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मायावती ने तेजस्वी के राज्यसभा का प्रस्ताव ठुकराकर भी खेला दांव
लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने जब दलित के मुद्दे पर बोलने नहीं देने का आरोप लगाते हुए राज्यसभा से इस्तीफा दिया था तब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कहा था, कि उनकी पार्टी मायावती को फिर से ऊपरी सदन में भेजेगी।
अब जब लालू प्रसाद चारा घोटाले के आरोप में रांची जेल में बंद हैं तो उनके पीछे पार्टी की कमान संभाल रहे उनके पुत्र तेजस्वी यादव ने मायावती को राज्यसभा में भेजने का प्रस्ताव दिया। राज्यसभा के चुनाव आगामी अप्रैल में होने हैं। लेकिन मायावती फिलहाल राज्यसभा वापस नहीं जाना चाहतीं और उन्होंने तेजस्वी के प्रस्ताव को विनम्रता से मना कर दिया। पिछले साल सहारनपुर में दलित अत्याचार पर सदन में ना बोलने देने का आरोप लगाते हुए उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी थी।
एक सीट पर बैठ सकता है गणित, लेकिन...
यूपी विधानसभा में बसपा के मात्र 19 सदस्य हैं जिनकी मदद से तो कभी राज्यसभा में नहीं पहुंच सकती हैं। हां, यदि विपक्ष एक हो जाए तो यूपी से विपक्ष को एक सीट और मिल सकती है। यूपी से राज्यसभा की 10 सीटें रिक्त हो रही हैं, जिसमें 8 सीटें बीजेपी को और एक सीट सपा को मिलनी तय है लेकिन यदि विपक्ष एक हो जाए तो दूसरी सीट निकल सकती है। एक सीट जीतने के बाद सपा के पास 10, बसपा के 19 और कांग्रेस के सात वोट मिलाकर एक सीट जीतने की स्थिति बनती है लेकिन आवश्यक है कि विपक्ष किसी एक नाम पर एक हो जाए।
माया का बड़ा राजनीतिक दांव!
लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने आरजेडी के कोटे से उन्हें राज्यसभा सीट का प्रस्ताव दिया, लेकिन मायावती ने ये प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। तेजस्वी ने कहा, कि 'मायावती बीजेपी के केंद्र की सत्ता पर रहने तक राज्यसभा नहीं जाना चाहतीं।' मायावती के इस रुख को उनका एक बड़ा राजनीतिक दांव माना जा रहा है।
मायावती का अपना हिसाब
दरअसल, मायावती जानती हैं कि संख्याबल में कम होने के कारण वे संसद के अंदर सरकार के लिए कोई मुश्किल खड़ी करने की स्थिति में नहीं हैं। लोकसभा में तो उनका कोई सांसद ही नहीं है जबकि राज्यसभा में भी महज तीन बीएसपी सांसद हैं। ऐसे में वे अगर दोबारा राज्यसभा में चली भी जाती हैं तो उन्हें अहम मसलों पर बोलने का बहुत ज्यादा मौका मिले, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
'दलितों की परवाह' को करेंगी कैश
दूसरी ओर, राज्यसभा से बाहर रहकर माया अपने मतदाताओं को बड़ा संदेश दे सकती हैं, क्योंकि उनके राज्यसभा की सीट छोड़ने से ये संदेश तो गया ही है कि बीएसपी सुप्रीमो को दलितों की परवाह है और वो उनके हक में आवाज उठाने से पीछे नहीं हटेंगी। माया का ये संदेश उन्हें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में फायदा दिला सकता है।
माया पीड़ित कार्ड भी खेल सकती हैं
राज्यसभा ना जाकर वो पीड़ित कार्ड भी खेल सकती हैं। वो सत्ता में रहने के दौरान विपक्ष की ओर से उठने वाले हर वार का सामना खुद को दलित की बेटी बताकर कराते आई थीं। अब वो ये संदेश दे सकती हैं कि दलित की बेटी को परेशान किया जा रहा है। उसे राज्यसभा में बोलने नहीं दिया जाता और अब ये जनता के हाथ में है कि वो उन्हें लोकसभा भेजेगी या नहीं।