि करीब 3 महीने पहले यह यूनिट लगी, जहां से 500 मेगावाट बिजली का प्रोडक्शन होता है। उन्होंने बताया कि कोयला जलने के बाद बची ऐश को ठंडा करके बॉयलर से निकाला जाता है। जहां से यह ऐश निकलती है, वह वाल्व बहुत जल्दी चोक हो जाता है। इससे बॉयलर पर प्रेशर बढ़ जाता है और वह फट जाता है। यह हादसा भी शायद इसी वजह से हुआ। एनटीपीसी के इंजीनियर के मुताबिक, बॉयलर के चारों तरफ स्टील की मोटी परत लगती है, ताकि अंदर का टेम्परेचर बाहर न जाए और बाहर का टेम्परेचर उस पर कोई असर न डाले। मेटल कवर पुराना या खराब हो जाए तो वह स्टीम प्रेशर को सहन नहीं कर पाता और बॉयलर में ब्लास्ट हो जाता है।
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ऊंचाहार एनटीपीसी इकाई में बॉयलर फटने से भड़की भीषण आग में 30 लोगों की मौत की पुष्टि प्रशासन कर चुका है। जो गर्म राख के नीचे आ गए, उनकी तो लाश भी नहीं मिली। दुर्घटना में घायलों की संख्या भी 200 से ज्यादा हो चुकी है। राजधानी के सभी प्रमुख अस्पतालों में इसके घायल भरे हैं। जिस तरह का यह हादसा हुआ है, उसे देखते हुए मृतकों की संख्या और बढ़ने की आशंका है। शुरुआती राहत बचाव कार्य में सिर्फ उन लोगों को निकाला गया है, जिनकी सांसें अभी चल रही थी। इसलिए जिन लोगों की दम घुटने से मौत हो चुकी है, उन्हें बाद में निकाला जाएगा और मृतकों की असली संख्या का भी तब भी पता चलेगा।
ऊंचाहार एनटीपीसी की इस दुर्घटना ने एक बार फिर इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट की तरफ ध्यान खींचा है। भारत और दुनिया में यह पहला मौका नहीं है, जब इस तरह का हादसा हुआ हो। भोपाल गैस कांड से लेकर फुकुशिमा और चर्नोबिल तक ऐसे कई इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट हो चुके हैं। देश-दुनिया के कुछ बड़े इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट के बारे में भी चर्चा करेंगे। पहले समझते हैं असल में ऊंचाहार में हुआ क्या?
एनटीपीसी में क्या हुआ?
ऊंचाहार एनटीपीसी की छठी यूनिट में एक बॉयलर फटने से यह दुर्घटना हुई। बता दें कि इस यूनिट की क्षमता 500 मेगावाट की है। इस हादसे में 100 से ज्यादा लोगों के झुलसने की खबर है। घायलों को अस्पतालों तक पहुंचाने के लिए तुरंत वहां 50 एंबुलेंस को तैनात कर दिया गया। जिले के तमाम अस्पतालों को अलर्ट पर रखा गया है और डॉक्टरों को आपात सेवा में बुलाया गया है। इसके अलावा राज्य की राजधानी लखनऊ में भी 50 बेड रिजर्व किए गए हैं। इस हादसे में एनटीपीसी के एजीएम रैंक के तीन अधिकारी भी घायल हैं। एजीएम प्रभात कुमार, एजीएम मिश्रीलाल और एजीएम संजीव सक्सेना को भी लखनऊ रेफर किया गया है।
क्या होता है बॉयलर और कैसे काम करता है?
बॉयलर असल में एक ऐसा यंत्र है, जिसमें भाप बनती है। यहां हीट एनर्जी से इलेक्ट्रिक एनर्जी बनाई जाती है। ज्यादातर जगहों पर बिजली पैदा करने के लिए जो टर्बाइन घूमती है। वह स्टीम यानी भाप से ही घूमती है। यहां पानी गर्म होकर भाप बनता है और उससे स्टीम टर्बाइन घूमती है और इस क्रिया से एक इलेक्ट्रिक जेनरेटर चल पड़ता है। बता दें कि फिरोज गांधी ऊंचाहार थर्मल पावर प्लांट का अधिग्रहण एनटीपीसी ने 1992 में किया था। 1994 तक एनटीपीसी ने यहां 15,000 मेगावाट की क्षमता विकसित कर ली थी।
यूनियन कार्बाइड : भोपाल गैस त्रासदी
जब भी औद्योगिक हादसों की बात होती है तो भारत में हमेशा भोपाल गैस त्रासदी का नाम सबसे ऊपर होता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुए इस इंटस्ट्रियल एक्सीडेंट को दुनिया का सबसे खतरनाक हादसा भी कहा जा सकता है। 2-3 दिसंबर 1984 को भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड पेस्टीसाइड प्लांट में गैस लीक होने से 3700 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जबकि गैर आधिकारिक आंकड़ा 16,000 से अधिक है। यही नहीं इस हादसे में 5 लाख से ज्यादा लोगों को मिथाइल आसोसाइनेट गैस व अन्य कैमिकल के संपर्क में आ गए थे। इस त्रासदी का असर यहां अभी भी देखा जाता है। इतने बड़े हादसे के बाद भी क्या हमने कुछ सीखा?
चर्नोबिल की दुर्घटना
26 अप्रैल 1986 को चर्नोबिल की यह दुर्घटना हुई थी। तत्कालीन सोवियत रूस के यूक्रेनियन सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक में यह दुर्घटना घटी थी। इस हादसे में 31 लोगों की मौत हुई थी। यह घटना देर रात सेफ्टी टेस्ट के दौरान घटी। टेस्ट के दौरान स्टेशन में दर्शाया जा रहा था कि स्टेशन में पावर फेलियर होने से ब्लैकआउट हो गया है। यही नहीं सेफ्टी सिस्टम को भी जान-बूझकर बंद कर दिया गया था। रिक्टर के डिजाइन की खामियों और कुछ अन्य वजहों से यह सेफ्टी चैक जल्द ही ऐसी स्थित में बदल गया, जिस पर नियंत्रण पाना नामुमकिन हो गया। बॉयलर में पानी था और ज्यादा स्टीम की वजह से वहां जोरदार धमाका हुआ और वहां आग लग गई। इस दुर्घटना में रेडियोएक्टिव मैटेरियल पूरे पश्चिमी यूएसएसआर और यूरोप में फैल गया था। चर्नोबिल की यह दुर्घटना न्यूक्लियर पावर प्लांट हादसों में सबसे घातक थी।
फुकुशिमा डाइची न्यूक्लियर हादसा
11 मार्च 2011 को जापान में आई सुनामी और जबरदस्त भूकंप के बाद फुकुशिमा डाइची न्यूक्लियर प्लांट में यह हादसा हुआ। दरअसल भूकंप आते ही एक्टिव रिएक्टर अपने आप बंद हो गए। लेकिन सुनामी के कारण इमरजेंसी जेनरेटर बंद हो गए और यही जेनरेटर रिएक्टर को ठंडा करने के लिए पंप को विद्युत की सप्लाई करते थे। कूलिंग कम होने से तीन न्यूलियर प्लांट पिघल गए। इससे हाइड्रोजन ब्लास्ट हुआ और रेडियोएक्टिव मैटेरियल हवा में तैरने लगे। हालांकि इस हादसे में जान-माल का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन इस हादसे ने दुनियाभर में डर का माहौल पैदा कर दिया था। 37 लोगों को चोटें आई थीं।