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सहारनपुर कांड से योगी सरकार और BSP दोनों असहज, संजीवनी की तलाश में मायावती
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: सहारनपुर हिंसा से उपजी स्थितियों ने यूपी की सियासत में भीम सेना के रूप में दलितों का एक और ध्रुव खड़ा कर दिया है। दंगे से उपजी सामाजिक परिस्थितियों ने योगी सरकार के सामने कानून-व्यवस्था की चुनौती खड़ी कर दी है, तो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी असहज कर दिया है। कारण साफ है पार्टी मुखिया मायावती को अपने बेस दलित वोट बैंक को सहेजना है। इसको बचाने और संजीवनी की तलाश में वह सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव पहुंची थीं।
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दलित चिंतक लाल जी निर्मल कहते हैं, कि सहारनपुर कांड के बाद जंतर-मंतर पर जो भीड़ इकट्ठा हुई थी। इनमें से ज्यादातर युवा बसपा के समर्थक थे। घटना के बाद मायावती की खामोशी और चुनाव में शिकस्त को लेकर पढ़े-लिखे युवा और बुद्धिजीवी वर्ग में उनका विरोध शुरू हो चुका है। भीम आर्मी के उदय से बसपा में खलबली मच गई है। उन्होंने जंतर-मंतर की रिपोर्ट देखी तो लगा कि उनका एक विकल्प तैयार हो रहा है। इसकी वजह से वह सहारनपुर जाने को मजबूर हुईं।
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दलितों की मीटिंग के बाद हरकत में आयीं मायावती
दरअसल, सहारनपुर कांड के बाद दलित समाज के वरिष्ठ लोग लगातार बैठकें कर रहे थे। उसमें मायावती की खामोशी को लेकर उन पर निशाना साधा जा रहा था। स्थानीय लोगों का कहना है कि बैठक में दलितों के उत्पीड़न के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जाने लगा। इस बीच भीम आर्मी के स्वत: स्फूर्त आंदोलन ने मायावती को बेचैन कर दिया था।
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अनुमति देना बना गले की हड्डी
सरकार बनने के बाद से ही प्रदेश में घट रही घटनाओं ने योगी सरकार को असहज स्थितियों में खड़ा कर दिया है। मायावती को सहारनपुर जाने की अनुमति देना जिला प्रशासन के लिए गले ही हड्डी बन गया। उसके बाद भड़के दंगों ने योगी सरकार को असहज स्थितियों में लाकर खड़ा कर दिया है।
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